लोकसभा चुनाव में शरद पवार ने पश्चिमी महाराष्ट्र में महायुती के नेताओं को जिस तरह से अपने पाले में लिया, उसी का रिपीट एपिसोड यानी 'मिशन तुतारी' अब विधानसभा चुनाव के पहले भी देखने को मिल सकता है. तुतारी शरद पवार की एनसीपी का चुनाव सिंबल है.लोकसभा चुनावों में, महा विकास अघाड़ी (MVA) ने महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन को चौंकाते हुए 48 में से 30 सीटों पर जीत हासिल की. अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी को सिर्फ एक सीट रायगढ़, मिली, जबकि शरद पवार गुट को आठ सीटें मिलीं. शरद पवार ने लोकसभा चुनाव में जिस तरह से पार्टी टूटने के बाद भी बड़ी जीत दर्ज की, उसके बाद अब सबकी नजर आगामी विधानसभा चुनावों पर हैं, जहां वे अजित गुट और बीजेपी के नेताओं को अपने पाले में लाने की तैयारी में हैं.
शरद पवार अपने मिशन की शुरुआत कोल्हापुर से कर चुके हैं. कोल्हापुर के कागल चुनावक्षेत्र में अजित पवार के मंत्री के खिलाफ अब बीजेपी के बागी नेता समरजितसिंह घाटगे को मैदान में उतारने के लिए शरद पवार तैयार हैं. 3 सितंबर को समरजितसिंह घाटगे अधिकारीक तौर पर राष्ट्रवादी कांग्रेस (शरदचंद्र पवार) में शामिल होंगे. कोल्हापुर के गैबी चौक में यह कार्यक्रम आयोजित किया गया है. खुद समरजितसिंह घाटगे ने इसकी पुष्टी भी की है. इतना ही नहीं, अब कोल्हापुर के कागल के बाद सतारा के वाई, सोलापूर के माढा, पुणे के इंदापूर और जुन्नर चुनावक्षेत्र में भी शरद पवार भतीजे अजित पवार और बीजेपी को मात देने के लिए नई रणनीती अपनाते दिखाई दे रहे हैं.
कौन हैं समरजित सिंह घाटगे?
41 वर्ष के समरजित सिंह घाटगे कोल्हापुर के राजर्षी शाहू महाराज के घराने से ताल्लुकात रखते हैं. पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट है. युवाओं में उनकी खासी पैठ है. दूसरी ओर सहकारीता क्षेत्र में वह काफी समय से काम कर रहे हैं. छत्रपती शाहू दूध एंड अग्रो प्रोड्यूसर कंपनी के संचालक हैं और पुणे म्हाडा के चेयरमैन भी रह चुके हैं. समरजित घाटगे पश्चिमी महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस के सबसे करीबी नेता माने जाते हैं. लेकिन महायुती में कागल चुनावक्षेत्र राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजित पवार) के हिस्से आने वाला है. और हसन मुश्रीफ जैसे कद्दावर नेता को अजित पवार नाराज नहीं करेंगे. यह ध्यान में रखते हुए समरजित सिंह घाटगे ने शरद पवार के साथ जाने का फैसला किया है. बीजेपी ने समरजित सिंह को एमएलसी का ऑफर दिया था. लेकीन उन्होंने वह ठुकरा दिया. बीजेपी के सारे नेताओं को उन्होंने अपने फैसले की जानकारी दी है. उनका मत परिवर्तन करने के लिए बीजेपी सांसद धनंजय महाडीक ने प्रयास जरूर किया लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली.
सतारा के वाई चुनावक्षेत्र में मकरंद पाटील को विकल्प मिल गया?
कोल्हापूर के बाद शरद पवार की पार्टी ने सतारा पर फोकस किया है. वहां पर शरद पवार की राजनीति के सख्त विरोधक रहे भूतपूर्व कांग्रेस नेता प्रतापराव भोसले के बेटे मदन भोसले पर दांव लगाने की कोशिश चल रही है. और इसलिए शरद पवार की एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल ने पिछले हफ्ते मदन भोसले से मुलाकात की. वाई चुनावक्षेत्र से मदन भोसले 2004 में विधायक रह चुके हैं. लेकीन बाद में शरद पवार की पार्टी के नेता मकरंद पाटिल ने यहां पर अपना खासा प्रभाव बनाकर उन्हें दूर रखा. लेकिन अब मकरंद पाटिल अजित पवार के साथ हैं, तो शरद पवार की पार्टी अब मदन भोसले को अपने साथ लेने की कोशिश में है. ध्यान देने वाली बात यह है कि मदन भोसले 2019 में ही बीजेपी में शामिल हुए हैं. शुगर मिल्स के लिए मदद मिलने की उनकी अपेक्षा थी, जो पूरी नहीं हुई. अब उनकी बेटी भी वाई चुनावक्षेत्र में काफी सक्रीय दिखती हैं.
