Слава труду (Slava trudu), Пролетарии всех стран, соединяйтесь! (Proletarii vsekh stran, soyedinyaytes!)... ये रूस में कम्युनिज्म का नारा बुलंद करने वाली लाइनें हैं. सोवियत काल से ही रूस की गलियों में गूंज रही इन लाइनों का मतलब है- मजदूर को सलाम... दुनिया के मजदूरों, एक हो जाओ! रूस (सोवियत संघ के रूप में) कम्युनिज्म का एक प्रमुख केंद्र रहा है, ये तथ्य अब सामान्य ज्ञान बन चुका है. साल 1917 की रूसी क्रांति के बाद, लेनिन और बोल्शेविकों ने रूस में कम्युनिस्ट शासन स्थापित किया था. तब से यह दुनिया का पहला संवैधानिक रूप से समाजवादी राज्य बना.
लेकिन, अब वक्त बदल चुका है. बदलते वक्त के साथ विचारधाराएं, समाज, राजनीति सबकुछ ही बदलता है. ऐसे में जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आने वाले हैं तो जानते हैं कि कम्युनिस्ट के इस गढ़ में क्या अब भी कम्युनिज्म सांसें ले रहा है? रूस में आज किस विचारधारा के लोग हैं?
क्या अभी भी रूस कम्युनिस्ट है?
करीब एक सदी तक कम्युनिज्म से अपनी पहचान बनाने वाले रूस की 21वीं सदी में स्थिति कुछ और है. भले ही आज रूस में डेमोक्रेसी की जड़ें कमजोर हैं, लेकिन फिर भी रूस को अब कम्युनिस्ट देश के तौर पर नहीं देखा जा सकता और अब रूस नए कैपिटलिस्ट देश के रुप में अपनी पहचान बना रहा है. वैसे कम्युनिस्ट सोवियत यूनियन 26 दिसंबर, 1991 को खत्म हो गया था, लेकिन एक तथ्य ये भी है कि रूस में अभी कम्युनिस्ट विचारधारा पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. अभी भी एक वर्ग इस विचारधारा के समर्थन में है.
बता दें कि साल 1991 से पहले USSR में कम्युनिज्म विचारधारा हावी थी. लेकिन 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद, रूस एक नए राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे के साथ सामने आया. साल 1991 में ही प्रेसिडेंट बोरिस येल्तसिन ने 1991 में सोवियत यूनियन की कम्युनिस्ट पार्टी पर बैन लगा दिया था, फिर CPRF ने उसकी जगह ले ली. अब रूस में प्रमुख तौर पर दो पार्टियां हैं, जिनमें एक तो यूनाइटेड रशिया है और दूसरी है CPRF (Communist Party of the Russian Federation).
यूनाइडेट रशिया लंबे वक्त से रूस की सत्ताधारी पार्टी है और इसे संसद और कई क्षेत्रीय सरकारों में बहुमत है. पुतिन भी इसी पार्टी से संबंध रखते हैं. इसके अलावा दूसरी पार्टी है CPRF. ये पारंपरिक कम्युनिस्ट विरासत की पार्टी है और रूस में प्रमुख विपक्षी दल है. यूनाइटेड रशिया के पास 60% से ज्यादा की मेजॉरिटी है, CPRF रूस की दूसरी सबसे बड़ी पॉलिटिकल पार्टी है. इसका मतलब है कि अपोजिशन में अभी भी कम्युनिस्ट हैं और बहुत सारे रूसी अभी भी कम्युनिज्म में विश्वास करते हैं.
ऐसे में कहा जा सकता है कि रूस में कम्युनिज्म काफी प्रभावी नहीं है और अब जनता भी मार्केट/कैपिटलिस्ट को अपनाने वाली सत्ता के पक्ष में है. लेकिन, कम्युनिज्म पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है. यह कहना ठीक होगा कि रूस “कम्युनिस्ट का गढ़” नहीं रहा. कम्युनिज्म एक विचारधारा के रूप में अस्तित्व में हो सकती है, लेकिन उस पर शासन अब नहीं चलता.
क्या पुतिन कम्युनिस्ट हैं?
पुतिन को अक्सर साम्यवाद के खिलाफ बोलते हुए सुना गया है और उनकी पार्टी का भी विरोध रूसी कम्युनिस्ट पार्टी से ही है. कई बार उन्होंने कम्युनिस्ट-विरोधी विचारों को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है, जो बताता है कि वे पूरी तरह से इसके खिलाफ हैं. साल 2021 में, जब एक कार्यक्रम में पुतिन से लेनिन के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि लेनिन हजार साल के इतिहास में सबसे विध्वंसक थे जिनकी प्राथमिकता क्रांति और विनाश थी. पुतिन ने कहा था कि उनकी बनाई नींव कमजोर थी क्योंकि वह कानून पर नहीं, बल्कि हिंसा पर आधारित थी.
