History Of Women's Cricket: क्रिकेट को हमेशा "जेंटलमैन का खेल" कहा गया, लेकिन वक्त ने साबित कर दिया कि यह सिर्फ मर्दों की दुनिया नहीं है. आज महिलाएं इस खेल की नई पहचान बन चुकी हैं. इतिहास रचते हुए भारत ने आईसीसी महिला वनडे वर्ल्ड कप में पहली बार खिताब जीता, साउथ अफ्रीका को 52 रनों से हराकर.
डीवाई पाटिल स्टेडियम में खेले गए इस फाइनल में शेफाली वर्मा की तूफानी 87 रन की पारी, दीप्ति शर्मा की शानदार 58 रन और फिर उनके घातक 5 विकेट ने टीम इंडिया को गौरव दिलाया. लेकिन ये जीत सिर्फ एक मैच की कहानी नहीं ये उन पीढ़ियों की मेहनत, संघर्ष और सपनों का नतीजा है जिन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि चाहे क्रिकेट हो या कुश्ती महिलाएं अब हर मैदान फतह करने के लिए तैयार हैं.
साल 1745 में पहला महिला क्रिकेट मैच खेला गया था, लेकिन इससे पहले महिला क्रिकेट की शुरुआत कैसे हुई, आइए आपको बताते हैं. महिलाएं बहुत पहले से क्रिकेट खेलती आ रही हैं. पहला महिला मैच 1745 में इंग्लैंड के सरे में खेला गया था. रीडिंग मर्करी अख़बार के मुताबिक, यह मैच ब्रैमली और हैम्बलडनके बीच हुआ था.
इस मैच के बाद से महिला क्रिकेट धीरे-धीरे लोकप्रिय होने लगा है धीरे-धीरे शहरों या गांवों की महिलाएं भी क्रिकेट मैच खेलने लगीं. इसके बाद 1890 से 1918 के बीच 140 से ज़्यादा महिला क्रिकेट क्लब बन गए. महिलाएं में क्रिकेट के प्रति रुचि और उनकी शानदार पर्फॉमेंस को देखते हुए विमेन्स क्रिकेट एसोसिएशन खोलने के फैसला लिया गया और फिर 1926 विमेन्स क्रिकेट एसोसिएशन की शुरुआत हुई. जिससे इंग्लैंड में महिला क्रिकेट को एक संगठित रूप मिला और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताएं शुरू हुईं.
पहले क्या पहनकर मैच खेलती थी महिलाएं
1900 से पहले महिलाएं लंबी स्कर्ट, ब्लाउज़ और कभी-कभी टोपी या बोनट पहनकर खेलती थीं. कहा जाता है कि क्रिस्टीना विल्स नाम की एक खिलाड़ी ने राउंड-आर्म गेंदबाज़ी की शैली शुरू की थी, क्योंकि जब वह अंडरआर्म गेंद फेंकती थीं, तो गेंद उनकी स्कर्ट में उलझ जाती थी.
महिला क्रिकेट के लिए ये टीम थी खास
ओरिजिनल इंग्लिश लेडी क्रिकेटर्स की खूब चर्चा होती थी. इस टीम में 22 महिलाओं 1890 में इंग्लैंड के अलग-अलग काउंटी मैदानों में प्रदर्शनी मैच खेलने निकली थी. यह टीम इसलिए खास थी क्योंकि इन्हें खेलने के बदले में भुगतान भी किया जाता था, जो उस ज़माने में बेहद असामान्य बात थी. उस दौर में ज़्यादातर महिलाएं क्रिकेट सिर्फ शौक के लिए खेलती थीं, न कि पेशेवर तौर पर.
स्कूलों में महिला क्रिकेट अनुचित
19वीं सदी के आखिर तक महिला क्रिकेट की ज़्यादातर टीमें अमीर परिवारों की महिलाओं से बनी होती थीं. अमीर परिवारों की लड़कियों को रोडियन और सेंट लियोनार्ड्स जैसे कुछ आधुनिक स्कूलों में क्रिकेट खेलने की आज़ादी तो मिलती थी, लेकिन कई स्कूलों ने इसे महिलाओं के लिए अनुचित खेल कहकर पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया था.
