G-20 शिखर सम्मेलन में PM मोदी ने सबसे पहले जिस स्तंभ का जिक्र किया... पढ़ें उसकी पूरी कहानी

G-20 Summit: पीएम मोदी ने कहा, “हेवम लोकसा हितमुखे ति, अथ इयम नातिसु हेवम” अर्थात, मानवता का कल्याण और सुख सदैव सुनिश्चित किया जाए. ढाई हजार साल पहले, भारत की भूमि ने, यह संदेश पूरे विश्व को दिया था.'  यह शिलालेख दिल्ली के फिरोजशाग कोटला में स्थापित अशोक स्तंभ पर लिखा है.

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दिल्ली-टोपरा अशोक स्तंभ (फोटो: विकिपीडिया) दिल्ली-टोपरा अशोक स्तंभ (फोटो: विकिपीडिया)

अमन कुमार

  • नई दिल्ली,
  • 09 सितंबर 2023,
  • अपडेटेड 6:46 PM IST

भारत की मेजबानी में दो दिवसीय G-20 शिखर सम्मेलन की शुरुआत हो चुकी है. अलग-अलग देशों से आए राष्ट्रीय अध्यक्षों का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिखर सम्मेलन की शुरुआत उस संदेश से की जो भारत की भूमि से ढाई हजार से पहले विश्व को दिया गया था. उन्होंने भाषण की शुरुआत एक शिलालेख से की जो करीब 2500 साल पहले सम्राट अशोक द्वारा स्थापित किए गए स्तंभ पर लिखा है.

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भारत ने हजारों साल पहले विश्व को दिया था ये संदेश
पीएम मोदी ने कहा, “हेवम लोकसा हितमुखे ति, अथ इयम नातिसु हेवम” अर्थात, मानवता का कल्याण और सुख सदैव सुनिश्चित किया जाए. ढाई हजार साल पहले, भारत की भूमि ने, यह संदेश पूरे विश्व को दिया था.'  यह शिलालेख प्राकृत भाषा में लिखा गया है जो पाली और संस्कृत का मिश्रण है, जो दिल्ली के फिरोजशाग कोटला में स्थापित अशोक स्तंभ पर लिखा है, जिसे दिल्ली-टोपरा स्तंभ भी कहा जाता है.

यह उद्धरण छठे शिलालेख का भाग है जिसका उल्लेख इस स्तंभ में किया गया है. यह स्तंभ अशोक के शिलालेखों का एक हिस्सा है जो सही सिद्धांत और जीवन की संहिता को फैलाने के लिए बनाया गया था, जो अपने लोगों के कल्याण के लिए दया, सहनशीलता और चिंता की बात करता है.

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दिलचस्प बात यह है कि दिल्ली में ऐसे दो अशोक स्तंभ हैं, एक फ़िरोज़ शाह कोटला किले में और दूसरा बारा हिंदू राव अस्पताल के सामने दिल्ली रिज क्षेत्र में. किंवदंतियों में कहा गया है कि फ़िरोज़ शाह कोटला को ये दोनों अपने सैन्य अभियानों के दौरान स्थानीय लोगों से मिली थीं, जिनका मानना था कि ये दोनों स्तंभ महाभारत के भीम की चलने की छड़ें थे.

कहां है दिल्ली-टोपरा अशोक स्तंभ
दो स्तंभ शिलालेख अभी भी दिल्ली में हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय परिसर के नजदीक, बारा हिंदू राव अस्पताल के प्रवेश द्वार के सामने दिल्ली रिज पर स्थित, दिल्ली-मेरठ स्तंभ के रूप में लोकप्रिय है. दूसरा, फिरोज शाह कोटला के मैदान में, दिल्ली-टोपरा स्तंभ के रूप में जाना जाता है. दिल्ली-टोपरा स्तंभ को हरियाणा के यमुनानगर जिले के टोपरा कलां से स्थानांतरित किया गया था और फिरोज शाह कोटला में महल की इमारत के ऊपर खड़ा किया गया था. भारत के प्राचीन इतिहास का यह मूल्यवान स्तंभ 13 मीटर (43 फीट) ऊंचा है (मंच से एक मीटर नीचे) और बलुआ पत्थर से बना है.

स्तंभ का वह भाग जहां शिलालेख अंकित है (फोटो: इंडिया टुडे)

दिल्ली-टोपरा अशोक स्तंभ का इतिहास
बुद्ध से प्रेरित होने के बाद अशोक ने महसूस किया कि उनके साम्राज्य में अलग-अलग धर्मों को मानने वाले लोग हैं और इससे कई बार टकराव पैदा होता है. जानवरों की बलि दी चढ़ाई जाती है, दास और नौकरों के साथ क्रूर व्यवहार किया जाता है, ऐसी कई समस्याएं हैं जिनका निदान करना उनका कर्तव्य है. उन्होंने धम्म-महामात्म नाम के अधिकारियों की नियुक्ति की जो जगह जाकर लोगों को शिक्षा देते थे. इसके अलावा अशोक ने अपने संदेश कई स्थानों पर शिलाओं और स्तंभों पर खुदवा दिए. उन्हीं में से एक दिल्ली-टोपरा का अशोक स्तंभ. अधिकारियों यह संदेश दिया गया था कि वे राजा के संदेश को उन लोगों को सुनवाएं जो खुद पढ़ नहीं सकते थे. कई स्रोतों के अनुसार इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अशोक ने गुजरात की गिरनार पहाड़ियों में इस स्तंभ को बनवाया था. इस स्तंभ पर प्राचीन ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा में लिखी गई उनकी सात राजाज्ञाएं खुदी हुई हैं.

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फिरोज शाह तुगलक ने 1351 और 1388 के बीच मध्ययुगीन काल के दौरान दिल्ली से सुल्तान के रूप में शासन किया था. फिरोज शाह, अपने एक अभियान के दौरान, दो शानदार मोनोलिथ - उत्कीर्ण अशोक स्तंभों से मंत्रमुग्ध हो गए, एक अंबाला के पास टोपरा में और दूसरा मेरठ के पास. उसने इन स्थानों से स्तंभों को हटाकर दिल्ली में खड़ा करवाया. पहला उसकी नई राजधानी में और दूसरा पीर-ग़ैब के पास. पहला स्तंभ 1350 के दशक में नए शहर फिरोजाबाद में शुक्रवार की मस्जिद के बगल में बनाया गया था.

दिल्ली-टोपरा स्तंभ को हरियाणा के यमुनानगर जिले के टोपरा कलां से स्थानांतरित किया गया था और फिरोज शाह कोटला में महल की इमारत के ऊपर खड़ा किया गया था. यह 13 मीटर (43 फीट) ऊंचा है (मंच से एक मीटर नीचे) और बलुआ पत्थर से बना है.

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