माढा में बबन शिंदे की घरवापसी होगी?
सतारा के बाद माढा विधानसभा चुनावक्षेत्र में भी खलबली मची हुई है. क्योंकि छह बार विधायक रहे बबन शिंदे ने अजित पवार का दामन थामा था. लेकिन चुनाव से ठीक पहले अब बबन शिंदे और उनके बेटे रणजित सिंह ने पिछले हफ्ते में शरद पवार से पुणे स्थित निवास पर मुलाकात की. बबन शिंदे इस बार अपने बेटे रणजित को माढा से चुनाव में खड़ा करना चाहते हैं. लेकिन उसी वक्त बबन शिंदे के भतीजे धनराज भी शरद पवार की पार्टी के संपर्क में हैं. इसलिए माना जा रहा है कि राजनीतिक खतरा उठाने के बजाय बबन शिंदे घर वापसी के मूड में हैं.
हर्षवर्धन पाटिल भी नया रास्ता ढूंढने के फिराक में?
हर्षवर्धन पाटिल 1995 से 2009 तक चार चुनाव निर्दलीय के तौर पर जीते. 2014 के चुनाव से पहले वह कांग्रेस में शामील हुए. सहकारिता और संसदीय कार्यमंत्री के रूप में उन्होंने काम किया. जब भी महाराष्ट्र से मुख्यमंत्री के चेहरे की चर्चा हुई, तब हर्षवर्धन का नाम भी कयासों की लिस्ट में शामिल हुआ. लेकिन 2014 में जैसे कांग्रेस और एनसीपी का गठबंधन टूट गया, वैसे ही अजित पवार ने हर्षवर्धन के गढ को ही सेंध लगाई. अजित पवार ने अपने करीबी दत्ता भरणे को वहां से चुनाव लड़ाया, जिन्होंने जीत भी हासिल की.
ऐसा माना जाता है कि 2019 में अजित पवार ने सुप्रिया सुले की मदद करने के बदले में इंदापूर चुनावक्षेत्र छोड़ने का वचन दिया था. लेकिन बाद में अजित पवार ने उस वचन को नहीं निभाया. इसलिए लोकसभा चुनाव में जब अजित पवार की पत्नी खड़ी हुईं, तब हर्षवर्धन ने बागी रुख अपनाया. लेकीन फडणवीस की मध्यस्थता के बाद सब शांत हो गया. अब माना जा रहा है कि इस बार दत्ता भरणे पिछे हटने के मूड में नहीं हैं. उसी वक्त सुप्रिया सुले हर्षवर्धन के लिए सहानुभुती की भाषा बोल रही हैं. जिसके बाद माना जा रहा है कि इशारों-इशारों में शरद पवार हर्षवर्धन को अपनी पार्टी में आने का न्योता दे रहे हैं. अब हर्षवर्धन क्या करेंगे, इस पर सबकी निगाहें टिकी है.
जुन्नर में अतुल बेनके को मिलेगी एंट्री?
जब से लोकसभा चुनाव के नतीजे आए हैं, तब से अतुल बेनके शरद पवार की पार्टी में जाने के लिए तैयार हैं. लेकिन सांसद डॉ. अमोल कोल्हे ने उनका रास्ता रोक रखा है. इससे पहले तीन बार अतुल बेनके ने शरद पवार से मुलाकात की. रविवार को भी जब ओतूर स्थित संस्था में शरद पवार का कार्यक्रम था, तो अतुल बेनके ने उनके स्वागत के बड़े-बड़े पोस्टर्स लगवाए. इतना ही नहीं, उन्होंने अपने भाषण में भी शरद पवार और डॉ. कोल्हे के काम की काफी सराहना की. इतना ही नहीं, अतुल बेनके के पिता वल्लभ बेनके, जो चार बार विधायक रहे हैं, उनका शरद पवार से काफी करीबी रिश्ता रहा है. अब इसका फायदा अतुल बेनके को मिलेगा या नहीं, यह देखने वाली बात होगी.
अभिजीत करंडे