'जाट' से 35 साल पहले सनी देओल इस फिल्म से बने थे मास हीरो, आमिर को दी टक्कर, हुई 'शोले' जैसी कमाई

'जाट' की खासियत ये है कि इस फिल्म में सनी का वो ऑरिजिनल मास अंदाज नजर आ रहा है जो 90s में थिएटर्स में जबरदस्त भीड़ जुटाया करता था. 'जाट' के थिएटर्स में पहुंचने से पहले आपको बताते हैं कि कैसे 35 साल पहले आई 'घायल' ने सनी को 90s का ऑरिजिनल मास हीरो बना दिया था.

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वो फिल्म जिसने सनी देओल को बना दिया था 'मास' हीरो वो फिल्म जिसने सनी देओल को बना दिया था 'मास' हीरो

सुबोध मिश्रा

  • नई दिल्ली ,
  • 08 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 5:16 PM IST

'गदर 2' से ऐतिहासिक कमबैक करने के बाद सनी देओल अब अपनी नई फिल्म 'जाट' लेकर आ रहे हैं. 'जाट' के टीजर और ट्रेलर जनता में बहुत पॉपुलर हुए हैं. तेलुगू इंडस्ट्री में धुआंधार मास फिल्में बनाने के लिए चर्चित डायरेक्टर गोपीचंद मलिनेनी जिस अंदाज में सनी को लेकर आ रहे हैं, वो जनता को बहुत दमदार लग रहा है. 

'जाट' की खासियत ये है कि इस फिल्म में सनी का वो ऑरिजिनल मास अंदाज नजर आ रहा है जो 90s में थिएटर्स में जबरदस्त भीड़ जुटाया करता था और सनी के इस मास अंदाज का पहला बड़ा सबूत बनी थी 'घायल'. 'जाट' के थिएटर्स में पहुंचने से पहले आपको बताते हैं कि कैसे 35 साल पहले 'घायल' ने सनी को 90s का ऑरिजिनल मास हीरो बना दिया था. 

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सनी के करियर का शुरुआती स्ट्रगल
सनी देओल ने 1983 में आई रोमांटिक ड्रामा फिल्म 'बेताब' से फिल्मों में कदम रखा था. इसके बाद भी वो कुछ ऐसी ही रोमांटिक थीम वाली फिल्मों में नजर आए जिसमें 'सनी', 'मंजिल मंजिल' और 'सोनी महिवाल' जैसे नाम थे. 1985 में आई 'अर्जुन' सनी को पहली बार एक्शन अवतार में लेकर आई. इस फिल्म में सनी का किरदार भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए कानून अपने हाथों में ले लेता है. जनता को सनी का एक्शन अवतार पसंद भी आया लेकिन फिर ये अवतार मल्टीस्टारर फिल्मों में ज्यादा नजर आने लगा. 

एक्शन हीरो के रोल में 'यतीम' (1988) सनी देओल की अगली बड़ी सोलो हिट थी. मगर इस बीच वो 'जबरदस्त', 'सल्तनत', 'राम अवतार' और 'पाप की दुनिया' जैसी कई मल्टी स्टारर फिल्मों में नजर आए. 1989 में तो सनी के खाते में सिर्फ मल्टी-स्टारर फिल्में ही आईं, जिनमें- वर्दी, जोशीले, त्रिदेव और चालबाज जैसे नाम शामिल थे.

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इन मल्टी-स्टारर फिल्मों से सनी की पहचान बतौर हीरो तो बनने लगी थी, मगर बतौर स्टार उनका बड़ा धमाका अभी बाकी था. वो धमाका जिसके बाद सिर्फ सनी का नाम ही फिल्मों को खींचने लगे. वो धमाका, जिसके बाद सनी सिर्फ दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों ही नहीं, यूपी-बिहार के कस्बाई थिएटर्स में भी भीड़ जुटाने लगें. और 1990 में सनी के लिए वो फिल्म बनकर आई 'घायल'. 
 
सनी का 'मौला जट्ट' अवतार लेकर आई थी 'घायल'
1960 के दशक में पाकिस्तानी राइटर अहमद नदीम कासमी ने उर्दू में एक शॉर्ट स्टोरी लिखी थी, जिसका नाम था 'गंडासा'. कहानी के मुख्य किरदार मौला जट्ट ने जिस तरह अपने बाप के कत्ल का बदला लिया था, उसका ब्यौरा खून खुला देने वाला था. मौला जट्ट को केंद्र में रखकर पाकिस्तान के एक दूसरे राइटर नासिर अदीब ने पाकितान में पहली पंजाबी फिल्म लिखी थी 'वहशी' (1975). फिर 1979 में इस किरदार को वो अपनी फिल्म 'मौला जट्ट' में लेकर आए एक नई कहानी के साथ.  