फैकट्री में काम करने वाली महिलाओं की टीमें
1914 से पहले कुछ कंपनियां जैसे कैडबरी, राउनट्रीज़ और बूट्स अपनी महिला कर्मचारियों के लिए क्रिकेट खेल का आयोजन करने लगी थीं, ताकि काम के बीच वे कुछ मनोरंजन कर सकें. फिर जब पहला विश्व युद्ध शुरू हुआ और पुरुष सैनिक मोर्चे पर चले गए, तो फैक्ट्रियों में काम करने वाली महिलाओं ने भी अपनी-अपनी क्रिकेट टीमें बना लीं. ये मैच न सिर्फ़ खेल के लिए थे, बल्कि उस मुश्किल समय में महिलाओं की हिम्मत और एकजुटता का प्रतीक भी बन गए.
क्रिकेट लड़कियों का खेल नहीं है...
महिला क्रिकेट का सबसे बड़ा संघर्ष हमेशा रहा लोगों की स्वीकृति पाना. शुरुआती दिनों में लोग महिला क्रिकेट को गंभीर खेल नहीं, बल्कि मनोरंजन मानते थे. 1914 से पहले तो ज्यादातर मैच बंद मैदानों या स्कूलों के अंदर ही खेले जाते थे, क्योंकि समाज में यह धारणा थी कि क्रिकेट लड़कियों का खेल नहीं है.
मशहूर पुरुष क्रिकेटर डब्ल्यू.जी. ग्रेस तक ने कहा था कि क्रिकेट महिलाओं के लिए नहीं बना है और लंबे समय तक यह सोच समाज में घर कर गई. जो लड़कियां, स्कूल या कॉलेज क्रिकेट खेलते थे, उन्हें भी यह काम अक्सर छिपाकर करना पड़ता था. लेकिन कुछ संस्थान ऐसे भी थे जिन्होंने इस सोच को तोड़ा. स्कॉटलैंड का सेंट लियोनार्ड्स स्कूल, जो महिला क्रिकेट खेलने वाले पहले स्कूलों में से एक था, उसने इस सोच को गलत बताया. उनका मानना था कि क्रिकेट लड़कियों को वही गुण सिखाता है हिम्मत, टीमवर्क और आत्मविश्वास.
अब छिपकर नहीं खुलेआम क्रिकेट खेलने लगी महिलाएं
पहले विश्व युद्ध के दौरान महिला क्रिकेट का चेहरा पूरी तरह बदल गया. यह खेल अब छिपकर नहीं, बल्कि खुलेआम खेला जाने लगा. बैरकों, सैन्य शिविरों, गोला-बारूद फैक्ट्रियों और अस्पताल परिसरों में, हर तरफ महिलाएं क्रिकेट खेलती थीं. महिलाएं काम के बाद क्रिकेट खेलकर न सिर्फ़ खुद को मज़बूत महसूस करती थीं, बल्कि यह साबित करती थीं कि खेल सिर्फ़ पुरुषों के लिए नहीं होता.
युद्ध खत्म होने के बाद जब महिलाओं की भूमिका समाज में बढ़ने लगी, तब महिला क्रिकेट को भी पहचान मिलने लगी. 1926 में विमेन्स क्रिकेट एसोसिएशन की स्थापना हुई, जो इस खेल के इतिहास का बहुत बड़ा कदम था, इसके बाद 1932 में पहली बार इंग्लैंड के एक बड़े स्टेडियम (वॉर्सेस्टर) में महिला क्रिकेट का आधिकारिक मैच खेला गया. महिला क्रिकेट को बराबरी का दर्जा पाने में कई दशकों की मेहनत लगी, लेकिन इन पायनियर महिलाओं ने वह नींव रख दी, जिस पर आज दुनिया भर में महिला क्रिकेट चमक रहा है.
