जब दूसरी बार हारकर मुंबई छोड़ने जा रहे थे धर्मेंद्र, मनोज कुमार ने रोका तो इंडस्ट्री को मिला सुपरस्टार

धर्मेंद्र अपने दौर के सुपरस्टार थे, सब जानते हैं. लेकिन धर्मेंद्र पहले एक बार मुंबई से नाकाम होकर वापस पंजाब लौट चुके थे, ये बुत कम लोगों को पता है. दूसरी बार वो फिर वापस लौटने जा रहे थे. मगर उनके एक दोस्त ने उन्हें रोका. आगे चलकर वो दोस्त खुद एक बड़ा स्टार बना.

Advertisement
कैसे मनोज कुमार की वजह से इंडस्ट्री को मिले सुपरस्टार धर्मेंद्र (Photo: Wikipedia; X/@priyankachopra) कैसे मनोज कुमार की वजह से इंडस्ट्री को मिले सुपरस्टार धर्मेंद्र (Photo: Wikipedia; X/@priyankachopra)

सुबोध मिश्रा

  • नई दिल्ली ,
  • 25 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:08 PM IST

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के एक आइकॉन, एक लेजेंड और एक सुपरस्टार धर्मेंद्र अब हमारे बीच नहीं रहे. पर वो जबतक थे, उनकी मौजूदगी हर उस कमरे को रौशन कर देती थी जहां वो होते थे. पर्दे पर 'हीमैन' की इमेज वाले धर्मेंद्र रियल लाइफ में बहुत नरम दिल आदमी थे. उनके जेंटलमैन स्वभाव और दिलदार शख्सियत के किस्से इंडस्ट्री में खूब मिलते हैं. 60 साल से लंबा एक्टिंग करियर, जिसमें से 30 साल इंडस्ट्री के टॉप पर रहना... ऐसी अचीवमेंट्स किसी भी दूसरे सुपरस्टार के खाते में नहीं हैं. 

Advertisement

लेकिन उपलब्धियों के इस शिखर पर पहुंचने के लिए, पहली सीढ़ी चढ़ने में इतनी मेहनत और संघर्ष लगा कि एक वक्त तो धर्मेंद्र हार मानने वाले थे. पहली बार नहीं, दूसरी बार. एक बार तो वो हार मानकर वापिस लौट चुके थे. पर दूसरी बार उनका हाथ थामने के लिए मनोज कुमार मौजूद थे. आगे चलकर 'भारत कुमार' कहलाने वाले फिल्म स्टार मनोज कुमार जिन्हें धर्मेंद्र प्यार से 'मन्नो' बुलाते थे. 

एक्टर बनने आए धर्मेंद्र पहली बार फेल होकर लौट गए वापस 
पंजाब के एक गांव में, एक स्कूल हेडमास्टर के घर जन्मे धर्मेंद्र को फिल्मों का चस्का बचपन से लगने लगा था. इंटरव्यूज में उन्होंने बताया है कि मोतीलाल और दिलीप कुमार की फिल्में देख-देखकर वो बड़े हुए थे. उनकी बायोग्राफी 'धर्मेंद्र: नॉट जस्ट अ हीमैन' (धर्मेंद्र: केवल एक हीमैन नहीं) बताती है कि दिलीप कुमार की 'शहीद' देखने के बाद वो सिनेमा के जादू में फंस चुके थे. 

Advertisement

1950s के बीच में धर्मेंद्र पहली बार एक्टर बनने की आस लिए मुंबई आए थे. इंडस्ट्री में ना कोई पहचान, ना कोई गाइड. हैरानी की बात नहीं थी कि एक्टर बनने की उनकी पहली कोशिश नाकाम हुई और वो वापस घर लौट गए. पंजाब लौटकर एक ड्रिलिंग कंपनी में नौकरी करने लगे. एक दिन फिल्मफेयर-यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स टैलेंट हंट का इश्तिहार देखा तो उम्मीद फिर जागी. 

मनोज कुमार ने धर्मेंद्र को दूसरी बार आने से रोक लिया था
इस टैलेंट हंट के लिए धर्मेंद्र वापस मुंबई लौटे. इस टैलेंट कॉम्पिटीशन में वो सेकंड आए. फर्स्ट कोई सुरेश पुरी आए थे, जो कहां गायब हो गए कोई नहीं जानता. मगर धर्मेंद्र को बिमल रॉय ने स्पॉट किया और उनके साथ एक फिल्म करने का वादा किया. ये फिल्म 'बंदिनी' (1963) बाद में बनी. मगर इससे पहले डायरेक्टर अर्जुन हिंगोरानी ने धर्मेंद्र को अपनी फिल्म 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' (1960) में एक बड़ा रोल दिया. फिल्म आई, चली भी... मगर बहुत नोटिस नहीं की गई. बात फिर वहीं पहुंच गई. 

