आज के समय में IAS अधिकारी बनना बहुत कठिन माना जाता है. UPSC की सिविल सेवा परीक्षा पास करने के लिए कई सालों तक मेहनत करनी पड़ती है. इस परीक्षा में हर साल लाखों छात्र बैठते हैं, लेकिन सफल बहुत कम लोग ही हो पाते हैं. इसके लिए लगातार पढ़ाई, धैर्य और मजबूत मन की जरूरत होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहले IAS बनने के लिए कोई परीक्षा नहीं होती थी? उस समय अधिकारियों की सीधी भर्ती की जाती थी. न तो लिखित परीक्षा होती थी और न ही आज जैसी कड़ी प्रतियोगिता. योग्य समझे जाने वाले लोगों को सीधे पद पर नियुक्त कर दिया जाता था.
कैसे बनते हैं आज के समय में IAS
वर्तमान समय में IAS बनने की प्रक्रिया तीन चरणों में होती है-प्रारंभिक परीक्षा (Prelims), मुख्य परीक्षा (Mains) और साक्षात्कार (Interview). इन सभी चरणों को पार करने के बाद ही किसी उम्मीदवार को IAS अधिकारी बनने का मौका मिलता है. पूरी प्रक्रिया में अक्सर 2 से 5 साल या उससे भी ज्यादा समय लग जाता है.
लेकिन पहले IAS बनने के लिए परीक्षा नहीं होती थी
यह जानकर बहुत से लोग हैरान हो जाते हैं कि पहले IAS बनने के लिए कोई लिखित परीक्षा नहीं देनी पड़ती थी. दरअसल, आज के IAS अधिकारी पहले इंडियन सिविल सर्विस (ICS) कहलाते थे, जो ब्रिटिश शासन के दौरान शुरू की गई थी. ब्रिटिश राज के शुरुआती समय में ICS में भर्ती सीधे चयन (Direct Appointment) के जरिए होती थी उम्मीदवारों को उनके सामाजिक दर्जे, परिवार की पृष्ठभूमि और अंग्रेजी शासन के प्रति वफादारी के आधार पर चुना जाता था.
ज्यादातर अधिकारी ब्रिटेन के अमीर और प्रभावशाली परिवारों से होते थे. उन्हें इंग्लैंड में ही ट्रेनिंग दी जाती थी और फिर भारत भेजकर सीधे बड़े प्रशासनिक पदों पर तैनात कर दिया जाता था. इस दौरान कोई लिखित परीक्षा, इंटरव्यू या कोई कंपटीशन नहीं होता था.
भारतीयों के लिए बंद थे दरवाजे
उस समय भारतीयों को इस सेवा में शामिल होने का लगभग कोई मौका नहीं दिया जाता था. ICS अंग्रेजों की सत्ता को बनाए रखने का एक साधन थी. भारतीयों को प्रशासनिक ताकत से दूर रखा जाता था. नस्लीय भेदभाव खुलकर मौजूद था. यह सेवा केवल अंग्रेजों के लिए ही थी. भारतीयों को न तो परीक्षा देने की अनुमति थी और न ही उच्च पदों पर बैठने का अधिकार था.
आजादी के बाद बदली व्यवस्था
आजादी के बाद 1947 में ICS को खत्म कर दिया गया और इसकी जगह भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) की शुरुआत हुई. इसके बाद UPSC के जरिए एक निष्पक्ष और समान परीक्षा प्रणाली लागू की गई, जिसमें देश के किसी भी हिस्से का उम्मीदवार भाग ले सकता है. शुरुआती दौर में ICS में भर्ती बिना किसी प्रतियोगी परीक्षा के होती थी. ब्रिटेन में रहने वाले अंग्रेज युवाओं को सीधे चुन लिया जाता था. ये लोग ऊंचे घरानों से आते थे और प्रशासन का अनुभव रखने वाले माने जाते थे. इन्हें ट्रेनिंग देकर भारत भेज दिया जाता था और सीधे बड़े पदों पर तैनात कर दिया जाता था.
बाद में शुरू हुई परीक्षा, लेकिन शर्तें कठिन
1854 में ब्रिटिश सरकार ने पहली बार प्रतियोगी परीक्षा प्रणाली लागू की. हालांकि यह परीक्षा- केवल इंग्लैंड में होती थी, अंग्रेजी भाषा में होती थी. इसका मतलब यह था कि भारतीयों के लिए परीक्षा देना बेहद मुश्किल था, क्योंकि उस समय इंग्लैंड जाकर पढ़ाई और परीक्षा देना हर किसी के बस की बात नहीं थी.
अंग्रेजों के समय की व्यवस्था
ब्रिटिश शासन के दौरान आज के IAS को इंडियन सिविल सर्विस (ICS) कहा जाता था. यह सेवा अंग्रेजी सरकार की सबसे ताकतवर और ऊंची प्रशासनिक सेवा मानी जाती थी . उस समय भारत में शासन चलाने के लिए अंग्रेज अफसरों की जरूरत होती थी.
पहले भारतीय IAS अधिकारी
सत्येंद्रनाथ टैगोर भारत के पहले भारतीय थे जिन्होंने इंडियन सिविल सर्विस (ICS) की परीक्षा पास की. यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि उस समय यह सेवा अंग्रेजों के प्रभुत्व में थी और भारतीयों के लिए इसमें जगह बनाना बेहद मुश्किल था. सत्येंद्रनाथ टैगोर का जन्म 1 जून 1842 को कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में हुआ था. वे एक प्रतिष्ठित और शिक्षित परिवार से थे.
वे महान कवि रवींद्रनाथ टैगोर के बड़े भाई थे. टैगोर परिवार उस समय सामाजिक सुधार, शिक्षा और सांस्कृतिक गतिविधियों में अग्रणी था. 1864 में सत्येंद्रनाथ टैगोर पहले भारतीय बने जिन्होंने ICS की परीक्षा पास की. इसके बाद धीरे-धीरे भारतीयों की संख्या बढ़ने लगी, लेकिन फिर भी यह प्रक्रिया बहुत कठिन और सीमित थी. परीक्षा पास करने के बाद उन्हें ब्रिटिश प्रशासन में नियुक्ति मिली. उन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों में काम किया, जिनमें बॉम्बे प्रेसिडेंसी (आज का महाराष्ट्र क्षेत्र) शामिल था.
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