फिर लाइमलाइट से दूर होने लगा महिला क्रिकेट.....लॉर्डस में खेला पहला मैच
मैदान खाली, बल्ले सूखे और खिलाड़ियों की गिनती उंगलियों पर. 1950 से लेकर 1990 के बीच ब्रिटेन में महिला क्रिकेट का हाल कुछ ऐसा था कि क्रिकेटर्स की कमी होने लगी थी. महिलाएं धीरे-धीरे क्रिकेट से गायब होती जा रही थीं. लेकिन फिर 1976 में आखिरकार इतिहास बना जब पहली बार महिलाओं ने लॉर्ड्स के मैदान पर कदम रखा. लेकिन पिछले दो दशकों में तो मानो तस्वीर ही बदल गई. अब महिला क्रिकेट केवल 'अरे ये भी खेलती है' तक सीमित नहीं रहा बल्कि वाह, ये तो धमाल मचा रही हैं बन गया है.
खिलाड़ियों और उनके समर्थकों ने पहचान पाने के लिए खूब पसीना बहाया है. कभी समाज की सोच से लड़ना पड़ा, तो कभी सचमुच पहाड़ चढ़ना पड़ा. जैसे 2014 में हीथर नाइट और उनकी टीम ने सच में माउंट किलिमंजारो पर चढ़ाई की और वहां दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट मैच खेलकर रिकॉर्ड बना दिया.
अंतरराष्ट्रीय सफर की शुरुआत
1931 में ऑस्ट्रेलिया ने महिला क्रिकेट परिषद बनाई और यहीं से महिला क्रिकेट का “विदेश दौरा युग” शुरू हुआ. इंग्लैंड की महिला क्रिकेट संघ की सचिव वेरा कॉक्स जब ऑस्ट्रेलिया घूमने गईं, तो वहां की महिला क्रिकेटर्स से बातचीत हुई और पहला बड़ा टूर तय हुआ.
1934 में इंग्लैंड की टीम ऑस्ट्रेलिया रवाना हुई, लेकिन यह कोई आज जैसा स्पॉन्सर्ड टूर नहीं था. उस समय खिलाड़ियों को अपने जहाज़ का टिकट खुद खरीदना पड़ता था. फिर भी, इंग्लैंड की महिलाओं ने कमाल कर दिया. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ तीन में से दो टेस्ट जीते, और न्यूज़ीलैंड को भी हराया. ब्रिस्बेन, सिडनी और मेलबर्न में हज़ारों दर्शक पहुंचे थे.
इसके बाद विदेश में इन खिलाड़ियों का स्वागत किसी रॉकस्टार से कम नहीं हुआ. इंग्लैंड की खिलाड़ी मर्टल मैक्लेगन ने लिखा था, 'हम जहां भी गए, हमें पहचान लिया गया.' अख़बारों ने तो कविताएं तक लिख डालीं, हर तरफ महिला क्रिकेट की चर्चा होने लगी और लोग मैच देखने में रुचि रखने लगे. ये वही दौर था जब महिला क्रिकेटर्स बल्ला ही नहीं लोगों के सोचने का तरीका भी बदल रही थीं. इसके बाद इंग्लैंड की टीम ने 1948-49, 1957-58 और 1968-69 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड का दौरा किया. दिक्कतें इतनी थीं कि 1958 में महिलाओं ने खुद ही अपनी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (IWCC) बनी, जिसमें इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, दक्षिण अफ्रीका और नीदरलैंड की प्रतिनिधि महिलाएं शामिल हुईं.
बैट से लेकर बॉर्डर तक
1970 के दशक तक भारत और वेस्टइंडीज़ की महिलाएं भी मैदान में उतर चुकी थीं. इंग्लैंड की टीम 1978 में भारत आई दूसरे महिला विश्व कप के लिए, और एक साल बाद वेस्टइंडीज़ की टीम इंग्लैंड पहुंची.
बल्ले से लिखा गया इतिहास..
दुनिया का पहला क्रिकेट विश्व कप महिलाओं ने खेला था और वो भी पुरुषों से दो साल पहले. 1971 में इंग्लैंड की कप्तान राचेल हेहो-फ्लिंट वॉल्वरहैम्प्टन के कारोबारी जैक हेवर्ड के साथ रह रही थीं. एक दिन हेवर्ड ने मज़ाक में पूछा “क्यों न हम हर देश की महिला क्रिकेट टीम को इंग्लैंड बुलाकर एक वर्ल्ड कप करा दें?” बस, वहीं से खेल की दिशा बदल गई!
