SIR: ममता ने मतुआ समुदाय को बनाया हथियार, क्या घुसपैठ के मुद्दे को कर पाएंगी काउंटर?

पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव की सियासी सरगर्मी के बीच मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने में जुट गई हैं. यही वजह है कि एसआईआर प्रक्रिया के बीच ममता बनर्जी ने मतुआ समुदाय को साधने के लिए बड़ा सियासी दांव चला, जिसे बीजेपी के घुसपैठ वाले मुद्दे को काउंटर करने की रणनीति मानी जा रही है.

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बंगाल में ममता बनर्जी की नजर मतुआ वोटों पर है (Photo-TMC) बंगाल में ममता बनर्जी की नजर मतुआ वोटों पर है (Photo-TMC)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 27 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 3:38 PM IST

पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की सियासत गरमा गई है. चुनाव आयोग द्वारा जारी एसआईआर (SIR) प्रक्रिया के बीच मतुआ समुदाय को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी साधने में जुट गई हैं. ममता बनर्जी ने मतुआ समुदाय के गढ़ वाले उत्तरी 24 परगना के बनगांव इलाके में 3 किलोमीटर तक पैदल मार्च किया. इस दौरान उन्होंने भरोसा दिया कि वह मतुआ समाज के साथ पूरे तन-मन से खड़ी हैं.

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मतुआ समुदाय को लुभाने के लिए ममता बनर्जी ने मतुआ समुदाय के मुख्यालय में एसआईआर विरोधी रैली की. इस रैली के बहाने वह बीजेपी के वोटबैंक में सेंधमारी करती नजर आईं. उन्होंने कहा कि एसआईआर प्रक्रिया में अगर असली मतदाताओं के नाम हटाए गए, तो वह किसी को नहीं बख्शेंगी, बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख देंगी.

मतुआ समुदाय ने पिछले कुछ चुनावों में बीजेपी को वोट किया है. ममता बनर्जी ने अपनी रैली ऐसे समय की है, जब बीजेपी और अन्य हिंदू संगठन पिछले कुछ महीनों से लगातार सीएए (CAA) के लिए आवेदन अभियान चला रहे हैं. ऐसे में ममता बनर्जी ने एसआईआर से न डरने का आग्रह किया और उन्होंने कहा कि वह उनके साथ खड़ी हैं.

बीजेपी बंगाल में बना रही घुसपैठ का मुद्दा

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी ने बड़ा प्लान तैयार किया है. बिहार की तरह बंगाल में घुसपैठ के मुद्दे को सियासी धार देने की कवायद में जुटी है. एसआईआर प्रक्रिया पर टीएमसी और कांग्रेस द्वारा खड़े किए जा रहे सवाल के जवाब में बीजेपी यह बताने में जुटी है कि विपक्ष अवैध रूप से देश में घुसे बांग्लादेशियों को बचाना चाहता है.

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पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) में अवैध घुसपैठियों का मुद्दा गरमा गया है. बीजेपी बंगाल में अवैध घुसपैठ का मुद्दा उठाकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास कर रही है. पीएम मोदी से लेकर अमित शाह सहित बीजेपी के तमाम नेता घुसपैठ का मुद्दा हर जनसभा में उठा रहे हैं और बता रहे हैं कि ममता सरकार मुस्लिम वोटों के तुष्टीकरण में घुसपैठियों को बचा रही है.

बीजेपी को काउंटर करने का ममता प्लान

एसआईआर की प्रक्रिया और घुसपैठ के मुद्दे पर गरमाई सियासत के बीच ममता बनर्जी ने मतुआ समुदाय को सियासी हथियार बनाने का दांव चला. इसकी वजह है कि मतुआ समुदाय बांग्लादेश से आकर बंगाल में बसे हैं. ऐसे में अब SIR प्रक्रिया ने इनकी चिंता बढ़ा दी है. समाज को डर है कि कागजात के अभाव में कहीं वोटर लिस्ट से उनका नाम कट न जाए और उनकी नागरिकता पर संकट न खड़ा हो जाए.

