आनंदपुर साहिब सीट रोपड़ जिले में है. इसकी सीमा लगभग 3 ओर से हिमाचल प्रदेश के साथ सटी हुई है. एक तरह से हिमाचल से पंजाब में एंट्री के लिए यह पहली सीट पड़ती है. देश के विभाजन के बाद सबसे पहले यहां पर देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भाखड़ा बांध का निर्माण करवाया और बिजली पावर प्लांट बनाया. भारत के उत्तर क्षेत्र में बिजली की सप्लाई यहीं के गोविंद सागर से होती है. पहले इसको नंगल सीट कहा जाता था पर अब यह आनंदपुर साहिब सीट कहलाती है. आनंदपुर साहिब का नाम सिख धर्म में बहुत ही आदर से लिया जाता है. इसी कारण इसका नाम बदलकर आनंदपुर साहब सीट रखा गया. इस विधानसभा क्षेत्र में तख्त श्री केशगढ़ साहिब स्थापित हैं. देश-विदेश में बैठे लाखों सिख और पंजाबी, यहां पर होला मोहल्ला वैशाखी के रोज आते हैं.
चुनाव के दौरान इस क्षेत्र में पानी पहुंचाने का वादा कर सारी पार्टियां वोट बटोरती हैं. अवैध माइनिंग के कारण यह क्षेत्र सुर्खियों में रहा है. जिस पार्टी का पंजाब में राज होता है उसका विधायक यहां की अवैध माइनिंग और रॉयल्टी के कारण अक्सर बदनाम भी होता है तथा चुनावों में उसकी हार भी होती है. लोगों के सामने तो नहीं पीछे से उसकी बातें जरूर होती हैं. हालांकि सरकार की ओर से सारा काम पूर्णतया कानूनन होता है. करोड़ों-अरबो रुपये का कारोबार इसमें होता है.
राजनीतिक महत्व
यह सीट हिंदू बाहुल्य सीट है. क्योंकि हिमाचल से कटकर पंजाब में शामिल हुई थी. पहले यहां पर कांग्रेस की सरला पराशर मंत्री बनी थीं. परंतु कार दुर्घटना में उनकी मौत के बाद कांग्रेस पार्टी के विधायक बने. बाद में यहां से मदन मोहन मित्तल दो बार बीजेपी की तरफ से चुनाव जीते और मंत्री बने. उनके बाद यहां से राणा कंवर पाल सिंह तीसरी बार चुनाव जीतकर पंजाब विधानसभा के स्पीकर बने हैं. उनकी सरकार में भी अच्छी पकड़ है. वे कैप्टन के बहुत नजदीकी समझे जाते हैं. हालांकि आनंदपुर साहिब सीट होने के कारण यह सीट सिखों की अधिकता वाली लगती है. परंतु यहां से हमेशा हिंदू उम्मीदवार ही जीता है.
संसदीय चुनावों में यहां से मनीष तिवारी लगभग 14 हजार वोटों से हारे. जिससे कांग्रेस पार्टी में चिंता की लहर है. परंतु भारतीय जनता पार्टी और अकाली दल के आपसी संबंध टूटने के कारण कांग्रेस पार्टी की उम्मीद फिर से जग गई है.
आनंदपुर साहिब के विधायक राणा कंवर पाल सिंह का सफर यूथ कांग्रेस से शुरू हुआ. वह पेशे से सफल वकील रहे और 2002 में इस क्षेत्र से जीत कर विधायक बनने के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह के नज़दीक हो गए. 2007, 2017 में भी जीत प्राप्त कर स्पीकर बने. बीते पौने 5 वर्षो में राणा कंवर पाल सिंह ने अपना रसूख कायम करते हुए चंगर क्षेत्र (अर्द्ध पहाड़ी ) को पानी के ट्यूबवेल, नगर काउंसिल के क्षेत्र को बढ़ा कर गांवो में शामिल करना, MP कोठी से बरारी तक पुल का निर्माण, कोरोना में गैस चैम्बर बनवाने, सड़क बनवाने, सरकारी कम्युनिटी हॉल बनाने, पंजाब एलकलिस फैक्टरी को प्राइवेट करना, नंगल को तहसील का दर्जा देने जैसे कई कार्य कर खूब नाम कमाया है.
कहां है मुश्किल?
2017 के चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी के मंत्री मदन मोहन मित्तल को पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो राणा कंवर पाल सिंह की जीत पहले से ही सुनिश्चित हो गई. राणा कंवर पाल सिंह ने आनंदपुर साहिब से आम आदमी पार्टी के संजीव गौतम और भारतीय जनता पार्टी के परमिंदर शर्मा दोनों के मतों के बराबर मत हासिल की और दोनों उम्मीदवारों को धूल चटा दी. बाद में वे स्पीकर बन गए.
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बीते वर्षो में भी उन्होंने अपनी ओर से विकास की कोई कसर नहीं छोड़ी. परंतु लोकल मुद्दों में जैसे माइनिंग, क्रेशर से या सतलुज नदी से निकलने वाले रेत, ग्रेवल आदि से रॉयल्टी, गुंडा पर्ची जिस पर हाइकोर्ट ने भी संज्ञान लिया और ट्रक चालक आदि को लेकर उन्हें लोगों का गुस्सा झेलना पड़ सकता है.
विजय कपूर की रिपोर्ट
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