बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन पर भड़का विपक्ष, चुनाव आयोग से मिला 11 पार्टियों का डेलिगेशन

कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (RJD), समाजवादी पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) समेत 11 विपक्षी दलों के नेताओं ने मंगलवार को निर्वाचन सदन (ECI कार्यालय) में पहुंचकर इस प्रक्रिया पर आपत्ति जताई और इसे चुनावी समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया.

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बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट रिविजन किया जा रहा है (प्रतीकात्मक तस्वीर) बिहार चुनाव से पहले वोटर लिस्ट रिविजन किया जा रहा है (प्रतीकात्मक तस्वीर)

अमित भारद्वाज

  • नई दिल्ली,
  • 02 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 11:05 PM IST

आगामी बिहार विधानसभा चुनावों से ठीक पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण को लेकर विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग के फैसले पर कड़ा ऐतराज जताया है. कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (RJD), समाजवादी पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) समेत 11 विपक्षी दलों के नेताओं ने मंगलवार को निर्वाचन सदन (ECI कार्यालय) में पहुंचकर इस प्रक्रिया पर आपत्ति जताई और इसे चुनावी समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया.

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दरअसल, चुनाव आयोग ने हाल ही में बिहार में वोटर लिस्ट का विशेष गहन पुनरीक्षण करने का आदेश दिया है, जबकि राज्य में 2-3 महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं. विपक्षी दलों का कहना है कि यह प्रक्रिया इतनी कम समय में पूरी नहीं की जा सकती और इससे लाखों मतदाताओं को वोट देने से वंचित किया जा सकता है, खासकर गरीब और हाशिए पर खड़े समुदायों को.

कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बिहार में लगभग 7.75 करोड़ मतदाता हैं और इतनी बड़ी संख्या की जांच कुछ महीनों में करना असंभव है. पिछली बार जब ऐसी पुनरीक्षण प्रक्रिया 2003 में हुई थी, तब लोकसभा चुनाव एक साल बाद और विधानसभा चुनाव दो साल बाद थे. लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव सिर पर हैं.

उन्होंने यह भी बताया कि इस बार आम जनता से कई तरह के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, जिन्हें गरीब और पिछड़े वर्ग के लोग इतनी जल्दी जुटा नहीं सकते. इससे उनका नाम मतदाता सूची से हटने का खतरा है.

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प्रतिनिधिमंडल ने आयोग से क्या कहा?

दिल्ली स्थित निर्वाचन सदन में 18 सदस्यों का विपक्षी प्रतिनिधिमंडल चुनाव आयोग से मिला. इसमें अभिषेक मनु सिंघवी, आरजेडी के मनोज झा, सीपीआई (एमएल) के दीपांकर भट्टाचार्य, बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश कुमार समेत अन्य शामिल थे.

डॉ. सिंहवी ने बताया कि आयोग की नई गाइडलाइन के तहत प्रत्येक पार्टी से केवल दो लोगों को ही बैठक में शामिल होने दिया गया, जिससे जयराम रमेश और पवन खेड़ा जैसे वरिष्ठ नेताओं को बाहर इंतजार करना पड़ा.

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