ममता बनर्जी ने मतुआ समुदाय के गढ़ में हुंकार भरी और कहा कि किसी को डरने की जरूरत नहीं है. अगर असली मतदाताओं के नाम हटाए गए, तो वह किसी को नहीं बख्शेंगी, बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख देंगी. ममता बनर्जी के कहने का मतलब यह भी था कि टीएमसी के किसी भी कार्यकर्ता के ऊपर हमला हुआ तो हम बर्दाश्त नहीं करेंगे.

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ममता मतुआ बाहुल्य इलाकों में रैली कर रही थीं. यह इलाका बीजेपी का गढ़ रहा हैय इसलिए यहां से ममता ने केंद्र सरकार पर हमला बोला. उन्होंने लोगों से कहा, एसआईआर एक साजिश है, यह पीछे के रास्ते से एनआरसी करवाने की साजिश है. ममता ने बीएसएफ को निशाने पर लिया. उन्होंने कहा, घुसपैठियों के बंगाल में होने का प्रचार किया जा रहा है, लेकिन ये आए कैसे? इन्हें बंगाल में घुसने किसने दिया? इस तरह से ममता बनर्जी ने अवैध घुसपैठ के लिए केंद्र सरकार पर दोष मढ़ दिया.

ममता को क्यों याद आया मतुआ समाज?

ममता बनर्जी ने साल 2011 में मतुआ समाज के दम पर ही लेफ्ट के किले को ध्वस्त करने में कामयाबी हासिल की, लेकिन बीजेपी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद से मतुआ समुदाय टीएमसी से दूर हुआ. 2021 के विधानसभा चुनाव में मतुआ समाज ने बीजेपी को एकमुश्त वोट दिया था, जिसके चलते मतुआ बेल्ट की कई सीटें ममता बनर्जी हार गई थीं.

बंगाल में लगभग एक करोड़ अस्सी लाख मतुआ मतदाता हैं. उत्तर 24 परगना का ठाकुरनगर इनका गढ़ है. प्रदेश की 294 विधानसभा सीटों में से लगभग 40 सीट पर मतुआ समुदाय प्रत्यक्ष तौर पर प्रभाव रखता है. 

मतुआ समुदाय बुहल सीटें उत्तर 24 परगना, नदिया और दक्षिण 24 परगना जिले की हैं. इसके अलावा 20 ऐसी सीटें हैं, जहां मतुआ समुदाय का अप्रत्यक्ष प्रभाव है. ये सीटें हुगली जिले के अलावा उत्तर बंगाल के कूचबिहार और आसपास के इलाकों में हैं. 2021 के चुनाव नतीजे को देखें तो बीजेपी ने इन जिलों में प्रदेश के दूसरे हिस्सों से बेहतर नतीजे हासिल किए हैं.

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मतुआ समदाय की नागरिकता का मुद्दा

मतुआ समाज के वोटर को मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए उन्हें आधिकारिक नागरिक का दर्जा चाहिए. हालांकि सीएए के लिए आवेदन करने का मतलब है औपचारिक रूप से खुद को बांग्लादेशी विदेशी नागरिक घोषित करना, जिससे प्रतीक्षा अवधि के दौरान उनकी कानूनी स्थिति असुरक्षित और अनिश्चित हो जाएगी. इसी टेंशन को खत्म करने के लिए केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने सीएए आवेदन केंद्र शुरू किए हैं, जहाँ से अखिल भारतीय मतुआ महासंघ नागरिकता के लिए आवेदन करने वालों को प्रमाण पत्र जारी कर रहा है.

ममता बनर्जी ने बनगांव रैली के दौरान ऐसे प्रमाण पत्र जारी करने पर भी सवाल उठाकर उनके बीच अपनी पैठ जमाने की कोशिश की है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि एसआईआर के नाम पर एनआरसी लाने की कोशिश की जा रही है. इस तरह मतुआ समुदाय के वोट बैंक पर ममता की नजर है. अब CAA से बीजेपी को लीड मिली तो SIR प्रक्रिया से मतुआ समाज मायूस बताया जा रहा है.

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