Government Shooter in Bihar: बिहार में पिछले पांच दिनों से एक शार्प शूटर खुलेआम घूम रहा है, वो भी बाकायदा सरकारी बंदूक के साथ. ये शूटर अब तक 26 शिकार कर चुका है. और गिनती कहां तक जाएगी ये अभी कहना मुश्किल है. उस शिकारी ने अब भी वहां डेरा डाला हुआ है. लेकिन इस बात ने फिर एक सवाल खड़ा कर दिया है. सवाल वही पुराना है कि क्या बेजुबान जानवरों को गोली मारना सही है. और सवाल ये भी है कि क्या जानवरों की वजह इंसानों का नुकसान होना वाजिब है. चलिए आपको बताते हैं शिकार और शिकारी की ये पूरी कहानी.
जब शेर आदमख़ोर हो जाए तो उसे गोली मार दी जाती है. जब आदमी आदम ना रह जाए तो उसे मौत दी जाती है. इंसान और जानवर के बीच ज़िंदगी और मौत, सज़ा और रहम का ये एक अजीब और निराला खेल है. कब, कैसे किसकी जान लेनी है और किसे बचाना है ये इंसान तय करता है. खुद अपने लिए भी और जानवरों के लिए भी. मसलन बिहार से आई इस सबसे ताज़ा तस्वीर को ले लीजिए.
बिहार में शिकारी शिकार के लिए तैयार है. शिकारी के साथ बाकायदा कानून के मुहाफिज भी हैं. क्योंकि कानून ने ही उसे शिकार की इजाज़त दी है. नज़रें तेज़ और निशाना अचूक. उधर शिकार दिखा इधर ट्रिगर दबा. पलक झपकते शिकार ज़मीन पर. और इसके साथ ही एक और जानवर की मौत. एक और नीलगाय का खात्मा. शायद इस नीलगाय की मौत के साथ पिछले कुछ दिनों से जारी शिकार में अब गिनती 26 के पार जा पहुंची है. यानी ये कानूनी या सरकारी शिकारी अब तक 26 नीलगाय को गोली मार चुका है.
पर क्यों? आखिर क्यों इन बेजुबान जानवरों को देखते ही गोली गोली मार देने का ऑर्डर दिया गया है? क्यों दौड़ा-दौड़ा कर इन्हें गोली मारी जा रही है? क्या नीलगाय का शिकार जायज़ है? क्या ये संरक्षिज जानवरो की लिस्ट में नहीं आता? और सबसे बड़ा सवाल ये कि क्या नील गाय गाय है? या बस ये नाम की ही गाय है?
ज़ाहिर है एक नीलगाय के नाम निकाले गए इस शूट एंड साइट ऑर्डर के पीछे की अपनी वजह है. कुल मिला कर लब्बोलुआब ये है कि जब शिकारी सरकारी हैं तो इन बेजुबान की जान कैसे बचे? और अगर इन्हें बख्श दिया जाए और यूं ही खुला छोड़ दिया जाए तो फिर कई घरों का चूल्हा बुझ जाता है. यानी लड़ाई सीधे इंसान और जानवर के बीच की है. अब इनमें कौन सही है और कौन गलत ये आप तय करें. इंसान के साल भर की मेहनत की बर्बादी भी ठीक नहीं. तो इन जानवरों के जीने का तरीका भी सही नहीं कहा सकता. तो क्या हल सिर्फ इनकी मौत है?
बिहार का नवादा इलाका, जहां एक बड़े हिस्से पर खेती होती है. और यहीं एक बड़े हिस्से पर बड़ी तादाद में नीलगाय भी बसती है. सालों से होता ये आ रहा है कि जैसे ही फसल खड़ी होती है, नीलगाय का झुंड खेतों पर धावा बोल कर उन्हें बर्बाद कर देती है. किसानों का ये मसला इतना गंभीर है कि नीलगाय की दहशत की वजह से बहुत से किसानों ने तो नई फसल लगाना ही बंद कर दिया. साग सब्जी तक उगाने से कतराने लगे.
इस पूरे इलाके में आसपास कोई घना जंगल भी नहीं है. लिहाजा सारी नील गाय ज्यादातर आबादी के इर्दगर्द हैं और खुले इलाकों को ही अपना घर मानती हैं. अब यहां तक तो ठीक है. पर दिक्कत ये है कि जब य़ही नील गाय झुंड में निकलती हैं तो खेत-दर खेत तबाही मचा देती हैं. फसल से लेकर सब्जियां तक बर्बाद कर देती हैं. किसानों की दुश्मन बन चुकी नील गाय को खदेड़ने के लिए अब तक घरेलू तरीके आज़माए जा रहे थे. लाठी-डंडे लेकर किसान रात-दिन फसलों की पहरेदारी करने लगे. पटाखे छोड़कर या हो हल्ला कर नीलगाय को भगाने की कोशिश की लेकिन नील गायों का झुंड जब खेतों पर हमला करता. तो क्या फसल और क्या किसान. किसी को भी नहीं बख्शती.
नीलगाय की दहशत का आलम ये है कि किसानों को अपनी ही उगाई साग सब्जी तक खाने को नहीं मिल रही. खासकर पिछले चार पांच सालों से नीलगाय ने यहां जो आफत मचा रखी है उससे किसान खासा दुखी भी है. वजह ये कि वो पूरी मेहनत और शिद्दत से फसल उगाते हैं. लेकिन जब फसल काटने का वक्त आता है उससे पहले ही नील गाय सब कुछ बर्बाद कर देती है. इसी बर्बादी के चलते अब कई किसान तो खेती बाड़ी ही छोड़ देना चाहते हैं.