हेवर्ड ने अपने पैसों से 40,000 पाउंड खर्च कर टूर्नामेंट कराया. 1973 में इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, त्रिनिदाद और टोबैगो, जमैका, यंग इंग्लैंड और एक अंतरराष्ट्रीय टीम, ये सात टीमें भिड़ीं. फ़ाइनल में इंग्लैंड ने ऑस्ट्रेलिया को 92 रनों से हराया. एनिड बेकवेल ने शतक ठोका और राचेल हेहो-फ्लिंट ने ट्रॉफी उठाई. इसके बाद प्रधानमंत्री एडवर्ड हीथ ने इंग्लैंड की टीम को 10 डाउनिंग स्ट्रीट पर बुलाकर सम्मानित किया.
भारत में हुआ था दूसरा महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप
दूसरा महिला विश्व कप 1978 में भारत में हुआ. इसके बाद फिर 2005 से यह हर चार साल में नियमित रूप से आयोजित किया जाने लगा. इंग्लैंड ने इसके बाद दो बार मेज़बानी की 1993 और 2017 दोनों बार लॉर्ड्स में फाइनल खेला गया, और दोनों बार इंग्लैंड ने ट्रॉफी जीती. 2017 का फ़ाइनल तो इतिहास बन गया. लॉर्ड्स खचाखच भरा हुआ था. भारत के खिलाफ इंग्लैंड की आन्या श्रुबसोल ने 6 विकेट लेकर ऐसा प्रदर्शन किया, जो अब तक किसी भी वनडे मैच में सबसे शानदार माना जाता है.
छोटी थी महिला क्रिकेट की गेंद
4 अक्टूबर 1926 को लंदन में एक बैठक हुई, जहां कैथलीन डोमन नाम की महिला ने “महिलाओं के लिए एक केंद्रीय क्रिकेट संघ” बनाने का प्रस्ताव रखा. 14 वोटों के मुकाबले 2 वोटों से यह प्रस्ताव पास हुआ और विमेन्स क्रिकेट एसोसिएशन (WCA) का जन्म हुआ.इसके बाद पूरे देश में महिला क्रिकेट क्लब बनवाना और उन लड़कियों को अवसर देना जो स्कूल या कॉलेज छोड़ने के बाद भी क्रिकेट खेलना चाहती थीं. 1938 तक इस संघ से 105 क्लब, 18 कॉलेज और 85 स्कूल जुड़ चुके थे. 1931 में WCA ने तय किया कि वे MCC (मेरीलबोन क्रिकेट क्लब) के नियम अपनाएंगे, बस गेंद थोड़ी छोटी होगी. 2005 में ICC ने भी अंतरराष्ट्रीय महिला क्रिकेट का संचालन अपने हाथों में ले लिया.
भारत में महिला क्रिकेट की शुरुआत...
महेंद्र कुमार शर्मा ने वुमेंस क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (WCAI) की नींव रखी थी. उस दौर में लड़कियां सॉफ्टबॉल से क्रिकेट खेलती थीं, लेकिन शर्मा ने उन्हें असली क्रिकेट के मैदान तक पहुंचाया. 1973 में पुणे में पहला राष्ट्रीय टूर्नामेंट आयोजित हुआ, और यहीं से भारत में महिला क्रिकेट के सुनहरे सफर की शुरुआत हुई.
कुछ सालों बाद, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी महिला क्रिकेट को पूरा समर्थन दिया. जब भारतीय महिला टीम ने पटना टेस्ट में जीत दर्ज की, तो शर्मा ने उनकी प्रधानमंत्री से मुलाकात करवाई. यह पल भारतीय महिला क्रिकेट के इतिहास में मील का पत्थर बन गया 1975 में, इंदिरा गांधी ने भारत की पहली महिला क्रिकेट टीम को विदेश दौरे पर भेजा, क्योंकि उनका मानना था कि महिलाओं को भी पुरुषों जितने मौके मिलने चाहिए.
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