इस साल तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव होने हैं. राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी है. उत्तर प्रदेश और बिहार की तरह ही तमिलनाडु में भी जाति की राजनीति काफी मायने रखती है, हालांकि हिन्दी भाषी लोगों के लिए तमिलनाडु की राजनीति को समझना इतना आसान भी नहीं होता है. राज्य की राजनीति में तमिल ब्राह्मणों का भी अपना महत्व है और इन्हीं में से एक अदावत है अय्यर और अयंगार समुदाय की.
तमिलनाडु में अय्यर और अयंगार की अदावत सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि दशकों से ये जंग चलती आ रही है. जो विचारधारा, धार्मिक विश्वास से जुड़ी है. साथ ही तमिलनाडु के अलावा अन्य दक्षिण भारत के राज्यों में भी इसका असर वक्त-वक्त पर देखने को मिलता है.
तमिलनाडु और तमिल ब्राह्मण
हिन्दू संस्कृति में ब्राह्मण के दर्जे को जातिगत व्यवस्था में सबसे ऊपर माना जाता है. तमिलनाडु में भी तमिल ब्राह्मण का अपना एक इतिहास है, इन्हीं की दो मुख्य उपजाति हैं अय्यर और अयंगार. जो अपने-अपने हिसाब से ईश्वर को मानती हैं, जिसके अनुसार पूजा, खान-पान, रहना, विचारधारा आदि पर उसका असर दिखता है.
अय्यर ब्राह्मण
अय्यर ब्राह्मण तमिलनाडु के अलावा आंध्र प्रदेश और कुछ हदतक कर्नाटक में भी रहते हैं. अय्यर ब्राह्मण वो होते हैं जो अद्वैत वेदांत का अनुसरण करते हैं, जिसकी शुरुआत आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी. अहम् ब्रह्मास्मि, संसार में ब्रह्म ही सत्य है, यही अय्यर ब्राह्मणों की विचारधारा है. 16 संस्कारों का पालन करने वाले अय्यर ब्राह्मणों को अक्सर आप धोती या वेष्टी में ही देखेंगे.
आधुनिक वक्त में अय्यर ब्राह्मणों की गिनती सबसे विशिष्ठ जातियों में होती है. ब्रिटिश काल से लेकर अबतक इसी जाति से ऐसे लोग निकले, जो पढ़ाई और अन्य क्षेत्रों में आगे रहे. हालांकि, पुराने वक्त की तरह ही अक्सर अय्यर ब्राह्मणों और अन्य जातियों में भेदभाव की बातें सामने आती रही हैं.
अयंगार ब्राह्मण
तमिल ब्राह्मण की ही दूसरी उपजाति है अयंगार ब्राह्मण. तमिल भाषी हिन्दू ब्राह्मण विशिष्टाद्वैत का अनुसरण करते हैं, जिसकी शुरुआत आचार्य रामानुज ने की थी. अय्यर जहां सिर्फ ब्रह्म पर विश्वास रखते हैं और दुनिया को एक माया का रूप मानते हैं. वहीं, अयंगार का मानना है कि जगत भी ब्रह्म का ही हिस्सा है, ऐसे में ब्रह्म के साथ जगत का सम्मान भी जरूरी है.
अयंगार ब्राह्मणों में ही दो उप-जाति हैं, वडकलई और तेनकलई जिनमें लंबे वक्त से पूजा करने के तरीके को लेकर विवाद होता रहा है. सदियों से चला आ रहा ये विवाद वैचारिक, धार्मिक रास्तों से होता हुआ अदालती रास्तों तक भी पहुंचा है.
मौजूदा वक्त में राजनीतिक असर...
आजादी के वक्त तक तमिलनाडु में ब्राह्मण राजनीति का काफी वर्चस्व रहा, लेकिन वक्त बीतने के साथ ही जब द्रविड आंदोलन, दलित राजनीति को राज्य में बढ़ावा मिला तो दबदबा कम होता गया. दलित समेत अन्य छोटी जातियों की ओर से ऊंची जातियों पर दबाने, मौका ना देने और अन्य उत्पीड़न करने का आरोप लगाया गया.
इसी के बाद तमिलनाडु की राजनीति में द्रविड़ मूवमेंट के साथ दलित और तमिल राष्ट्रवाद को बढ़ावा मिला, जिसके कारण ब्राह्मण वोटरों का दबदबा कम होता चला गया. तमिलनाडु में DMK और फिर AIADMK के दबदबे ने पूरी तरह से इस ट्रेंड को खत्म किया.
चुनावी राजनीति में महत्व
अब अगर 2021 के चुनाव की बात करें, तो तमिलनाडु के कुछ जिले ऐसे हैं, जहां पर अय्यर और अयंगार ब्राह्मण समुदाय के वोटर ऐसी क्षमता रखते हैं. जिनमें चेन्नई, मदुरै, पल्ककड़ समेत अन्य कुछ जिले शामिल हैं. भले ही पूरे राज्य स्तर पर वोटरों की संख्या एकतरफा फैसले लाने वाली ना हो, लेकिन फिर भी राजनीतिक दलों के लिए इस समुदाय को अपने पक्षों में करना काफी जरूरी हो जाता है.
क्योंकि इन दोनों समुदाय के पास ही तमिलनाडु के बड़े मंदिरों की बागडोर है, जिनका अपने-अपने क्षेत्र और श्रद्धालुओं पर काफी असर पड़ता है. जो अंतत: राजनीतिक तौर पर भी असर डालता है.
मोहित ग्रोवर