आलिया भट्ट ने द‍िखाया जिगरा, बताया इस मेंटल डिसऑर्डर से जूझ रहीं, जानिए- क्या है ये

हाल ही में एक इंटरव्यू में आलिया भट्ट ने अपनी मानस‍िक समस्या को स्वीकार करने का जो साहस दिखाया वो काबिलेतारीफ है. आलिया ने बताया कि कुछ ही दिन पहले उन्हें इस ADHD का पता चला है. वैसे आलिया को टेस्ट के जरिये इसका पता चला, लेकिन कुछ ऐसे सिम्प्टम्स हैं जिनसे इस समस्या का पता लगाया जा सकता है. आइए आपको एडीएचडी के बारे में बताते हैं.

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मानसी मिश्रा

  • नई दिल्ली ,
  • 16 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 1:05 PM IST

बॉलीवुड स्टार आलिया भट्ट ने बीते दिनों लल्लनटॉप के इंटरव्यू में माना कि वो अटेंशन डेफिसिट-हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) की श‍िकार हैं. बहुत से लोग इसे लेकर आलिया भट्ट की तारीफ भी कर रहे हैं. अपनी मानस‍िक समस्या को खुलेआम एक्सेप्ट करने के लिए उनके जिगरे यानी हिम्मत को सराह रहे हैं. आइए जानते हैं आलिया भट्ट ने क्या बताया और क्या हैं इस डिसऑर्डर के लक्षण, बचपन से कैसे पता लगा सकते हैं. 

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आलिया ने कहा कि मैं बचपन से ही ज़ोन आउट होती आई हूं. स्कूल में भी क्लासरूम में भी किसी कनर्वसेशन के बीच में भी ज़ोन आउट करती आई हूं. मैंने अभी कुछ दिनों पहले एक साइकोलॉजिकल टेस्ट किया. जिसमें मुझे पता चला कि मैं ADHD के स्पेक्ट्रम में बहुत हाई हूं. मुझे ADHD है. ADHD मतलब अटेंशन डिफीसिटएट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर.

जी हां, अटेंशन डेफिसिट-हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है जो बचपन से ही पता लगाई जा सकती है. वर‍िष्ठ मनोचिकित्सक डॉ सत्यकांत त्र‍िवेदी कहते हैं कि ADHD एक ऐसा डिसऑर्डर है जो किसी व्यक्ति के फोकस करने और उसकी उम्र के हिसाब से उचित व्यवहार करने की क्षमता को प्रभावित करता है. आप ऐसे समझ‍िए कि ADHD से पीड़ित लोग लगातार फोकस की कमी, हाइपर एक्ट‍िव या इम्पलसिव बिहैवियर से जूझते हैं. 

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कब शुरू होते हैं लक्षण

इसके लक्षण आमतौर पर तब शुरू होते हैं जब व्यक्ति युवा होता है और उसमें ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, अव्यवस्था, एकाग्रता की कमी, आधे-अधूरे काम छोड़ना, भूलने की बीमारी या अक्सर चीजें खोना शामिल हो सकता है. ADHD का आधिकारिक रूप से निदान करने के लिए, बच्चे में ये लक्षण 12 वर्ष की उम्र से पहले शुरू होने चाहिए जोकि उसमें कम से कम छह महीने तक बने रहने चाहिए. साथ ही एक से अधिक स्थानों जैसे घर और स्कूल की रूटीन लाइफ में इससे परेशानी भी एक सिम्प्टम है. ADHD कई गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकता है, जिसमें दोस्त बनाने में समस्या, र‍िस्की बिहैव‍ियर, नौकरी खोना और स्कूल में स्ट्रगल शामिल है. 

