ऑपरेशन महादेव के बाद पहलगाम के आतंकियों की पहचान कैसे हुई?

ऑपरेशन महादेव की सफलता सिर्फ आतंकियों को मारने तक सीमित नहीं है, बल्कि उनकी पहचान करने में सटीकता और सावधानी भी दिखाती है. खुफिया, फोरेंसिक विज्ञान और तकनीक के संयोजन से सुरक्षाबलों ने साबित कर दिया कि पहलगाम हमले के दोषी वही तीन आतंकी थे- सुलैमान, अफगान और जिब्रान. ये ऑपरेशन भारत की खुफिया और सैन्य ताकत का एक शानदार उदाहरण है.

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पहलगाम आतंकी हमले के तीनों आतंकियों की मौत के बाद की तस्वीर. (Photo: ITG) पहलगाम आतंकी हमले के तीनों आतंकियों की मौत के बाद की तस्वीर. (Photo: ITG)

शिवानी शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 29 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 6:00 PM IST

संसद में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने एक बड़ी घोषणा की. उन्होंने बताया कि ऑपरेशन महादेव में मारे गए तीन आतंकी वही थे, जिन्होंने 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम हमले को अंजाम दिया था. लेकिन सवाल ये है कि आखिर सुरक्षाबल इतने यकीन के साथ कैसे कह सकते हैं कि ये वही आतंकी थे? 

गृह मंत्री ने बताया कि इनकी पहचान करने में बहुत सावधानी बरती गई. आइए, समझते हैं कि पहलगाम के आतंकियों की पहचान कैसे हुई और इसके पीछे क्या प्रक्रिया थी.

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शुरुआत मानव खुफिया से: खाना और आश्रय ने रास्ता दिखाया

ऑपरेशन महादेव की सफलता की कहानी गोली से नहीं, बल्कि खाने और आश्रय से शुरू हुई. नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) ने पहले ही कश्मीर में उन लोगों को पकड़ा था, जो आतंकियों की मदद कर रहे थे. इनमें से कुछ स्थानीय लोग थे, जिन्होंने आतंकियों को खाना, शरण और लॉजिस्टिक सपोर्ट दिया था. इन लोगों से पूछताछ में पता चला कि उन्होंने तीन आतंकियों से मुलाकात की थी. उनके बारे में विस्तार से जानकारी दी.

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जब ऑपरेशन महादेव खत्म हुआ और आतंकियों को मार गिराया गया, तो इन्हीं लोगों को बुलाया गया. उन्होंने मृत आतंकियों की शिनाख्त की और पुष्टि की कि यही वही लोग थे, जिन्हें उन्होंने शरण दी थी. ये मानव खुफिया पहचान का पहला कदम था.

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फोरेंसिक जांच: बंदूकें, गोलियां और विज्ञान ने सच उजागर किया

मानव गवाही के बाद भी सुरक्षाबल संतुष्ट नहीं हुए. उन्हें फोरेंसिक सबूत चाहिए थे, जो शक को पूरी तरह खत्म कर दें. ऑपरेशन के दौरान आतंकियों से बरामद की गईं दो AK-47 राइफलें और एक M9 कार्बाइन को तुरंत चंडीगढ़ के सेंट्रल फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी (CFSL) भेजा गया.

वहां विशेषज्ञों ने बैलिस्टिक टेस्ट किए. इसमें गोलियों के खाली खोल (शेल कैसिंग) और प्रोजेक्टाइल्स की तुलना की गई, जो पहलगाम हमले की जगह से मिले थे. सुबह 4 बजे CFSL ने अंतिम रिपोर्ट दी, जिसमें पुष्टि हुई कि बरामद हथियारों से चलाई गई गोलियां पहलगाम हमले में इस्तेमाल हुई थीं. ये वैज्ञानिक सबूत किसी भी शक को खत्म कर दिया.

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साइट से मिले सबूत: विदेशी मूल का पक्का इशारा

आतंकियों को मारने के बाद सुरक्षाबल रुके नहीं। भारतीय सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस, CRPF और खुफिया एजेंसियों की संयुक्त टीम ने तुरंत मौके पर जांच शुरू की. उन्होंने आतंकियों के शव, हथियार, सैटेलाइट फोन और दस्तावेजों की बारीकी से जांच की.

इस दौरान जो चीजें मिलीं, उनमें से दो आतंकियों के पास पाकिस्तानी वोटर आईडी नंबर थे, जिनकी खुफिया स्रोतों से पुष्टि की गई. गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में बताया कि ये सबूत आतंकियों के विदेशी मूल की पुष्टि करते हैं.

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सावधानी पहले: ब्रीफिंग तक इंतजार

ऑपरेशन महादेव की सफलता के बाद चिनार कोर के GOC ने श्रीनगर में शाम 5 बजे ब्रीफिंग प्लान की थी. लेकिन इसे टाल दिया गया. क्योंकि सुरक्षाबल ने जल्दबाजी से बचते हुए CFSL चंडीगढ़ की अंतिम रिपोर्ट का इंतजार किया. जब 4 बजे सुबह बैलिस्टिक टेस्ट की रिपोर्ट आई, तभी सरकार ने आधिकारिक तौर पर घोषणा की कि मारे गए आतंकी पहलगाम नरसंहार के जिम्मेदार थे.

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कई स्तरों पर जांच: इंटेलिजेंस, फोरेंसिक, और तकनीक

इस पूरे ऑपरेशन में कई स्तरों पर काम हुआ...

  • मानव खुफिया: NIA ने 1055 लोगों से 3000 घंटे की पूछताछ की और शक के आधार पर स्केच तैयार किए.  
  • फोरेंसिक विज्ञान: हथियारों की जांच और गोलियों की तुलना ने पहचान को पक्का किया.  
  • डिजिटल ट्रैकिंग: सैटेलाइट फोन और खुफिया इनपुट्स ने आतंकियों की लोकेशन पकड़ी.

गृह मंत्री ने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर में मारे गए 10 में से 8 आतंकी UPA काल के हमलों में भी शामिल थे. ये बहुआयामी जांच दर्शाती है कि भारतीय सुरक्षाबल ने सिर्फ जवाबी कार्रवाई नहीं की, बल्कि सटीक निशाना लगाकर सही लोगों को सजा दी.

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