चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश की जुगलबंदी, दक्षिण एशियाई देशों की डंवाडोल आर्थिक स्थिति भारत के लिए सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं लेकर आईं हैं. इस चिंता की ओर इशारा किया है भारत के सबसे बड़े सैन्य अधिकारी CDS अनिल चौहान ने. जनरल चौहान ने कहा कि भारतीय महासागर क्षेत्र के कई देश आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं.इस स्थिति का फायदा उठाकर बाहरी शक्तियां (विशेष रूप से चीन) इन देशों में अपनी "ऋण कूटनीति" (Debt Diplomacy) के जरिए प्रभाव बढ़ा रही हैं. जिससे भारत के लिए स्थितियां चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं.
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन नाम के एक थिंक टैंक द्वारा आयोजित प्रोग्राम में अनिल चौहान ने कहा कि "चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच हितों में संभावित समानता है जिसके बारे में हम बात कर सकते हैं, जिसका भारत की स्थिरता और सुरक्षा गतिशीलता पर प्रभाव पड़ सकता है."
CDS अनिल चौहान ने कहा कि भारतीय महासागर क्षेत्र (IOR) के देशों में आर्थिक संकट ने बाहरी शक्तियों को ऋण कूटनीति के माध्यम से अपना प्रभाव बढ़ाने का अवसर दिया है, जिससे भारत के लिए स्थितियां प्रतिकूल हुई हैं. इसी प्रकार बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों, दक्षिण एशिया में बार बार बदलती सरकारें और विचारधारा में आए शिफ्ट ने भारत के लिए एक बड़ी चुनौती पैदा की है जिसका सामना हम कर रहे हैं
जनरल चौहान के मुताबिक इसी प्रकार, चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच हितों का संभावित मेलजोल हो रहा है. इसकी क्षेत्रीय स्थिरता और सुरक्षा संबंधी निहितार्थ हो सकते हैं.
CDS चौहान ने किन चुनौतियों की ओर इशारा किया है?
चीन और पाकिस्तान के बीच पहले से ही गहरा सैन्य और आर्थिक सहयोग रहा है. सीडीएस चौहान ने कहा कि पिछले पांच सालों में पाकिस्तान ने अपने हथियार और सैन्य साजो सामान का 70 से 80 फीसदी हिस्सा चीन से हासिल किया है. उन्होंने कहा कि चीनी सैन्य कंपनियों के पाकिस्तान में व्यावसायिक दायित्व हैं.
इसके अलावा चीन का पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर निवेश भी (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा-CPEC) भी इस सघन आर्थिक रिश्ते का उदाहरण है.
चीन भले ही इससे बार बार इनकार करता हो कि पाकिस्तान के साथ उसके सैन्य सहयोग किसी तीसरे देश को टारगेट कर नहीं करते हैं. लेकिन ये चीन का सरासर झूठ है. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान को चीन से मिले सक्रिय सैन्य सहायता इस बात की पुष्टि करती है कि चीन झूठ बोल रहा है. हाल ही में इंडियन आर्मी के उपसेना प्रमुख राहुल आर सिंह ने कहा था कि इस जंग को दौरान चीन लाइव लैब के रूप में इस्तेमाल कर रहा था.
अब इस गुट में तीसरा देश बांग्लादेश शामिल हो गया है. पिछले साल बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद मौजूदा बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इंडिया के विरूद्ध भावनाएं भड़का रही है.
बांग्लादेश की भौगोलिक स्थिति भारत की पूर्वी सीमा पर रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है और इसका चीन के साथ गठजोड़ भारत को तीसरे मोर्चे पर चुनौती दे सकता है.
क्षेत्रीय स्थिरता पर प्रभाव
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ये साफ स्पष्ट हो गया कि चीन पाकिस्तान को सक्रिय रूप से सहयोग कर रहा था. पाकिस्तान चीन का J-10 लड़ाकू विमान और P-15 मिसाइल का उपयोग कर रहा था.
भविष्य की किसी ऐसी ही स्थिति में अगर बांग्लादेश भी इस चीन-पाकिस्तान के गुट में शामिल हो जाए तो भारत के स्थितियां बहुत चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं.
