राकेश टिकैत के गढ़ में ओवैसी, क्या मुजफ्फरनगर रैली से जाट-मुस्लिम गठजोड़ में लगा पाएंगे सेंध?

AIMIM प्रमुख ओवैसी ने मुस्लिम बहुल पश्चिमी यूपी पर अपनी नजरें गढ़ा दी हैं. ओवैसी बुधवार को राकेश टिकैत के गढ़ मुजफ्फरनगर में चुनावी हुंकार भरेंगे, जिससे पश्चिम यूपी कि सियासत में एक बार फिर से सियासी उबाल आ सकता है. 

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असदुद्दीन ओवैसी असदुद्दीन ओवैसी

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली ,
  • 27 अक्टूबर 2021,
  • अपडेटेड 10:22 AM IST
  • असदुद्दीन ओवैसी की मुजफ्फरनगर में रैली
  • पश्चिम यूपी में मुस्लिम वोटर काफी अहम है
  • टिकैत का सियासी आधार इसी इलाके में है

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी तपिश बढ़ गई है. ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल-मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी (Owaisi Muzaffarnagar) ने मुस्लिम बहुल पश्चिमी यूपी पर अपनी नजरें गढ़ा दी हैं. ओवैसी बुधवार को भारतीय किसान युनियन के नेता राकेश टिकैत के गढ़ मुजफ्फरनगर में चुनावी हुंकार भर रहे हैं, जिससे पश्चिम यूपी की सियासत में एक बार फिर से उबाल आ सकता है. 

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किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत का सियासी आधार पश्चिम यूपी के इलाके में टिका है, जिसके दम पर वो बीजेपी को 2022 के चुनाव में सबक सिखाने का दम भर रहे हैं. वहीं, असदुद्दीन ओवैसी भी पश्चिम यूपी में सक्रिय होकर मुस्लिम वोटों को अपने पाले में लाने में जुट गए हैं. ओवैसी मुजफ्फरनगर के बझेडी रोड पर 'शोषित वंचित समाज सम्मेलन' को संबोधित करेंगे, जहां सपा, कांग्रेस और बीजेपी को घेरने के साथ-साथ राकेश टिकैत पर भी निशाना साध सकते हैं. 

ओवैसी यूपी विधानसभा चुनाव में पूरे दमखम के साथ लड़ने की तैयारी में जुटे हैं. ऐसे में उन्होंने सूबे की 100 मुस्लिम बहुल सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने का ऐलान किया है. ओवैसी मुस्लिम को अपने साथ जोड़ने के लिए सबसे ज्यादा अखिलेश यादव को निशाने पर ले रहे हैं, क्योंकि मुस्लिम मतदाता सपा का परंपरागत वोटर माना जाता है. ऐसे में ओवैसी सपा को टारगेट कर मुस्लिमों को अपने पाले में लाने की कवायद में जुटे हैं और अब पश्चिम यूपी में उनके निशाने पर आरएलडी और किसान युनियन के नेता टिकैत भी हो सकते हैं. 

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राकेश टिकैट बनाम असदुद्दीन ओवैसी

दरअसल, राकेश टिकैत ने पिछले दिनों मुजफ्फरनगर की 'किसान महापंचायत' के मंच से यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी को वोट से चोट देने का ऐलान किया था. किसान आंदोलन के बहाने जाट-मुस्लिम एकता के प्रयास में जुटे राकेश टिकैत की राह में सबसे बड़ी दिक्कत AIMIM बन रही है तो असदुद्दीन ओवैसी की राजनीतिक लक्ष्य में टिकैत बाधा बन रहे हैं. ऐसे में दोनों नेताओं के बीच जुबानी जंग भी जारी है.  

राकेश टिकैत ने असदुद्दीन ओवैसी को बीजेपी का 'चाचाजान' बताया था. टिकैत ने कहा कि ओवैसी बीजेपी को गाली देते हैं, फिर भी उनके खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं होता है, क्योंकि ये दोनों एक ही टीम हैं. देश में जहां चुनाव होंगे, वहां पर बीजेपी के चाचाजान आएंगे. वहीं, ओवैसी भी मुजफ्फरनगर दंगे के लिए राकेश टिकैत के किसान युनियन को जिम्मेदार ठहराते आ रहे हैं. ओवैसी ने संभल की रैली में कहा था टिकैत चाचा के सामने उनके लोग मुस्लिम बेटियों का इज्जत से खिलवाड़ किया और मुसलमानों का कत्लेआम कर रहे थे. पिछले चुनाव में बीजेपी को जिताने का काम कर रहे थे और अब मुस्लिम के सहारे राजनीति कर रहे हैं. 

किसान आंदोलन का केंद्र पश्चिम यूपी

भारतीय किसान मोर्चा नेतृत्व में किसानों आंदोलन का केंद्र बन चुके पश्चिमी यूपी में रैलियों की सफलता के लिए असदुद्दीन ओवैसी ने पूरी ताकत झोंक दी है. ओवैसी की पश्चिम यूपी की राजनीतिक सक्रियता और मुजफ्फरनगर की रैली से राकेश टिकैत की चिंता बढ़ सकती है, क्योंकि मुस्लिम वोटों का बिखराव और मुजफ्फनगर दंगे के जख्म के हरे होने से बीजेपी की राह आसान बना सकता है. 

