अनुच्छेद 370 के खत्म होने के साथ ही जम्मू-कश्मीर और वहां की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती सुर्खियों में हैं. वह पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के संस्थापक मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी हैं. मुफ्ती मोहम्मद सईद का नाम उन नेताओं में लिया जाता है जिनके गृहमंत्री पद पर रहने के दौरान कश्मीर से कश्मीरी पंडितों का विस्थापन शुरू हुआ था. इसके अलावा उनकी एक बेटी के अपहरण के बाद खलबली मच गई थी. आइए जानें, कौन थे मुफ्ती मोहम्मद सईद, कश्मीर में क्या रहा उनका रोल.
तीन साल पहले 7 जनवरी 2016 को 79 साल की उम्र में मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन हो गया था. उस दौरान वह बीजेपी के साथ गठबंधन करके करीब नौ महीने से जम्मू-कश्मीर की सरकार चला रहे थे. वे राज्य के 12वें मुख्यमंत्री थे. जम्मू-कश्मीर के अलावा केंद्र की सियासत में भी सईद का नाम लिया जाता है. उन्हें एक मृदुभाषी और सौम्य नेता के रूप में देखा जाता था लेकिन एक घटना ने उनकी छवि पर बड़ा आघात किया था.
ये वो दौर था जब वो वीपी सिंह की अगुवाई वाली सरकार में देश के पहले मुस्लिम गृह मंत्री बने थे. उस दौरान उनकी तीन बेटियों में से एक रूबिया का अपहरण हो गया था. राजनीतिक हलके में इसके बाद खलबली मच गई थी. फिर उनकी बेटी को रिहा करने के एवज में पांच आतंकवादियों को छोड़ने की बात की गई. उन्होंने तब आतंकी संगठनों की मांग मान ली और आतंकवादियों के बदले बेटी छुड़ा लिया था.
इस पूरी घटना का जम्मू-कश्मीर की राजनीति में दूरगामी प्रभाव पड़ा. बताते हैं कि दो दिसंबर 1989 को राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार बनी थी. सरकार बनने के महज पांच दिन के भीतर रूबिया का अपहरण हो गया था. जब रूबिया का अपहरण हुआ तो मुफ्ती मोहम्मद सईद केंद्र में गृह मंत्री थे, उसी दौर में घाटी में आतंकवाद ने सिर उठाना शुरू कर दिया. फिर 1990 में ही वादियों से कश्मीरी पंडितों का विस्थापन शुरू हो गया था.
उनके बारे में ये भी कहा जाता था कि वो अपनी राजनीतिक निष्ठाओं को बदलते रहते थे. साल 1999 में उन्होंने अपनी बेटी महबूबा मुफ्ती के साथ खुद की राजनीतिक पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) बना ली. इससे पहले मुफ्ती ने लंबा समय कांग्रेस में बिताया था. इससे पहले 1950 के समय में वो डेमोक्रेटिक नेशनल कॉन्फ्रेंस के सदस्य रहे. नेशनल कांफ्रेंस में उनके प्रतिद्वंद्वी फारूक अब्दुल्ला थे. सईद ने अपनी पार्टी के गठन के तीन साल के भीतर ही कांग्रेस के समर्थन से प्रदेश में सरकार बनाई. फिर 2008 के विधानसभा चुनाव में उमर अब्दुल्ला की पार्टी जीती और पीडीपी बुरी तरह हार गई. राजनीतिक गलियारों में ये भी कहा जाता है कि महबूबा मुफ्ती ने अपने पिता के पूर्ण कार्यकाल के लिए बीजेपी को भी मनाया था.
यहां से की थी पढ़ाई
अनंतनाग जिले के बिजबिहाड़ा में 12 जनवरी 1936 को पैदा हुए सईद श्रीनगर के एस पी कॉलेज के बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़े. यहां से उन्होंने कानून और अरब इतिहास में डिग्री हासिल ली. सईद ने 1962 में अपने जन्मस्थान से DNC की कमान में चुनाव जीता. साल 1967 में भी दोबारा यहीं से जीते. साल 1972 में वो कश्मीर में कैबिनेट मंत्री बने फिर विधान परिषद में कांग्रेस पार्टी के नेता बन गए. साल 1975 में कांग्रेस विधायक दल का नेता और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया, लेकिन अगले दो चुनाव हार गए.
साल 2002 में मात्र 16 सीटें लेकर वो प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. उस समय जम्मू कश्मीर कई मोर्चों पर समस्याओं का सामना कर रहा था. संसद पर हमले के बाद सेना और पाकिस्तान एक दूसरे की आंखों में आंखें डाले खड़े थे और राज्य में निजी स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लग गए. एक दूरदर्शी राजनीतिक रणनीतिकार के रूप में देखे जाने वाले मुफ्ती ने बड़े सधे तरीके से राजनीतिक समीकरणों को संतुलित किया था. करीब दो दशकों में पहली बार मुफ्ती ने PDP के मंच से तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को बुलावा दिया था. वो यहां श्रीनगर में एक रैली को संबोधित करने आए थे. ये शांति के नए प्रयास के तौर पर था.
इससे अग्रिम इलाकों से सेना की वापसी, सीमाओं पर संघर्षविराम, पोटा हटाने और राजनीतिक कैदियों की रिहाई के रूप में हुई. इससे भारत और पाकिस्तान के बीच व कश्मीर में अलगाववादियों और केंद्र के बीच सीधा संपर्क कायम हुआ. विभाजित कश्मीर के दोनों हिस्सों में श्रीनगर और मुजफ्फराबाद के बीच बस सेवा शुरू होने के समय भी मुफ्ती राज्य के मुख्यमंत्री थे.