सर गंगाराम हॉस्प‍िटल दिल्ली के वरिष्ठ मनोचिक‍ित्सक डॉ राजीव मेहता कहते हैं कि ADHD अक्सर ब्रेन के 'कंट्रोल सेंटर' में समस्याओं से जुड़ा होता है, जो ध्यान लगाना, निर्णय लेने और भावनात्मक नियंत्रण को प्रभावित करता है. नतीजतन, ADHD वाले बच्चे सामाजिक परिस्थितियों से जूझते हैं. ये आसानी से अपना धैर्य खो सकते हैं, और आवेग में आकर काम कर सकते हैं. इसी वजह से, उन्हें अक्सर गलती से "Troublemakers" के रूप में लेबल किया जाता है. 

डॉ मेहता आगे कहते हैं कि एडीएचडी कोई नई समस्या नहीं है और पिछले कुछ सालों में इसके अलग-अलग नाम रहे हैं. 1930 के दशक में इसे 'म‍िन‍िमल ब्रेन ड‍िसफंक्शन' कहा जाता था, लेकिन समय के साथ इसका नाम बदलकर एडीडी और आख‍िर में एडीएचडी कर दिया गया. डॉ मेहता सुझाते हैं कि ADHD की पहचान और उपचार शुरू में ही करना ज़रूरी है, ताकि लक्षण वयस्कता में जारी न रहें, जिससे संभावित रूप से अन्य स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं. इसके उपचार में आमतौर पर दवाएं और थेरेपी शामिल होती है. 

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बचपन में ही लग सकता है पता 
डॉ सत्यकांत कहते हैं कि ADHD का अक्सर बच्चों में ही डायग्नोसिस होता है, लेकिन ये एडल्ट्स में भी हो सकता है. ये एक माइंड का डेवलपमेंटल डिसऑर्डर है, जिसमें किसी को फोकस करने, ऑर्गनाइज़ रहने, टाइम मैनेजमेंट, और सेल्फ-कंट्रोल में दिक्कत होती है. अगर बचपन में इसका पता नहीं चला तो ये एडीएचडी एडल्ट लाइफ में भी चलता रहता है और किसी के कामकाज और पर्सनल लाइफ पर बुरा असर डाल सकता है. 

एडल्ट में होते हैं ये सिम्प्टम
एडल्ट एडीएचडी के लक्षणों में ध्यान की कमी, इम्पल्सिविटी, टाइम मैनेजमेंट में प्रॉब्लम्स, और मल्टीटास्किंग में कठिनाई शामिल हैं. ये लक्षण किसी के लाइफ के अलग-अलग पहलुओं जैसे काम, रिश्ते, और सोशल सिचुएशंस पर असर डाल सकते हैं. एडीएचडी से जूझ रहे लोग काम के दौरान छोटी-छोटी चीज़ों से डिस्ट्रैक्ट हो जाते हैं. इससे उनकी प्रोडक्टिविटी कम हो जाती है और करियर में आगे बढ़ने में प्रॉब्लम्स आती हैं. 

करियर और रिश्तों पर पड़ता है असर 
कई एडल्ट्स जिन्हें एडीएचडी है, वो टाइम पर काम पूरा नहीं कर पाते. वो चीज़ों में देरी करते हैं या डेडलाइंस का पालन नहीं कर पाते. कई बार बिना सोचे-समझे रिएक्ट करना या फैसला लेना एडीएचडी के कारण होता है. इससे उनके रिश्तों में भी प्रॉब्लम्स आ सकती हैं. इन एडल्ट को चीजें ऑर्गनाइज़ रखने में भी प्रॉब्लम होती है. पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ में चैलेंजेस आ सकते हैं. 

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क्या होता है इलाज 
डॉ सत्यकांत कहते हैं कि एडल्ट एडीएचडी का इलाज आमतौर पर मेडिसिन और कॉग्निटिव-बिहेवियरल थेरेपी (CBT) के कॉम्बिनेशन से किया जाता है. दवाइयां जहां एक तरफ ब्रेन की केमिकल प्रोसेस को सुधारने में हेल्प कर सकती हैं, जिससे फोकस करना आसान हो जाता है. वहीं दूसरी ओर थेरेपी से लोग अपने नेगेटिव थॉट्स और बिहेवियर पर काम कर सकते हैं. 

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