धर्मेंद्र काम पाने के लिए एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो भटकने लगे. इस स्ट्रगल में उन्हें दो और लड़कों का साथ मिला. एक दिल्ली से आया लड़का उन दिनों इंडस्ट्री के दरवाजे पर दस्तक दे रहा था. नाम था— मनोज कुमार. एक और खूबसूरत लड़का इन दोनों को मिला, जो पृथ्वीराज कपूर का बेटा था और फिल्म स्टार राज कपूर का छोटा भाई— शशि कपूर. पृथ्वीराज कपूर ने अपने बच्चों को अपने दम पर काम तलाशने में जूते घिसने का सबक दिया था. राज भी ऐसे ही इंडस्ट्री में आए थे. स्ट्रगल के दिनों में ये तिकड़ी ऐसी जमी कि इन्हें अलग करना मुश्किल था. 

Advertisement

धर्मेंद्र काम ना मिलने से परेशान थे. एक दिन इतने फ्रस्ट्रेट हो गए कि घर वापस लौटने का मूड बना लिया. बैग पैक करने लगे और तय किया कि फ्रंटियर मेल लेकर बैक टू पवेलियन हो जाएंगे. तब उनके स्ट्रगल के साथी मनोज कुमार ने उनका हाथ थामा. मनोज ने उन्हें मोटिवेशन देना शुरू किया. समझाया कि तकदीर पर भरोसा रखें और खुद को दो महीने का वक्त दें. धर्मेंद्र ने बाद के एक इंटरव्यू में बताया था कि 'मन्नो' की ये सलाह वो कभी नहीं भूल सकते. इसी के भरोसे वो मुंबई में दो महीने रुके और उनकी तकदीर बदल गई. 

मनोज कुमार ने एक इंटरव्यू में बताया है कि जब उन्होंने धर्मेंद्र को ये रोककर मोटिवेशन दिया, उसके पांचवें दिन ही गुड-न्यूज आई. धर्मेंद्र को 'शोला और शबनम' मिल गई और उन्होंने खुद 'पिकनिक' साइन की. मनोज की फिल्म तो बहुत सालों बाद बनकर पर्दे तक पहुंची. मगर धर्मेंद्र की 'शोला और शबनम' 1961 में रिलीज हुई. ये उस साल बॉक्स ऑफिस पर टॉप 10 हिट्स में से एक थी. इस फिल्म के बाद से धर्मेंद्र के करियर ने रफ्तार पकड़ ली. और अगले करीब 30 सालों तक, लगभग हर साल धर्मेंद्र की कोई ना कोई फिल्म टॉप 10 में रहती थी. पैसे ना होने पर जिन धर्मेंद्र को मनोज कुमार कपड़े दिलाया करते थे, वो अब सुपरस्टार बन चुके थे.

Advertisement

बॉक्स ऑफिस पर हुआ मनोज और धर्मेंद्र का सामना 
साल 1965 से जब मनोज कुमार का सूरज फिल्म इंडस्ट्री के आसमान पर चमकना शुरू हुआ, तबतक धर्मेंद्र एक स्टार बन चुके थे. एक तरफ मनोज की 'उपकार', 'शहीद', 'पूरब और पश्चिम' जैसी फिल्में जब बॉक्स ऑफिस पर धमाके कर रही थीं. उसी समय धर्मेंद्र की 'काजल', 'फूल और पत्थर', 'आंखें' और 'शिकार' जैसी फिल्में भी बॉक्स ऑफिस चार्ट्स में भौकाल जमा रही थीं. 80 का दशक शुरू होने के बाद मनोज कुमार का करियर ग्राफ नीचे की तरफ जाने लगा. मगर धर्मेंद्र उसके बाद भी करीब एक दशक तक डटे रहे. 

अपने स्टारडम के चरम दिनों में धर्मेंद्र और मनोज कुमार ने कभी साथ में कोई फिल्म तो नहीं की. केवल 'मेरा नाम जोकर' जैसी कुछ मल्टीस्टारर फिल्मों में दोनों साथ जरूर नजर आए. लेकिन अपने स्ट्रगल के दिनों में दोनों ने 'शादी' (1962) नाम की एक फिल्म साथ में की थी. ये दोनों के ही करियर की भूली-बिसरी फिल्मों में से एक है. इसी साल अप्रैल में मनोज कुमार ने इस संसार से विदा ली थी. कुछ महीने बाद ही अब धर्मेंद्र भी दूसरी दुनिया के सफर को जा चुके हैं, जहां उनका एक जिगरी यार पहले से है. 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement