उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर बुधवार को उपचुनाव होना है. 9 सीटों की यह लड़ाई योगी बनाम अखिलेश की हो चुकी है, जिसे अगले विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है. ऐसे में दोनों ही नेताओं ने उपचुनाव में पूरा जोर लगा दिया है. यूपी का उपचुनाव किसी के लिए नाक की लड़ाई है, तो किसी के लिए साख की लड़ाई है.
कहा जा रहा है कि ये 2027 का सेमीफाइनल है, जो यूपी की सत्ता के सिंहासन का रास्ता तय करेगा. ये प्री परीक्षा है यूपी के अगले सीएम को लेकर, जहां योगी आदित्यनाथ और अखिलेश के बीच आर-पार की जंग है.
सवाल सिर्फ नौ सीटों पर उपचुनाव का नहीं है, सवाल सिर्फ प्रत्याशियों की जीत हार का नहीं है. सीधी चुनौती योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव के बीच है और केंद्र पर है 2027 की लखनऊ विजय. ये परीक्षा है योगी आदित्यनाथ के बंटेंगे तो कटेंगे नारे की, जिसकी शुरुआत यूपी से हुई और जिसका प्रयोग हरियाणा के बाद झारखंड और महाराष्ट्र में भी किया जा रहा है.
अखिलेश के 'PDA' की परीक्षा
ये लड़ाई अखिलेश यादव के पीडीए फॉर्मूले की भी है, जिसके दम पर अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी से ज्यादा सीटे यूपी में जीती. उप चुनाव में यह प्रयोग सफल रहा तो 2027 तक इसी लाइन पर राजनीति आगे बढ़ेगी. विधानसभा उपचुनाव की नौ सीटों पर 90 प्रत्याशियों के बीच मुकाबला है. सभी नौ सीटों पर बीजेपी-एसपी और बीएसपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है, लेकिन सीधी टक्कर बीजेपी और एसपी के बीच ही है. अगर 9 सीटों पर 2022 के चुनाव की बात करें तो 9 सीटों पर 4 सीटें समाजवादी पार्टी के पास हैं. जबकि एनडीए के पास 5 सीटें हैं, जिसमें बीजेपी के पास तीन और सहयोगी दलों के पास दो सीटें हैं.
जातिगत फैक्टर्स का रखा गया ख्याल
टिकटों के बंटवारे में जहां अखिलेश ने मुस्लिम कार्ड खेला है तो वहीं बीजेपी ने ओबीसी पर दांव लगाया है. बीजेपी ने सबसे ज्यादा 5 उम्मीदवार ओबीसी उतारे हैं. जबकि एक दलित और 3 अगड़ी जाति के हैं. मुस्लिम को बीजेपी ने कोई टिकट नहीं दिया है. वहीं समाजवादी पार्टी ने सबसे ज्यादा 4 उम्मीदवार मुस्लिम उतारे हैं. इसके अलावा ओबीसी 3, दलित 2 उम्मीदवार हैं जबकि अगड़ी जाति को एक भी टिकट नहीं दिया है.
चुनाव प्रचार में किसी ने नहीं छोड़ी कोई कसर
साफ है कि जिस ओबीसी जाति जनगणना को लेकर विपक्ष बीजेपी को घेर रहा है, वहां बीजेपी ने दांव लगाया है तो वहीं अखिलेश पीडीए को बैलेंस करने की कोशिश में दिखे हैं. चुनाव के नतीजे यूपी में विधानसभा चुनाव 2027 की राजनीतिक दशा और दिशा तय करेंगे. यही वजह है कि एसपी मुखिया हों या यूपी सरकार के प्रमुख योगी, दोनों ने प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी.
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मैदान में डटे रहे स्टार प्रचारक
जंग कितनी कांटे की है, इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि योगी ने पिछले 5 दिन में 15 रैली की हैं. जबकि अखिलेश की 14 सभाएं हुई हैं. योगी सरकार ने नौ सीटों पर सरकार के 30 मंत्रियों की टीम-30 को मैदान में उतारा. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी सभी नौ सीटों पर एक-एक चुनावी सभा को संबोधित किया. उनका पूरा जोर फूलपुर और मझवां सीट पर रहा है. उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने भी उपचुनाव में नौ सीटों पर एक-एक रैली की. मैनपुरी की करहल सीट पर अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव ने कमान संभाल रखी थी. चाचा शिवपाल यादव कटेहरी में डटे रहे.
ऐसा पहली बार है जब विपक्ष में रहते हुए अखिलेश यादव ने उप चुनाव में एक-एक सीट पर रैली की है. अखिलेश यादव ने करहल विधानसभा क्षेत्र में तीन बार एसपी प्रत्याशी तेज प्रताप यादव के समर्थन में चुनाव प्रचार किया है. एक बार रोड शो और चुनावी रैली की है. इससे पहले आजमगढ़, रामपुर जैसी सीटों पर उपचुनाव में अखिलेश प्रचार पर नहीं निकले थे. जो बताता है इस बार अखिलेश यादव ने भी पूरा जोर लगा दिया है.
मतदाताओं के भरोसे नेताओं का भाग्य
साफ है दोनों ओर से पूरा जोर लगा दिया गया है. अब मतदाताओं को तय करना है कि वो किस पर भरोसा करते हैं. वैसे यूपी में एक और सीधी जंग योगी और अखिलेश यादव की है, तो वहीं दोनों ही पार्टियों को खतरा अपनों से भी है. इसके अलावा कई दल ऐसे भी हैं जो किसी का भी खेल बिगाड़ सकते हैं.
यूपी उपचुनाव में कौन बिगाड़ेगा खेल? क्या मायावती वापस पाएंगी खोई हुई जमीन? बीजेपी के साथ आने पर क्या जयंत चौधरी दिखा पाएंगे अपना दम? क्या ओवैसी बनेंगे मुस्लिम का ट्रंप कार्ड?
यूपी में भले ही सीधी जंग अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ के बीच हो. लेकिन यहां कई फैक्टर हैं जो किसी का भी खेल बिगाड़ सकते हैं. यूपी लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा बीजेपी के अंदरूनी कलह की थी. जिसके बाद दिल्ली दरबार में बैठकों को दौर चला. अब ये चुनाव तय करेंगे कि क्या बीजेपी में अब सब कुछ ठीक हो चुका है. क्योंकि अखिलेश लगातार डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य को लेकर योगी को घेरने की कोशिश करते रहते हैं. जबकि केशव प्रसाद मौर्य खुलकर अखिलेश का विरोध करते नजर आते हैं.
अंदरूनी चुनौती से जूझ रहे दोनों दल
साफ है अखिलेश यादव लगातार इस मुद्दे को उठा रहे हैं. केंद्र और योगी के बीच खींचतान का दावा कर रहे हैं. ऐसे में इस उपचुनाव में योगी के सामने चुनौती अखिलेश के दावों को गलत साबित करने की है.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी और संघ के बीच खींचतान की अटकलें भी सामनें आईं. लेकिन मथुरा में योगी आदित्यनाथ और संघ प्रमुख मोहन भागवत के बीच बैठक हुई थी. सूत्रों की मानें तो उस बैठक में भी यूपी उपचुनाव को लेकर मंथन हुआ था. जिसके बाद संघ ने भी उपचुनाव को लेकर अपनी रणनीति तय की. ऐसे में संघ के लिए भी ये चुनाव किसी परीक्षा से कम नहीं हैं.
वैसे अंदरूनी चुनौती अखिलेश के सामने भी कम नहीं हैं. सीटों को लेकर समाजवादी पार्टी औऱ कांग्रेस के बीच जमकर खींचतान हुई है. लेकिन आखिर में अखिलेश यादव 9 की 9 सीट पर अपने प्रत्याशी उतारने में कामयाब रहे. पहले कांग्रेस ने इसका खुलकर विरोध किया, लेकिन फिर सियासी खेल को समझते हुए वो शांत हो गए. लेकिन उसके सामने भी लड़ाई यूपी की खोई जमीन को वापस पाने की है. अब सवाल ये कि क्या कांग्रेस के नेता समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी का समर्थन करेंगे या फिर अंदरखाने कुछ सीटों पर खेल बिगाड़ेंगे.
दलित वोटों पर सबकी निगाहें
उधर चुनाव में दलित वोटबैंक को लेकर भी तस्वीर साफ होनी है. वो वोटबैंक को इस वक्त यूपी की सियासत में सबसे ज्यादा स्विंग कर रहा है. यही वजह है कि उपचुनाव से दूरी बनाए रखने वाली मायावती ने इस बार नौ की नौ सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं. जिनके सामने अपनी खोई हुई जमीन को बचाने की चुनौती है. लेकिन ना ही मायावती ने कोई रैली की है और ना ही भतीजे आकाश आनंद ने कोई मोर्चा संभाला है. दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की साख भी दांव पर लगी है. मीरापुर, कुंदरकी, खैर सहित कई सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार रखे हैं. नगीना में मुस्लिम वोटों के दम पर जीत दर्ज कर सांसद बने चंद्रशेखर के लिए दलित वोट को साधने का चैलेंज है.
उधर अखिलेश की नजर जहां मुस्लिम वोटबैंक को पूरी तरह खींचने की है तो यहां पर सेंधमारी के लिए औवैसी भी तैयार है. असदुद्दीन ओवैसी ने मीरापुर, कुंदरकी और गाजियाबाद विधानसभा सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. तीनों ही विधानसभा सीटें मुस्लिम बहुल मानी जाती है. इसीलिए AIMIM ने पूरी ताकत लगी है. चुनाव प्रचार के अंतिम दिन ओवैसी खुद मीरापुर सीट पर जनसभा कर मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में करने की हरसंभव कोशिश की. इतना ही नहीं मुजफ्फरनगर दंगे और फिलिस्तीन तक का जिक्र कर डाला.
जाट वोटों पर जयंत चौधरी की परीक्षा
जयंत चौधरी की परीक्षा भले ही मीरापुर विधानसभा सीट पर है, लेकिन जाट वोटों को बीजेपी के पक्ष में ट्रांसफर कराने की चुनौती है. 2022 में मीरापुर सीट सपा के समर्थन से आरएलडी जीतने में कामयाब रही थी, लेकिन इस बार आरएलडी का बीजेपी के साथ गठबंधन है. मीरापुर में जयंत ने जिस तरह से जाट और गुर्जर के बजाय पाल समुदाय के प्रत्याशी को उतारकर सियासी प्रयोग किया है, उसके चलते आरएलडी के लिए यह मुकाबला आसान नहीं है.
बहरहाल यूपी उपचुनाव कई लोगों के लिए अस्तित्व की लड़ाई है. जहां सामने खड़े दुश्मन से ज्यादा खतरा अपनों से है.
आजतक ब्यूरो