यूपी में विधानसभा चुनाव के ऐलान के बाद राजनीतिक उठापटक तेज हो गई है. इसी बीच आज दो बड़ी तस्वीरें सामने आई, एक तस्वीर गोरखपुर में दलित के घर योगी आदित्यनाथ के खिचड़ी भोज की आई और दूसरी तस्वीर लखनऊ में बीजेपी के बागियों के समाजवादी पार्टी में शामिल होने की,आज हम आपको तस्वीरों के सियासी मतलब बताएंगे, यानी चुनाव से पहले इन तस्वीरों के मयाने क्या हैं, सबसे पहले बात सीएम योगी आदित्यनाथ की.
उत्तर प्रदेश की चुनावी बिसात सिर्फ धर्म नहीं बल्कि जातियों में भी बंटी हुई है. करीब 21 फीसदी दलित वोटरों ने जिस पार्टी का दामन थामा, उस पार्टी का चुनाव में बेड़ा पार हुआ, यानी दलित साइलेंट वोटर लेकिन निर्णायक भूमिका में हैं. 2007 में बहुजन समाज पार्टी ने सबसे ज्यादा सुरक्षित सीटों पर जीत हाशिल की वो पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आई, 2012 में सुरक्षित सीटों पर समाजवादी पार्टी का दबदबा दिखा, तो वो सत्ता में आएं, वही 2017 में बीजेपी ने यूपी की सुरक्षित सीटों पर ऐतिहासक जीत हासिल की, वही जीत जो बड़े उलटफेर की वजह बन गई, सवाल ये है कि इस बार किसे सत्ता दिलाएंगे दलित वोटर?
2022 की चुनावी बिसात पर एक के बाद एक चाल चली जा रही हैं. शह और मात के खेल में जाति और धर्म की भूमिका बड़ी है. सवाल ये है कि उत्तर प्रदेश में अबकी बार दलित किसे राज दिलाएगा. वैसे आकड़ों से समझे तो उत्तर प्रदेश की 403 सीटों में करीब 300 सीटें ऐसी हैं जहां पर दलित समाज निर्णायक रोल में हैं 20 जिलों में तो 25% से ज्यादा अनुसूचित जाति-जनजाति की आबादी है. यही वजह है कि सभी पार्टियों की नजर दलित समाज पर है.
दलितों को आकर्षित करने की कोशिश हर तरफ से जारी हैं, जिन नेताओं ने बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी का दामन थामा, उनके जुबान पर भी यही नाम है. ऐसा क्यों हैं इसे समझने के लिए सबसे पहले आपको उत्तर प्रदेश में दलित समाज की सियासी ताकत के बारे में बताते हैं.
आंकड़े एक नजर में
उत्तर प्रदेश में दलित वोटरों का प्रतिशत करीब 21.1 हैं, जो जाटव और गैर जाटव दलित में बंटा हुआ है. अगर जाटव दलित की बात करें तो वो 11.70 प्रतिशत हैं और BSP का कोर वोटर माना जाता है. उसके बाद 3.3 प्रतिशत पासी हैं, अगर बात कोरी, बाल्मीकी की करें तो वो 3.15 प्रतिशत हैं, वही धानुक, गोंड और खटीक 1.05 प्रतिशत हैं, अन्य दलित जातियां भी 1.57% हैं. उत्तर प्रदेश में कुल 403 सीटों में 84 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित विधानसभा सीटें हैं.
बड़ी बात ये हैं कि उत्तर प्रदेश में दलित समाज के हाथों में सत्ता की चाबी हैं, अगर पार्टियों की जीत और आकड़ों को देखें तो तस्वीर साफ हो जाएगी.
सुरक्षित सीटों पर प्रदर्शन
- 2002 विधानसभा चुनाव में समाजवादी 35 सीटों पर जीती, बीएसपी 24 सीटों पर, 18 सीटों पर बीजेपी जीती. वहीं, - 2007 के चुनाव में 62 सीट पर बीएसपी जीती, 13 सीटों पर समाजवादी पार्टी और 7 सीटों पर बीजेपी.
- 2012 चुनाव में समाजवादी पार्टी 58 सीटों पर जीती, बीएसपी 15 सीटों पर जीती, बीजेपी सिर्फ 3 सीटों पर जीती.
- 2017 की करें तो बीजेपी 70 सीटों पर जीती, सपा सात सीटों पर और बीएसपी सिर्फ 2 सीटों पर. यानी दलित ने जिस पार्टी को पसंद किया, वही पार्टी सत्ता के सिंघासन पर बैठी.
पूरब से पश्चिम तक दलित समाज किस पार्टी का खेल बना सकता है और बिगाड़ सकता है, ये गणित समझिए
दलित आबादी पर नजर
| जिला | दलित आबादी |
| सोनभद्र | 41.92% |
| कौशाम्बी | 36.10% |
| सीतापुर | 31.87% |
| हरदोई | 31.36% |
| उन्नाव | 30.64% |
| रायबरेली | 29.83% |
| औरैया | 29.69% |
| झांसी | 28.07% |
| जालौन | 27.04% |
| बहराइच | 26.89% |
| चित्रकूट | 26.34% |
| महोबा | 25.78% |
| मिर्जापुर | 25.76% |
| आजमगढ | 25.73% |
| लखीमपुर खीरी | 25.58% |
| हाथरस | 25.20% |
| फतेहपुर | 25.04% |
| ललितपुर | 25.01% |
| कानपुर देहात | 25.08% |
| अम्बेडकर नगर | 25.14% |
इसी वोट बैंक की बदौलत मायावती 2007 में 206 सीटों और 30.43 प्रतिशत वोट के साथ पूर्ण बहुमत से मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन 2012 में उनकी चमक काम नहीं आ सकी और लगतार वोट प्रतिशत घटने लगा. वजह बना बीजेपी की सेंधमारी.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि बीजेपी ने दलित वोट बैंक पर तगड़ी सेंधमारी की है. ये एक दिन का काम नहीं है. कई सालों से इस वोट के लिए RSS की ओर से चलाए जा रहे सामाजिक समरसता के जरिए उन्हें कुछ सफलता मिली है. अगर हम गौर से देखें तो 2014 के बाद से गैर जाटव वोट बीजेपी के पाले में जाता दिख रहा है.
(इनपुट- आजतक ब्यूरो)
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