दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों से पहले ही संभावित गठबंधन को लेकर चर्चा शुरू हो गई है. नई दिल्ली सीट से कांग्रेस उम्मीदवार संदीप दीक्षित ने मतगणना से पहले आजतक के साथ बातचीत में कहा कि अगर चुनाव नतीजों के बाद दिल्ली में सरकार बनाने के लिए गठबंधन की स्थिति बनती है, तो इस पर फैसला आलाकमान लेगा. उन्होंने कहा कि अभी मतगणना होने दें, फिर देखेंगे कौन जीतता है. हमें आइडिया नहीं अभी इस बारे में. हम ये फैसला नहीं ले सकते.
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आम आदमी पार्टी (AAP), भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस के बीच तीन-तरफा लड़ाई होती दिख रही है. AAP लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करने की कोशिश में है, वहीं भाजपा राष्ट्रीय राजधानी में अपना 27 साल का सूखा खत्म करना चाहती है और कांग्रेस पुनरुद्धार का प्रयास कर रही है. ऐसे में तीनों दलों के बीच मुकाबला कड़ा होने की उम्मीद है.
दिल्ली में त्रिकोणीय मुकाबला होने की वजह से एक संभावना यह भी बनती है कि कोई भी एक दल या गठबंधन पूर्ण बहुमत हासिल ना कर पाए. यानी दिल्ली को त्रिशंकु विधानसभा का सामना करना पड़ सकता है. त्रिशंकु विधानसभा तब होती है जब कोई भी राजनीतिक दल या गठबंधन सरकार बनाने के लिए आवश्यक आधी से अधिक सीटें नहीं जीतता है. दिल्ली के मामले में, 70 विधानसभा सीटों के साथ, किसी पार्टी या गठबंधन को साधारण बहुमत के लिए कम से कम 36 सीटों की आवश्यकता होती है.
दिल्ली में दो बार हो चुका है AAP और कांग्रेस का गठबंधन
बता दें कि दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी पहले भी सरकार गठन के लिए चुनाव बाद गठबंधन कर चुकी हैं. साल 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी की 31 सीटें आई थीं, आम आदमी पार्टी को 28 सीटें मिली थीं और कांग्रेस की 8 सीटें आई थीं. तब AAP और कांग्रेस ने चुनाव बाद गठबंधन करके दिल्ली में सरकार गठन की थी और अरविंद केजरीवाल पहली बार मुख्यमंत्री बने थे. हालांकि, यह गठबंधन सिर्फ 49 दिनों तक ही टिक पाया था. इसके बाद दोबारा चुनाव हुए, तो आम आदमी पार्टी ने 67 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया. बीजेपी की 3 सीटें आईं और कांग्रेस खाता नहीं खोल सकी. 2020 के विधानसभा चुनाव में भी AAP ने 62 सीटों के साथ एक तरफा जीत दर्ज की. बीजेपी की 8 सीटें आईं और कांग्रेस एक बार फिर खाता खोलने में विफल रही थी.
वहीं पिछले साल लोकसभा चुनावों के दौरान भी राष्ट्रीय राजधानी में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने बीजेपी के खिलाफ हाथ मिलाया था और गठबंधन में चुनाव लड़ा था. आम आदमी पार्टी ने 4 और कांग्रेस ने 3 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि, दोनों ही दलों को खाली हाथ रहना पड़ा और दिल्ली में बीजेपी ने लगातार तीसरी बार दिल्ली में 7-0 का स्कोर किया. अब सवाल उठता है कि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में क्या विकल्प बचते हैं. यदि कोई भी पार्टी दिल्ली में बहुमत के लिए जरूरी 36 विधायकों की संख्या तक नहीं पहुंचती है, तो सरकार बनाने की जिम्मेदारी उपराज्यपाल पर आती है, जो एक विशिष्ट प्रक्रिया का पालन करते हैं.
1. सबसे बड़ी पार्टी को सरकार गठन के लिए आमंत्रित करना
उपराज्यपाल सबसे अधिक सीटें जीतने वाली पार्टी के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं. पार्टी को अन्य दलों या स्वतंत्र विधायकों से समर्थन हासिल करके बहुमत साबित करने के लिए लगभग 10 दिन का समय दिया जाता है.
2. बाहरी समर्थन मांगना
यदि किसी पार्टी के पास बहुमत नहीं है, तो वह औपचारिक गठबंधन बनाए बिना अन्य पार्टियों से बाहरी समर्थन मांग सकती है. बाहरी समर्थन देने वाली पार्टी आमतौर पर सरकार में शामिल नहीं होती है, जिससे सरकार की स्थिति नाजुक हो जाती है और इसके किसी भी वक्त गिरने का खतरा होता है.
3. विधानसभा भंग करके दोबारा चुनाव
यदि कोई भी पार्टी दी गई समय सीमा के भीतर बहुमत साबित नहीं कर पाती है, तो उपराज्यपाल विधानसभा को भंग कर देते हैं और नए सिरे से चुनाव कराते हैं.
अल्पमत सरकार क्या है?
अल्पमत सरकार तब बनती है जब कोई पार्टी आवश्यक बहुमत से कम होने के बावजूद शासन करती है. इस तरह के मामलों में: सत्तारूढ़ दल को विधायी समर्थन के लिए बाहरी दलों पर निर्भर रहना पड़ता है. अल्पमत सरकार तब तक विधानसभा में कोई बिल पास कराने के लिए संघर्ष करती है, जब तक कि विपक्षी दल सदन से वॉक आउट न करें या अनुपस्थित न रहें या सरकार के पक्ष में मतदान न करें. ऐसी सरकारें अस्थिर होती हैं और अक्सर अपना कार्यकाल पूरा करने में विफल रहती हैं.
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