उस दौर में भारत और पाकिस्तान का सिनेमा एक दूसरे की फिल्मों से काफी प्रभावित होता था. यही वजह थी कि 'मौला जट्ट' से इंस्पायर थीम पर बॉलीवुड में भी फिल्में बनाने की कोशिश हुई और इनमें हीरो थे सनी देओल के पिता धर्मेंद्र. कई साल बाद ट्रिब्यून को दिए एक इंटरव्यू में नासिर अदीब ने बताया, 'बॉलीवुड में 'मौला जट्ट' के 5 एडाप्टेशन बने. इसमें से 4 फेल हो गए. तब इनके हीरो धर्मेंद्र ने मुझे कॉल किया और मैंने 'घायल' लिखी.' 

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'मास हीरो' सनी देओल की एंट्री
धर्मेंद्र ने खुद 'घायल' प्रोड्यूस की और राजकुमार संतोषी ने इसे डायरेक्ट किया. अमरीश पुरी ने विलेन बलवंत राय का भयानक किरदार निभाया जो क्राइम से लेकर कानून तक पर अपनी पूरी पकड़ रखता है. उसके सामने अपने भाई-भाभी की मौत का बदला लेते सनी देओल का विस्फोटक एक्शन और उनकी जोरदार डायलॉगबाजी ने थिएटर्स में बैठी ऑडियंस को झकझोर कर रख दिया. 

मास फिल्मों का दम सिर्फ उनके एक्शन या डायलॉगबाजी में नहीं होता. बल्कि इस बात में होता है कि हीरो को कितना दबाया गया है और बेहद विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वो किस ताकत से उठ खड़ा होता है. एक मास हीरो की असली ताकत इमोशन में होती है. ऐसा इमोशन जो सामाजिक बैकग्राउंड और आर्थिक हालात से इतर, हर तरह के दर्शक को यानी एक बिजनेसमैन से लेकर एक मजदूर तक को अपील करे. और बदला ऐसा ही एक यूनिवर्सल सिनेमेटिक इमोशन है. 

'घायल' में सनी के किरदार ने बदले के इमोशन को सिनेमा के पर्दे से दर्शकों के दिल तक जिस अंदाज में पहुंचाया उसने उन्हें मास हीरो बना दिया. वो 'एनिमल' के रणबीर कपूर की तरह रईस नहीं था कि अपना बदला पैसे के दम पर पूरा करता. ना ही उसने 'KGF' के यश की तरह पहले क्राइम सिंडिकेट की ताकत जुटाई. सनी का 'घायल' किरदार, अजय मेहरा एक बेहद आम यंग लड़का था, जो जेल में सलाखों के पीछे से अपना बदला पूरा करने के मिशन पर निकला था. इस किरदार के लिए सनी को नेशनल फिल्म अवॉर्ड में स्पेशल मेंशन भी मिला.

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आमिर की फिल्म से हुआ था सनी का क्लैश
सनी देओल की 'घायल' 22 जून 1990 को थिएटर्स में रिलीज हुई और इसी दिन आमिर खान-जूही चावला स्टारर 'दिल' भी थिएटर्स में पहुंची. 'कयामत से कयामत तक' (1988) जैसी बड़ी सुपरहिट से लॉन्च हुए आमिर 'राख' और 'तुम मेरे हो' जैसी कम चर्चित फिल्में करने के बाद फिर से लव स्टोरी लेकर आ रहे थे. 'दिल' में उनके साथ माधुरी दीक्षित थीं जिनके करियर का बेस्ट दौर शुरू हो चुका था. 

'दिल' के गाने पहले ही पॉपुलर हो चुके थे. जो तय था वही हुआ और जोरदार ओपनिंग के साथ आमिर-माधुरी की फिल्म थिएटर्स में धमाल करना शुरू कर चुकी थी. मगर इसी के आमने सनी देओल की 'घायल' ने धीरे-धीरे अपने हिस्से की ऑडियंस बटोरनी शुरू की और देखते ही देखते ये फिल्म सिंगल स्क्रीन्स थिएटर्स में जबरदस्त कमाई करने लगी. जहां आमिर की 'दिल' 1990 की सबसे कमाऊ बॉलीवुड फिल्म बनी, वहीं 'घायल' इसके ठीक पीछे दूसरे नंबर पर रही. मगर 'घायल' का असली भौकाल शुरू हुआ अगले साल, 1991 में.

शोले को दी थी कड़ी टक्कर 
पहली बार रिलीज के एक साल बाद ही, सितंबर 1991 में 'घायल' थिएटर्स में री-रिलीज हुई. बॉक्स ऑफिस इंडिया की रिपोर्ट्स बताती हैं कि एक साल के अंदर ही फिर से रिलीज हुई 'घायल' ने नई फिल्मों को टक्कर देनी शुरू कर दी. सनी देओल का मास अवतार देखने के लिए लोग टिकट खिड़की पर लाइन लगाने लगे.