अगर ये तीनों देश समन्वित रूप से कार्य करें, तो भारत को उत्तरी सीमा (चीन), पश्चिमी सीमा (पाकिस्तान) और पूर्वी सीमा (बांग्लादेश) पर एक साथ सैन्य और भू-राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. इससे क्षेत्रीय स्थिरता और भारत की सुरक्षा गतिशीलता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है. सीडीएस अनिल चौहान ने अपने बयान में ऐसी ही परिस्थितियों की ओर इशारा किया है.
तीन मोर्चों पर एक साथ तनाव की स्थिति भारत की सैन्य और रणनीतिक संसाधनों पर भारी दबाव डाल सकती है. खासकर चीन की सैन्य तकनीक, पाकिस्तान की आतंकवाद-प्रायोजित रणनीति और बांग्लादेश की नई भू-राजनीतिक स्थिति भारत के लिए जटिल स्थिति पैदा कर सकती है.
भारतीय महासागर क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के व्यापार मार्गों और समुद्री सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है. साथ ही पड़ोसी देशों में अस्थिरता भारत के आर्थिक हितों को भी प्रभावित कर सकती है.
गौरतलब है चीन न सिर्फ सामरिक मोर्चे पर बल्कि राजनीतिक मोर्चे पर भी भारत के हितों के खिलाफ काम कर रहा है. हाल ही में खबर आई थी कि चीन और पाकिस्तान मिलकर एक ऐसा संगठन बनाना चाहते हैं जिससे सार्क की प्रासांगिकता ही खत्म हो जाए.
चीन-पाकिस्तान और बांग्लादेश की मुलाकात हो चुकी है
जून 2025 में चीन के कुनमिंग शहर में चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच पहली त्रिपक्षीय बैठक हई थी. कहने को इस बैठक में व्यापार, बुनियादी ढांचा, डिजिटल अर्थव्यवस्था, कृषि, और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा हुई थी. लेकिन भारत में इसे क्षेत्रीय भू-राजनीति में बदलाव के रूप में देखा जा रहा है, जो भारत के लिए रणनीतिक चुनौती हो सकता है. हालांकि बांग्लादेश ने इसे गैर राजनीतिक जमावड़ा करार दिया. गौरतलब है कि बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद पाकिस्तान बांग्लादेश से संबंध सुधारने में जुटा है.
इसके अलावा म्यांमार में गृह युद्ध, यहां चीन की बढता दबदबा भारत की पूर्वी सीमा पर अतिरिक्त दबाव डाल रही है.
जनरल चौहान की ये टिप्पणियां मांग करती हैं कि भारत स्थितियों का सटीक आकलन करे और अपने तैयारी का दायरा भी उसी अनुपात में बढ़ाए. इसके लिए व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति बनाए जाने की जरूरत है.
भारत की तैयारी
इस नई भू-राजनीतिक परिदृश्य के लिए भारत लंबे समय से तैयारी कर रहा है. मई 2025 में ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच हुए चार दिवसीय संघर्ष में भारत ने इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर, नॉन कॉन्टैक्ट वॉरफेयर, साइबर, और ड्रोन युद्ध में अपनी क्षमता दिखाई. भारतीय वायु रक्षा प्रणाली (जैसे S-400, आकाशतीर) ने पाकिस्तानी ड्रोन और मिसाइल हमलों को नाकाम किया.
भारत पिछले कुछ सालों से अपने आयुध भंडारों के आधुनिकीकरण और स्वदेशीकरण पर जोर दे रहा है, ताकि देश के हथियार आधुनिक बन सकें और देश की तकनीक का इस्तेमाल किया जा सके. ब्रह्मोस मिसाइल का विकसित किया जाना और इस प्रयास सबसे अच्छा उदाहरण है.
भारत ने सैन्य तैयारियों के अलावा कूटनीतिक और आर्थिक तैयारियां की है. भारत ने Quad और BRICS जैसे मंचों पर अपनी स्थिति मजबूत की है.
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