Ali Budesh: कहानी डॉन अली बुदेश की, जिसने खाई थी दाऊद इब्राहिम को निपटाने की कसम

Who is Ali Budesh: अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का जानी दुश्मन डॉन अली बुदेश की मौत हो गई. वो कई सालों से बहरीन में रह रहा था. बुदेश लंबे समय से बीमार था. अली बुदेश ने दाऊद को जान से मारने की कसम खाई थी.

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अली बुदेश की बहरीन में मौत हो गई (फाइल फोटो) अली बुदेश की बहरीन में मौत हो गई (फाइल फोटो)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 15 अप्रैल 2022,
  • अपडेटेड 3:44 PM IST
  • मुंबई की झुग्गियों में रहता था अली बुदेश
  • कभी दाऊद के करीबियों में से था बुदेश

Who is Ali Budesh: अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के सबसे बड़े जानी दुश्मन अली बुदेश की मौत हो गई है. दाऊद की तरह ही अली बुदेश भी अंडरवर्ल्ड डॉन था. मुंबई में पला-बढ़ा अली बुदेश बहरीन में रह रहा था. अली बुदेश लंबे समय से बीमार था. उसे एक महीने पहले बहरीन के आर्मी अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां गुरुवार को उसकी मौत हो गई. 

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अली बुदेश मुंबई का रहने वाला था. उसकी मां भारतीय और पिता अरबी थे. इसलिए वो खुद को अरबी ही बोलता था. अली बुदेश और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम कभी दोस्त हुआ करते थे, लेकिन आगे चलकर दोनों के रिश्तों में दरार आ गई. अली बुदेश ने दाऊद को जान से मारने की कसम खाई थी.

2010 में अली बुदेश का एक ऑडियो टेप इंडिया को मिला था. इसमें अली कह रहा था, 'दाऊद इब्राहिम का एक ट्रेडमार्क स्टाइल है. वो एक हाथ से आपका भरोसा जीतेगा और दूसरे से गोली मार देगा. यही उसका स्टाइल है. सरल शब्दों में दाऊद एक सियार है.'

इस ऑडियो टेप में अली बुदेश आगे कह रहा था, 'दाऊद ने मुझसे कहा था कि अब तक मैं तुम्हारा भाई था, जिस दिन तुम्हारे लिए दाऊद इब्राहिम बन गया, उस दिन तुम्हें महसूस होगा. तो मैंने भी उससे कहा कि जिस दिन मैं तुम्हारे लिए अली बुदेश बन गया, उस दिन तुम रोओगे.'

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कैसे बने एक-दूसरे के जानी दुश्मन

1957 में जन्मा अली बुदेश मुंबई में रहता था. यहां उसने जेबकट जैसे छोटे-मोटे अपराध करने शुरू किए. दाऊद से उसकी मुलाकात बड़े नाटकीय ढंग से हुई थी. बुदेश विकरोली में पंखशाह बाबा की दरगाह के पास झुग्गियों में रहा करता था. एक दिन पुलिस वाले दाऊद के गुर्गों को पकड़ रहे थे. पुलिस से बचते हुए दाऊद के गुर्गे उस झुग्गियों में आ गए और उन्हें बुदेश से छिपने की जगह मांगी. बुदेश ने उन्हें अपने यहां छिपने की जगह दी. बुदेश को इसका इनाम मिला. वो दुबई गया और वहां जाकर दाऊद से मिला.

बाद में दाऊद इब्राहिम की डी-कंपनी से जुड़ गया. दाऊद के साथ मिलकर उसने रंगदारी भी की. इसी रंगदारी की वजह से दोनों के रिश्ते बिगड़ गए और दोनों जानी दुश्मन बन गए. हुआ ये था कि उस समय के मुंबई के एक बिल्डर नटवर लाल देसाई एक प्रॉपर्टी डील करने जा रहे थे. अली बुदेश और यूपी के रहने वाले डॉन सुभाष सिंह ठाकुर ने देसाई से इस डील के लिए पैसे मांगे. देसाई का दाऊद की डी-कंपनी से कनेक्शन था. उन्होंने दाऊद को इसकी शिकायत की. इसके बाद दाऊद ने अली को फोन कर धमकाया और देसाई से दूर रहने को कहा.

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ऑडियो टेप में अली ने इस फोन कॉल के बारे में भी बताया था. अली ने ऑडियो टेप में कहा, 'मैंने उससे (दाऊद) कहा कि तुम्हें मुझे गाली देने का कोई हक नहीं है. मैंने उससे कहा कि अब तक तुम मुझे अली भाई के नाम से जानते थे, जिस दिन मैं अली बुदेश बन गया, उस दिन रोओगे.'

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दाऊद की गैंग को खत्म करने की साजिश

दाऊद की धमकी भरा फोन आने के बाद बुदेश और ठाकुर ने कथित तौर पर देसाई की हत्या कर दी. इसके बाद दोनों के रिश्ते और बिगड़ गए. इसके बाद अली बहरीन चला गया और वहां से दाऊद की गैंग को खत्म करने की साजिश रची.

दाऊद का ज्यादातर धंधा नेपाल से चलता था. अली ने उसके नेपाल के नेटवर्क पर स्टडी की और उसके बाद दाऊद की गैंग को खत्म करने के लिए बबलू श्रीवास्तव से हाथ मिलाया. दोनों ने मिलकर दाऊद के करीबी जमीम शाह की काठमांडू में हत्या कर दी. जमीम दाऊद का नकली नोटों का कारोबार संभालता था. नेपाल पुलिस ने बबलू श्रीवास्तव को जमीम की हत्या का आरोपी बनाया.

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जमीम की हत्या के बाद बुदेश ने डी-कंपनी के माजिद मनिहार और परेवज तांडा की हत्या करने का भी दावा किया. इन हत्याओं का मकसद डी-कंपनी को कमजोर करना था.

जब राकेश रोशन पर किया जानलेवा हमला

अली बुदेश ने पैसे के लिए बॉलीवुड से जुड़े लोगों को धमकाना शुरू किया. इनमें मुकेश भट्ट, बोनी कपूर और राकेश रोशन जैसे डायरेक्टर भी शामिल हैं. राकेश रोशन पर तो बुदेश की गैंग ने जानलेवा हमला भी किया था. 

दरअसल, 2000 में 'कहो न प्यार है' फिल्म आई थी. ये फिल्म जबरदस्त हिट हुई. बुदेश ने राकेश रोशन से फिल्म का प्रॉफिट शेयर करने को कहा, लेकिन उन्होंने मना कर दिया. 21 जनवरी 2000 को राकेश रोशन को उनके मुंबई के सांताक्रूज वेस्ट में स्थित ऑफिस के पास दो गोली मार दी गई. पहली गोली हाथ में और दूसरी गोली सीने में लगी. 

गोली मारने के बाद हमलावर वहां से भाग गए. बाद में हमलावरों की पहचान सुनील विठ्ठल गायकवाड़ और सचिन कांबले के तौर पर हुई. रोशन पर हमला उनकी हत्या करने के मकसद से नहीं हुआ था, बल्कि ये बताने के लिए हुआ था कि अब शिवसेना उनकी रक्षा नहीं कर सकती. 

 

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