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1992 की सबसे बड़ी बड़ी ब्लॉकबस्टर अनिल कपूर की फिल्म 'बेटा' से तुलना बताती है कि री-रिलीज पर 'घायल' ने क्या कमाल किया था. सिर्फ मुंबई सर्किट की बात करें तो रिपीट रन में चल रही 'घायल' ने दूसरे हफ्ते में यहां लगभग 13 लाख 52 हजार रुपये का कलेक्शन किया था. जबकि 'बेटा' ने अपने दूसरे हफ्ते में इस सर्किट से 13 लाख 41 हजार रुपये कमाए थे. 

रिपोर्ट्स बताती हैं कि 1991 में केवल कुछ गिनी-चुनी फिल्मों ने मुंबई में अपनी पहली रिलीज पर 80 लाख रुपये का नेट कलेक्शन किया था. जबकि री-रिलीज हुई 'घायल' ने मुंबई में 80 लाख का आंकड़ा आराम से पार कर लिया था. पहली बार की रिलीज में ही ये फिल्म मुंबई सर्किट में 2 करोड़ से ज्यादा नेट कलेक्शन कर चुकी थी. 

'घायल' 90s के दौर में कई-कई बार री-रिलीज हुई और हर बार ये थिएटर्स में जबरदस्त भीड़ जुटाती रही. रिपोर्ट्स बताती हैं कि 90s में री-रिलीज हुई किसी भी फिल्म का बिजनेस 'घायल' के आसपास भी नहीं पहुंच पाया. बल्कि भारतीय सिनेमा के इतिहास में शायद 'शोले' ही एकमात्र फिल्म है जिसने रिपीट रन में 'घायल' से ज्यादा बिजनेस किया हो. 

सनी की फिल्म का कमाल मुंबई सर्किट के बिजनेस में तो नजर आता ही है, लेकिन टियर 2-टियर 3 शहरों और कस्बों में तो 'घायल' एक कल्ट बन चुकी थी और थिएटर्स में जब भी बिजनेस कमजोर होने लगता था, वहां 'घायल' का रिपीट रन शुरू हो जाता था. इस फिल्म ने सनी को ऑडियंस का फेवरेट मास हीरो बना दिया था. सनी की इस मास इमेज ने ही 90s के पूरे दशक में उन्हें बॉलीवुड के टॉप सुपरस्टार्स की लिस्ट में बनाए रखा. 

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मास सिनेमा का कमबैक और सनी देओल की डिमांड
2000s की शुरुआत से जब हिंदी फिल्मों में एक मॉडर्न स्टाइल आया और नए टॉपिक्स पर फिल्में बननी शुरू हुई, तब सनी और मास सिनेमा उसमें फिट नहीं हुए और धीरे-धीरे उनकी फिल्मों का दौर बीतता चला गया. पिछले कुछ सालों में साउथ के फिल्ममेकर्स ने, पुराने पड़ चुके मास सिनेमा को जिस तरह री-इन्वेंट करके नए अंदाज में पेश किया उससे फिल्म फैन्स में ये चर्चा शुरू हो गई थी कि ये सनी देओल जैसे हीरो के लिए परफेक्ट दौर है. यश की 'KGF' से मास सिनेमा ने फिर से रफ्तार पकड़नी शुरू की और लॉकडाउन के बाद वाले दौर में शाहरुख खान (जवान), रणबीर कपूर (एनिमल) जैसे सुपरस्टार भी मास हीरो के अवतार में नजर आए. 

मास सिनेमा की इस लहर के बीच ही सनी की 'गदर 2' भी आई और इसने धमाका कर दिया. 500 करोड़ से ज्यादा कमाने वाली 'गदर 2' से सनी ने जोरदार कमबैक तो जरूर किया लेकिन माना जाता है कि ये फिल्म उतनी मजबूत नहीं थी जितनी 2001 में आई ऑरिजिनल 'गदर' थी. सनी के कमबैक को उनके ट्रेडमार्क मास स्टाइल से ज्यादा 'गदर' ब्रांड की कामयाबी कहा गया. 

ऐसे में सनी को फिर से उनके ऑरिजिनल मास भौकाल में देखने का इंतजार कर रहे फैन्स के लिए 'जाट' एक परफेक्ट चॉइस बनकर आ रही है. अब देखना है कि 10 अप्रैल को रिलीज हो रही इस फिल्म से सनी का पुराने वाला मास अवतार स्क्रीन पर लौटता है या नहीं. 

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