दिल्ली की एक अदालत ने साल 2009 के चर्चित पानीपत एसिड अटैक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. 16 साल बाद तीन मुख्य आरोपियों को बरी कर दिया है. एडिशनल सेशंस जज जगमोहन सिंह ने सबूतों की कमी, कमजोर जांच और रिकॉर्ड में जरूरी साक्ष्य मौजूद न होने का हवाला देते हुए यशविंदर, मंदीप मान और बाला को दोषमुक्त कर दिया.
कोर्ट के मुताबिक, तीनों आरोपियों के खिलाफ क्रिमिनल कॉन्सपिरेसी का आरोप साबित नहीं हो सका. अदालत ने कहा कि प्रॉसिक्यूशन आरोपों को ठोस और विश्वसनीय सबूतों के जरिए साबित करने में नाकाम रहा. इसी आधार पर तीनों को बरी करने का फैसला लिया गया. यह फैसला बंद कमरे में सुनाया गया. इस पर पीड़िता ने अपना रोष प्रकट किया है.
पीड़िता शाहीन मलिक के वकील मदिया शाहजर ने फैसले के बाद कहा कि कोर्ट ने यह माना है कि जांच में गंभीर खामियां रहीं और जरूरी सबूत रिकॉर्ड पर नहीं लाए गए. उन्होंने बताया कि अदालत ने जांच अधिकारी के खिलाफ जांच के आदेश दिए हैं. कोर्ट ने सहानुभूति तो जताई, लेकिन कहा कि 16 साल की कानूनी लड़ाई के बाद न्याय की उम्मीद की जा रही थी.
कोर्ट के फैसले के बाद रोने लगी शाहीन मलिक
वकील ने साफ किया कि इस फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी जाएगी और जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट तक जाया जाएगा. कोर्ट सूत्रों के अनुसार, इस मामले में विस्तृत आदेश 26 दिसंबर को जारी किया जाएगा. इस फैसले के बाद शाहीन मलिक रोने लगी. उन्होंने कहा कि इतने साल इंसाफ के लिए इंतजार किया, लेकिन उनको निराश हाथ लगी है.
'ऐसे पीड़ित महिलाओं का हौसला टूट जाएगा'
उन्होंने यह भी कहा कि इससे अच्छा होता कि हाथों हाथ हिसाब चुकता हो जाता. निराशा जताते हुए वो बोलीं, '' मैं हाईकोर्ट जाऊंगी. सुप्रीम कोर्ट जाऊंगी. लडूंगी. चाहे हार हो या जीत. मैं निराश हो गई तो मेरे पीछे इंसाफ की उम्मीद लगाए बैठी दूसरी पीड़ित महिलाओं का हौसला टूट जाएगा. पीड़ितों के मुकदमे फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाने की बात होती है, लेकिन इंसाफ नहीं मिलता.''
एसिड अटैक में नाबालिग के शामिल होने का आरोप
इस केस में इससे पहले एसिड अटैक को अंजाम देने वाले नाबालिग को 17 दिसंबर 2015 को दोषी ठहराया जा चुका है. उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 326 और 308 के तहत सजा सुनाई गई थी. यह हमला 2013 के क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट से पहले हुआ था, जिसके बाद एसिड अटैक के लिए विशेष धारा 326A लाई गई थी. आरोपियों की तरफ से वकील प्रियदर्शनी पेश हुई थी.
क्रिमिनल कॉन्सपिरेसी और गंभीर चोट पहुंचाने के आरोप
उन्होंने बताया कि बाला पर भारतीय दंड संहिता की धारा 120B, 326 और 308 के तहत आरोप थे. यशविंदर पर किडनैपिंग, रेप, आपराधिक धमकी और अपराध की कोशिश से जुड़ी गंभीर धाराओं में मुकदमा चला. वहीं मंदीप मान पर भी क्रिमिनल कॉन्सपिरेसी और गंभीर चोट पहुंचाने के आरोप थे. डिफेंस का यह भी तर्क था कि नाबालिग को दोषी नहीं ठहराया गया था.
नौकरी के लिए गई शाहीन मलिक पर हुआ था एसिड अटैक
इस तथ्य को मौजूदा अदालत के संज्ञान में लाया गया. कोर्ट ने इस पहलू पर भी विचार किया. प्रॉसिक्यूशन के मुताबिक, साल 2009 में हरियाणा के पानीपत में शाहीन मलिक पर उस वक्त एसिड अटैक हुआ था, जब वह यशविंदर के कॉलेज में स्टूडेंट काउंसलर की नौकरी के सिलसिले में वहां गई थी. उसी दौरान पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी में MBA कोर्स में एडमिशन लिया था.
वर्कप्लेस पर हुआ था शाहीन मलिक का सेक्शुअल हैरेसमेंट
शाहीन को अपने वर्कप्लेस पर यशविंदर की तरफ से सेक्शुअल हैरेसमेंट का सामना करना पड़ा. इसके बाद यशविंदर की पत्नी बाला ने यूनिवर्सिटी के दो स्टूडेंट्स, मंदीप मान और एक नाबालिग के साथ मिलकर शाहीन पर हमला कराने की साजिश रची. साल 2013 में इस केस को दिल्ली के रोहिणी कोर्ट में ट्रांसफर किया गया. इसके बावजूद सुनवाई बेहद धीमी रही.
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद भी नहीं मिला पीड़िता को इंसाफ
इसी देरी पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की थी. 4 दिसंबर को कोर्ट ने शाहीन मलिक की याचिका पर सुनवाई करते हुए एसिड अटैक मामलों में धीमी सुनवाई को सिस्टम का मजाक बताया था. कोर्ट ने इसे नेशनल शेम करार देते हुए देशभर के हाई कोर्ट से ऐसे सभी लंबित मामलों की जानकारी मांगी और शाहीन मलिक के केस में रोजाना ट्रायल का निर्देश दिया था.
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