पश्चिम बंगाल में अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव की सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. बंगाल के आदिवासी समुदाय पर बीजेपी और टीएमसी दोनों की नजर है. बंगाल में कमल खिलाने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस महीने के शुरू में ही दो दिवसीय बंगाल दौरे की शुरुआत आदिवासियों के गढ़ बांकुड़ा जिले से की थी. शाह के दौरे के बाद अब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी आदिवासियों को साधने के लिए बांकुड़ा पहुंची हुई हैं. .
सोमवार को बांकुड़ा के खत्रा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए ममता बनर्जी ने आदिवासी वोटरों को टीएमसी के पाले में लाने के लिए कई वादे किए और बड़ी घोषणाएं की हैं. ममता ने इस दौरान बिरसा मुंडा की जयंती (15 नवंबर) पर अगले साल से राज्य में सरकारी छुट्टी का ऐलान कर सियासी समीकरण साधने का दांव चला है. यही नहीं ममता ने अमित शाह की बांकुड़ा यात्रा पर भी निशाना साधते हुए कहा कि एक आदिवासी के घर उनका भोजन करना सिर्फ चुनावी स्टंट था.
ममता बनर्जी ने कहा कि समाज के विशिष्ट लोगों का सम्मान और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों का विकास उनकी सरकार दिल से करती है. उन्होंने कहा कि बांकुड़ा में 32 हजार प्रवासी मजदूरों को काम मिला. आदिवासी परिवारों से वादा किया कि जिनके पास घर नहीं है उन्हें पक्के मकान दिए जाएंगे. बंगाल में सरकार बनते ही मुफ्त राशन की अवधि को भी आगे बढ़ाएंगे. हम आदिवासी लोगों का बेहतर तरीके से ख्याल रख रहे हैं.
बता दें कि अमित शाह हाल ही में दो दिनों के बंगाल दौरे पर आए थे. अपने दौरे की शुरुआत बांकुड़ा के चतुरडीही गांव से करते हुए शाह ने आदिवासी विभीषण हांसदा के घर में खाना भी खाया था. साथ ही उन्होंने बंगाल में अपने दौरे के दौरान आदिवासियों का बड़ा चेहरा रहे बिरसा मुंडा की मूर्ति का शिलान्यास किया था.
बंगाल में आदिवासी वोटर की भूमिका
बिरसा मुंडा को पश्चिम बंगाल में आदिवासी समुदाय के लोग भगवान की तरह पूजते है. यही वजह है कि अमित शाह से लेकर ममता बनर्जी तक ने बिरसा मुंडा के जरिए बंगाल के आदिवासी समाज को साधने का दांव चला है. इस तरह से बीजेपी और टीएमसी दोनों की नजर आदिवासी समुदाय के वोट बैंक पर है, जो कुल आबादी का लगभग 11 फीसदी है. बंगाल चुनाव में जीत हासिल करने के लिए दलित, आदिवासी, अनुसूचित जाति, जनजातियों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है.
बता दें कि आदिवासी क्षेत्र में 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी का प्रदर्शन टीएमसी से काफी बेहतर रहा था. टीएमसी को जंगलमहल और नॉर्थ बंगाल में राजनीतिक तौर पर काफी नुकसान हुआ था. इस इलाके में आदिवासियों की संख्या ज्यादा है. पश्चिमी और उत्तर बंगाल में आदिवासियों ने बीजेपी के समर्थन में जमकर वोट किया था.
पश्चिम बंगाल में सुरक्षित 10 सीटों में से महज 4 सीटें ही टीएमसी जीत सकी थी, जबकि छह सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं. लोकसभा चुनाव के परिणाम से ही स्पष्ट हो गया था कि साल 2021 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी और बीजेपी के बीच कड़ा मुकाबला होगा. एक दशक पहले जो बीजेपी राज्य की राजनीति में हाशिए पर थी वो अब नंबर दो की पार्टी बन गई है और अब एन नंबर की पार्टी बनना चाहती है. वहीं, अब ममता बनर्जी भी आदिवासियों के बीच पहुंचकर अपने सियासी समीकरण को मजबूत करने में जुट गई हैं. ऐसे में देखना है कि इस बार के चुनाव में आदिवासियों का दिल कौन जीत पाता है.
कुबूल अहमद