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हालांकि, सपा ने ओवैसी के साथी ओमप्रकाश राजभर को अपने साथ मिलाकर 2022 विधानसभा चुनाव से बड़ा राजनीतिक झटका दिया है. गुरुवार को अखिलेश और राजभर मऊ की रैली में एक साथ मंच पर नजर आएंगे. साथ ही अगले महीने के शुरू में मुजफ्फरनगर में सपा एक बड़ी रैली कर रही है, जिसमें अखिलेश यादव के साथ जाट और मुस्लिम नेता एक साथ खड़े नजर आएंगे, जिसके जरिए वो बड़ा सियासी संदेश देने की रणनीति बनाई है. 

पश्चिम यूपी में जाट-मुस्लिम सियासत

दरअसल, पश्चिमी यूपी में एक दौर ऐसा था जब जाट और मुस्लिम समुदाय करीब थे, लेकिन पश्चिम यूपी के इस शुगर बेल्ट के मुजफ्फरनगर में साल 2013 के सांप्रदायिक दंगों के बाद दोनों समुदायों के बीच कड़वाहट आ गई. जाट और मुस्लिम बिखर गया, जिसके बाद हुए चुनावों में बीजेपी को सीधा फायदा मिला. जाट बीजेपी का कोर वोटबैंक बन गया और मुस्लिम सपा, बसपा व कांग्रेस के साथ चले गए. 

2017 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम यूपी की कुल 136 सीटों में से 109 सीटें बीजेपी ने जीती थीं जबकि महज 20 सीटें ही सपा के खाते में आई थीं. कांग्रेस दो सीटें और बसपा चार सीटें जीती थी. वहीं, एक सीट आरएलडी के खाते में गई थी, जहां से विधायक ने बाद में बीजेपी का दामन थाम लिया. यह सिलसिला 2019 लोकसभा चुनाव में भी जारी रहा, लेकिन 2014 के मुकाबले सपा और बसपा ने मुस्लिम बहुल सीटों पर जरूर जीत दर्ज करने में सफल रही. 

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136 सीटों पर जाट-मुस्लिम का प्रभाव

उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय की आबादी करीब 4 फीसदी है जबकि पश्चिम यूपी में यह 20  फीसदी के आसपास है. वहीं, मुस्लिम आबादी यूपी में भले ही 20 फीसदी है, लेकिन पश्चिम यूपी में 35 से 50 फीसदी तक है. जाट और मुस्लिम समुदाय सहारनपुर, मेरठ, बिजनौर, अमरोहा, मुजफ्फरनगर, बागपत और अलीगढ़-मुरादाबाद मंडल सहित पश्चिम यूपी की 136 विधानसभ सीटों पर असर रखते हैं. सूबे की 136 विधानसभा सीटों में 55 सीटें ऐसी है, जाट-मुस्लिम मिलकर 40 फीसदी से अधिक बैठती है. 

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह देश में जाट समुदाय के सबसे बड़े नेता के तौर पर जाने जाते थे. उन्होंने प्रदेश और देश की सियासत में अपनी जगह बनाने और राज करने के लिए 'अजगर' (अहीर, जाट, गुर्जर और राजपूत) और 'मजगर' (मुस्लिम, जाट, गुर्जर और राजपूत) फॉर्मूला बनाया था. चौधरी चरण सिंह जाट और मुस्लिम समीकरण के सहारे लंबे समय तक सियासत करते रहे. 

मुजफ्फरनगर दंगे से जाट-मुस्लिम बिखरा

पश्चिम यूपी में इसी समीकरण के सहारे आरएलडी किंगमेकर बनती रही है, लेकिन 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद यह समीकरण पूरी तरह से टूट गया और जाट व मुस्लिम दोनों ही आरएलडी से अलग हो गए. इसके चलते पिछले दो चुनाव से अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी को हार का मुंह देखना पड़ा है. किसान आंदोलन के बहाने जाट और मुस्लिम एक साथ आए हैं और अब उन्हीं के वोट के सहारे 2022 के चुनाव में बीजेपी को चोट देने के नारे बुलंद किए जा रहे हैं.

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राकेश टिकैत इसी जाट-मुस्लिम समीकरण के जरिए पश्चिम यूपी में बीजेपी को सबक सिखाना चाहते हैं. उसी मुजफ्फरनगर में राकेश टिकैत ने किसान महापंचायत के दौरान हर-हर महादेव और अल्लाहु अकबर का नारा लगाया. इसका सीधा संकेत पश्चिम यूपी में जाट और मुस्लिम के बीच एकता का संदेश देना था. 2013 के दंगे के बाद भारतीय किसान यूनियन से नाता तोड़कर अलग हो चुके किसान नेता गुलाम मोहम्मद जौला भी वापसी कर चुके हैं. सपा और आरएलडी के बीच गठजोड़ भी है. 

मुस्लिम वोटों पर ओवैसी की नजर

राकेश टिकैत की तमाम कोशिशें जाट-मुस्लिम को एक करने की हैं जबकि असदुद्दीन ओवैसी की नजर भी मुस्लिम वोटबैंक पर है. ओवैसी ने कहा कि पश्चिम यूपी में रैलियां आयोजित करके मुस्लिम समुदाय के न्याय और सशक्तिकरण को मजबूत करना चाहते हैं और यूपी में मुस्लिम राजनीति को खड़ा करना चाहते हैं. ऐसे में टिकैत को लगता है कि ओवैसी के प्रभाव में अगर मुस्लिम छिटक गया तो फिर पश्चिम यूपी में बीजेपी के विजय रथ को रोक पाने में सफल नहीं हो सकेंगे. वहीं, देखना है कि टिकैत के गढ़ में ओवैसी किया सियासी गुल खिलाते हैं. 

 

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