देश के 12 राज्यों में Special Intensive Revision (SIR) का काम चल रहा है. इसी बीच, राजस्थान और केरल में दो बीएलओ के आत्महत्या करने की खबर आई है. पश्चिम बंगाल में भी एक बीएलओ की ब्रेन स्ट्रोक से मौत हो गई और अब घर वालों का कहना है कि बहुत अधिक काम के दबाव के चलते वो मानसिक तनाव में थीं. अब बीएलओ के वर्क प्रेशर की काफी चर्चा हो रही है. ऐसे में जानते हैं कि आखिर एसआईआर के इस प्रोसेस में एक बीएलओ के पास कितना काम है और उन्हें क्या क्या करना पड़ता है...
बीएलओ के पास कितना काम है... ये जानने से पहले आपको ये बताते हैं कि एक बीएलओ कितने मतदाताओं के लिए जिम्मेदार है और एसआईआर के प्रोसेस में एक बीएलओ को कितने लोगों का काम करना पड़ता है. इस बारे में डेप्यूटी चीफ इलेक्शन ऑफिसर रहे एक अधिकारी ने बताया कि एक बूथ पर एक बीएलओ होता है. अब जितने बूथ पर जितने मतदाता होंगे, उसकी जिम्मेदारी एक बीएलओ की होती है. कई बूथ में 600 मतदाता भी होते हैं तो कई जगह 1000 तक भी होते हैं. चुनाव आयोग के अनुसार, एक बूथ पर अब ज्यादा से ज्यादा 1200 मतदाता हो सकते हैं.
ऐसे में कहा जा सकता है कि किसी भी बीएलओ के पास ज्यादा से ज्यादा 1200 मतदाताओं का काम होता है. वहीं, कुछ रिपोर्ट्स में ये कहा गया है कि भारत में औसतन एक बीएलओ के पास 970 मतदाता हैं और चुनाव आयोग इस औसत को कम करने के लिए बूथ बढ़ाने की तैयारी कर रहा है.
एसआईआर में बीएलओ का क्या काम है?
आमतौर पर बीएलओ को एक बूथ का कार्य सौंपा जाता है और उन्हें उस इलाके की वोटर लिस्ट दी जाती है. इसके बाद बीएलओ समय समय पर उसे अपडेट करता है कि कौन उस क्षेत्र में नया रहने आया है, कौन चला गया है, क्या किसी की मृत्यु हुई है या कोई शिफ्ट हो गया है या कौन 18 साल के ऊपर हो गया है. सरकार के लिए काम कर रहे किसी कर्मचारी को बीएलओ नियुक्त किया जाता है और जिला चुनाव अधिकारी के कार्यालय से तय होता है.
अगर एसआईआर में काम की बात करें तो अभी एसआईआर प्रोसेस में काम कर रहे एक बीएलओ ने बताया कि चुनाव आयोग की ओर से प्रिंट किए हुए सभी के Enumeration Form आते हैं. ये फॉर्म एक विधानसभा में किसी एक निश्चित स्थान पर आते हैं, जहां से बीएलओ इन्हें कलेक्ट करते हैं. इसके बाद बीएलओ इन्हें हर घर-घर में देता है और उन्हें भरता है. बीएलओ ने बताया कि कई मतदाता खुद फॉर्म भर लेते हैं, फोटो भी चिपका लेते हैं और 2002 की वोटिंग लिस्ट पुराना नाम भी खोज लेते हैं. लेकिन, कुछ ऐसा नहीं कर पाते हैं. ऐसे में उन लोगों की मदद करनी होती है, फॉर्म भरना होता है.
इसके बाद इन फॉर्म को कलेक्ट करके ये डेटा ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर दर्ज करना होता है. इसमें माता-पिता के नाम से लेकर फॉर्म की स्कैन कॉपी उसमें भरनी होती है. इसके लिए चुनाव आयोग की ओर से कुछ और कर्मचारी भी लगाए गए हैं ताकि बीएलओ पर काम का भार ज्यादा ना पड़े. लेकिन, उन कर्मचारियों के पास भी ज्यादा काम होने पर बीएलओ को भी ये काम करना होता है. ऐसे में ये प्रोसेस काफी लंबा है.
कब तक पूरा करना है काम?
बीएलओ ने बताया कि ये अभियान 4 दिसंबर तक चलेगा. सभी बीएलओ को 4 दिसंबर तक सभी मतदाताओं के फॉर्म भरने होंगे, जो 4 नवंबर से शुरू हुआ था. मतलब बीएलओ को करीब एक महीने का वक्त मिला था. इसके बाद ड्राफ्ट लिस्ट जारी होगी और उसमें जिन लोगों के नाम रह जाएंगे या फिर कुछ अपडेट करना होगा. उसका प्रोसेस शुरू होगा. फाइनल वोटिंग लिस्ट 7 फरवरी को जारी की जाएगी.
ऑफिस भी जाना पड़ता है?
बीएलओ को चुनाव आयोग के काम के अलावा भी कोई और काम करना पड़ता है? इसके जवाब में बीएलओ ने कहा कि अभी सरकार का काम नहीं कर रहे हैं और अभी सिर्फ आयोग के काम में ही लगे हुए हैं.
कितने रुपये मिलते हैं?
बीएलओ ने बताया कि एसआईआर के काम के लिए अलग से कोई पैसा नहीं मिल रहा है. इसके लिए सरकार की ओर से जो मानदेय दिया जाता है, वो मिल रहा है. अभी साल के 6000 रुपये यानी हर महीने के 500 रुपये ही मिलते हैं.
मोहित पारीक