पुतिन की सरकार अब रूस को भले ही बाजार-आधारित अर्थव्यवस्था बना रही है. लेकिन, अभी भी विपक्ष को दबाने, मीडिया को नियंत्रित करने और सत्ता को एक छोटे से समूह के इर्द-गिर्द केंद्रित करने के आरोप अभी भी सोवियत राज्य-नियंत्रित प्रणाली की याद दिलाते हैं. ऐसे ही चुनाव की पारदर्शिता पर भी हमेशा से सवाल उठ रहे हैं.
आलोचकों का कहना होता है कि चुनाव मात्र दिखावा है. रूस में अगर निष्पक्ष चुनाव होते तो यूनाइटेड रशियन का प्रदर्शन काफी खराब होता. चुनाव से पहले ही विरोधियों को निशाने पर ले लिया जाता है. जैसे 2021 के चुनाव से पहले मुख्य विपक्षी नेता एलेक्सी नवलनी से जुड़े संगठन को चरमपंथी घोषित कर दिया गया. साथ ही उनके सहयोगियों द्वारा चलाए जा रहे अभियानों को रोक दिया गया.
इसके बाद साल 2024 में जेल में उनकी मौत हो गई थी, जिसे लेकर भी पुतिन सरकार पर काफी सवाल उठे. नवलनी की मौत के बाद वो लाइनें ज्यादा गहरी हो गई, जिनमें कहा जाता है कि रूस में कोई विपक्ष नहीं. जो भी सत्ता में आएगा, वो अगले कई सालों के लिए विरोधियों को दबाकर रखेगा. यहां तक पुतिन ने संविधान में संशोधन कर अपना कार्यकाल भी बढ़वा लिया था.
कैसे होते हैं चुनाव?
अक्सर रूस के चुनाव भी चर्चा में रहते हैं, जिन पर कई सवाल उठते हैं. रूस में चुनाव तो लंबे वक्त से हो रहे हैं, लेकिन रिजल्ट हमेशा एक ही रहता है. ऐसे में जानते हैं कि आखिर वहां चुनाव कैसे होते हैं. साल 2024 में पुतिन को 87 फीसदी वोट मिले थे.
रूस में चुनाव होता तो बैलेट पेपर से है, लेकिन कुछ घंटे बाद ही रिजल्ट आ जाता है कि पुतिन जीत गए हैं. ऐसे में लोगों का चुनाव से विश्वास उठ चुका है. अगर किसी एक कैंडिडेट को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला, तो दूसरे चरण की वोटिंग होती है. वैसे इसकी नौबत बहुत ही कम आती है. पिछले छह राष्ट्रपति चुनावों में बस एक बार ही इसकी जरूरत पड़ी. वो साल था 1996. बोरिस येल्तसिन थे रूस के राष्ट्रपति. उनके खिलाफ खड़े थे गेनाडी ज्यूगानोव. सेकेंड राउंड वोटिंग में बोरिस येल्तसिन जीत गए थे.
कुछ सालों के लिए पुतिन प्रधानमंत्री भी थे. उस वक्त असली ताकत उनके पास ही थी. फिर 2012 में पुतिन फिर से राष्ट्रपति बन गए. उन्होंने मेदवेदेव को प्रधानमंत्री बनाया. पहले रूस में राष्ट्रपति का कार्यकाल चार साल का होता था. 2012 में संविधान के अंदर एक संशोधन किया गया. चार साल का कार्यकाल बढ़ाकर छह साल कर दिया गया.
कैसा था लेनिन का दौर?
लेनिन के समय रूस (बाद में USSR) में एक ही पार्टी बोल्शेविक (बाद में कम्युनिस्ट पार्टी) को अनुमति थी. राजनीतिक बहुलवाद खत्म हो गया था. सभी उद्योग सरकार के अधीन थे. उस दौर में पहली बार किसी बड़े देश में मार्क्सवादी विचारधारा पर आधारित शासन की शुरुआत हुई और ये यह दुनिया का पहला “सोशलिस्ट स्टेट” बना था.
कब-कब भारत आए हैं पुतिन?
पुतिन अब तक 10 बार भारत के दौरे पर आ चुके हैं. पहली बार वो अक्टूबर 2000 को भारत दौरे पर आए थे. तब दोनों देशों ने रणनीतिक साझेदारी की घोषणा की थी. इसके बाद से दिसंबर 2002, दिसंबर 2004, जनवरी 2007, मार्च 2010, दिसंबर 2012, दिसंबर 2014, अक्टूबर 2018 और दिसंबर 2021 में भारत का दौरा कर चुके हैं.
मोहित पारीक