शरुआत में किसानों ने नीलगाय से निपटने की खुद ही कोशिश की. पर दिक्कत ये थी की नील गाय जब भी खेतों पर धावा बोलते तो झुंड में बोलते. बकौल किसान एक झुंड में अमूमन 30 से ज्यादा नील गाय होती. और उनके इलाके में नील गाय की ऐसी दो सी तीन झुंड मौजूद है. पर तमाम कोशिशों के बावजूद जब खेत खलिहान और फसल बर्बाद होते रहे तब किसानों ने आसपास के गांवों के मुखिया के पास पहुंचे. इसी के बाद मुखिया ने इलाके के डीएम और वन विभाग के अफसरों से संपर्क किया. आखिर में वन विभाग ने ही नील गाय की समस्या से निपटने के लिए शूटर को बुलाने का फैसला किया. शूटर यानी सरकारी शिकारी.
सरकारी आदेश मिलते ही बिहार के मगध इलाके के नामचीन शूटर मोहम्मद कय्याम अख़्तर और उनकी टीम को बुलाया गया. कय्याम अख्तर पिछले चार पांच दिनों से अपनी टीम के साथ सुबह सुबह गांव का रुख करते हैं. टीम के पास नील गाय से निपटने का पूरा इंतजाम होता है. जैसे ही इनकी टीम को गांववालों से नील गाय के किसी झुंड के बारे में जानकारी मिलती है, ये फौरन अपनी टेलीस्कोप राइफल के साथ मिशन के लिए निकल पड़ते हैं. पिछले चार दिनों में ही ये अब तक 26 नीलगाय का शिकार कर चुके हैं.
शूटर कय्याम अख्तर के आने से नील गाय की दहशत थोड़ी कम तो हुई है लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. इसीलिए अभी अगले कुछ दिनों तक नील गाय का ये सरकारी शिकार जारी रहने की उम्मीद है. केंद्र सरकार से बिहार के कुल 31 जिलों के लिए शिकार की मंजूरी दी गई है. जहां एक अंदाजे के मुताबिक पिछले 10 सालों में नील गायों की संख्या 50 हजार तक पहुंच गई है. नील गायों की संख्या बढ़ने की वजह अब तक उनका संरक्षित जीव की श्रेणी में होना माना जा रहा है. अभी तक नील गायों को मारना जुर्म था. जिसकी वजह से नील गायों की तादाद बढ़ती चली गई. लेकिन अब बिहार में भी कुछ नियमों के साथ नील गायों को संरक्षित श्रेणी से बाहर कर दिया है. हालांकि जानकार नील गायों के आतंक के पीछे इंसानों को ही जिम्मेदार मानते हैं.
आखिर नीलगाय है क्या? क्या ये गाय है? या फिर गाय की ही कोई प्रजाति है? नीलगाय को संरक्षित जीव की श्रेणी में क्यों रखा गया है? इसे मारना जुर्म क्यों है? देश में खास तौर पर पूरे उत्तर और मध्य भारत में अगर फसलों को सबसे ज्यादा कोई नुकसान पहुंचाता है तो वो नील गाय है. एक अंदाजे के मुताबिक हर साल नील गाय की वजह से किसानों को पचास से 75 करोड़ का नुकसान होता है. पर ज्यादातर किसान नीलगाय को इसलिए नहीं मारते क्य़ोंकि एक तो इसे मारना जुर्म है और दूसरा इसके नाम के साथ गाय जुड़ा है. यानी नीलगाय भारत के उन कुछ खुशनसीब प्राणियों में से एक है जिन्हें धार्मिक मान्यताओं की वजह से सुरक्षा हासिल है. चूंकि इसके नाम के साथ गाय शब्द जुड़ा है, लिहाजा लोग इसे गाय की बहन समझकर नहीं मारते.
जबकि हकीकत ये है कि नीलगाय में गाय जैसा कुछ नहीं है. वन्य जीव के जानकारों की मानें तो नीलगाय कोई गाय नहीं बल्कि हिरण की प्रजाति का जानवर है. इस वक्त पूरे देश में लगभग एक लाख नील गाय हैं. बिहार, यूपी, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में सबसे ज्यादा नीलगाय सबसे ज्यादा खड़ी फ़सलों को नुकसान पहुंचाती है, अकेला पाकर किसानों पर हमला कर देती है. ग्रामीण इलाकों में नीलगाय सड़क हादसों की भी एक बड़ी वजह है.
नीलगाय घास भी चरती है और झाड़ियों के पत्ते भी खाती है. मौका मिलने पर वह फसलों पर भी धावा बोलती है. उसे बेर के फल खाना बेहद पसंद है. महुए के फूल भी बड़े चाव से खाती है. नीलगाय की सूंघने और देखने की शक्ति अच्छी होती है. लेकिन सुनने की क्षमता कमजोर होती है. ऊबड़-खाबड़ जमीन पर भी वह घोड़े की तरह तेजी से और बिना थके काफी दूर तक भाग सकती है. घने जंगलों में रहना उसे पसंद नहीं.
नीलगाय का शिकार इसलिए मुश्किल होता है क्योंकि नीलगाय चरते या सुस्ताते वक्त भी बेहद सतर्क रहती है. सुस्ताने के लिए वह खुली जमीन चुनती है और एक-दूसरे से पीठ सटाकर लेटती है. लेटते वक्त हर दिशा पर झुंड का कोई एक सदस्य निगरानी जरूर रखता है. कोई खतरा दिखने पर वह तुरंत खड़ी हो जाती है और दबी आवाज में पुकारने लगती है. वैसे भारत में नीलगाय अभी भी एक संरक्षित जानवर है. लेकिन बहुत से देशों में नीलगाय का शिकार आज भी खुलेआम होता है.
(नवादा से सुमित भगत का इनपुट)
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