दो कत्ल, तीन कातिल और पांच थ्योरी... फिर भी अनसुलझी है अतीक-अशरफ की मर्डर मिस्ट्री

अतीक और अशरफ की मौत को लेकर यूपी सरकार पहले ही दो-दो जांच टीम बना चुकी है. एक न्यायिक जांच टीम और दूसरी एसआईटी की जांच टीम. दोनों ही जांच टीम के सामने शुरुआती पांच ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब में ही अतीक और अशरफ की मौत का सच छुपा है.

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17 पुलिसवालों की सुरक्षा के बीच 3 कातिलों ने अतीक और अशरफ को गोलियों से भून डाला था 17 पुलिसवालों की सुरक्षा के बीच 3 कातिलों ने अतीक और अशरफ को गोलियों से भून डाला था

समर्थ श्रीवास्तव / संतोष शर्मा

  • प्रयागराज,
  • 27 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 7:02 PM IST

माफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को पुलिस अभिरक्षा के बीच मारने वाले शूटर सन्नी सिंह, लवलेश और अरुण मौर्य का नाम और चेहरा अब सभी लोग जान चुके हैं. यही वो तीन चेहरे थे, जिन्होंने 15 अप्रैल को 17 पुलिसवालों के घेरे में घुसकर अतीक और अशरफ का काम तमाम कर दिया था. इसके साथ ही कुछ सवाल हैं, जो लगातार हर तरफ पूछे जा रहे हैं. 

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अतीक और अशरफ की मौत पर सवाल
मसलन, आखिर इन तीनों ने ऐसा क्यों किया? किसके इशारे पर किया? अकेले किया? किसी की आड़ में किया? किसी के बहकावे में किया? किसी से सुपारी लेकर किया? या किसी का मोहरा बन कर किया? तो चलिए मीडिया और सोशल मीडिया के अलावा लोगों के मन में कत्ल की वजह और कत्ल की साजिश को लेकर जितने भी सवाल उठ रहे हैं, उन सवालों के जवाब सबूतों, दलीलों और तथ्यों के आधार पर ढूंढने की कोशिश करते हैं. 

जांच के पांच पहलू
अतीक और अशरफ की मौत को लेकर यूपी सरकार पहले ही दो-दो जांच टीम बना चुकी है. एक न्यायिक जांच टीम और दूसरी एसआईटी की जांच टीम. दोनों ही जांच टीम के सामने शुरुआती पांच ऐसे सवाल हैं, जिनके जवाब में ही अतीक और अशरफ की मौत का सच छुपा है. जांच के पांच बिंदुओं में पहला है- मोटिव यानी मकसद. दूसरा हथियार. तीसरा तीनों आरोपियों का बैकग्राउंड. चौथा तीनों आरोपियों के बीच का कॉमन फैक्टर और पांचवां साजिश के पर्दे के पीछे छुपा असली चेहरा यानी वो चौथा कौन? अब चलिए इन्हीं पांच बिंदुओं को सामने रख उन पांच थ्योरी पर बात करते हैं, जो अतीक और अशरफ की मौत से जोड़ी जा रही हैं. अतीक और अशरफ की मौत को लेकर अब तक कुल पांच थ्योरी सामने आई हैं. 

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मसलन, गोली चलाने के बाद तीनों ने सिर्फ एक नारा लगाया था. तीनों में से किसी ने भी अपना नाम या पता चीख कर नहीं बताया. अगर तीनों को सचमुच मशहूर होना था और उसी के लिए ये काम किया, तो अपने नाम का प्रचार भी करते. मगर ऐसा ना कर उन्होंने एक धार्मिक नारा लगाया. इससे साफ पता चलता है कि वो नाम कमाने की बजाय इस हत्याकांड को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे थे.

थ्योरी की कमज़ोर कड़ी
लेकिन इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने की थ्योरी भी एक जगह आकर रुक जाती है. वजह ये है कि इन तीनों में से एक लवलेश को छोड़ कर बाकी दोनों का किसी ऐसे कट्टरपंथी संगठन से कभी कोई जुड़ाव नहीं रहा. ऐसे में सन्नी और अरुण लवलेश के रास्ते पर क्यों चलेंगे? अब ऐसे में सवाल है कि फिर गोली चलाने के बाद आरोपियों ने धार्मिक नारा क्यों लगाया? तो बहुत मुमकिन है उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि मौके पर मौजूद लोगों से सहानुभूति हासिल कर सकें. वैसे भी अतीक और अशरफ को लेकर पूरे प्रयागराज में वकीलों से लेकर आमजन तक हर कोई गुस्से में ही था. 

दूसरी थ्योरी - विरोधी गैंग का काम
जुर्म के रास्ते पर चलते हुए पिछले 45 सालों में अतीक ने अपने सैकडों दुश्मन पैदा किए. प्रयागराज के कई गैंग से भी लगातार उसकी दुश्मनी चल रही थी. जैसे शुरुआत में अतीक और चांद बाबा गैंग की दुश्मनी थी. बहुत मुमकिन है कि अतीक का सफाया कर किसी और गैंग ने उसकी जगह लेने के लिए उसे रास्ते से हटा दिया हो. कुछ गैंग के नाम भी सामने आ रहे हैं. 

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थ्योरी की कमज़ोर कड़ी
लेकिन ये थ्योरी भी एक जगह आकर दम तोड़ देती है. जिस सुंदर भाटी से लेकर बाकी दो तीन गैंग के नाम सामने आ रहे हैं, उनसे अतीक की दुश्मनी का कभी कोई इतिहास ही नहीं रहा है. मसलन सुंदर भाटी गैंग जमीन से लेकर ठेके तक के मामले में कभी प्रयागराज तक अपनी पहुंच नहीं बना पाया. उसी तरह अतीक भी कभी भाटी गैंग के इलाके में अपनी धाक नहीं जमा पाया. बाकी बचे यूपी के दूसरे बड़े माफिया या गैंगस्टर. जैसे बृजेश सिंह या मुख्तार अंसारी. उनसे भी कभी अतीक का कोई विवाद नहीं रहा. यानी कहीं ना कहीं विरोधी गैंग वाली थ्योरी भी कमजोर लगती है.

तीसरी थ्योरी - किसी लोकल सफेदपोश का काम
अतीक का प्रयागराज पर चार दशक से भी ज्यादा वक्त तक दबदबा रहा. इस दौरान जो भी उसके सामने सर उठाता, उसने उसे कुचल डाला. कुछ लोगों ने वक्त और माहौल के हिसाब से अतीक से सुलह कर ली. एक थ्योरी ये भी है कि उसी प्रयागराज की गद्दी पर अतीक की जगह लेने के लिए उसे रास्ते से हटा दिया गया और ये काम प्रयागराज के किसी लोकल नेता के इशारे पर किया गया. प्रयागराज के एक दो नेताओं और अतीक के बीच पैसों के लेन देन की बात पहले से ही मीडिया में है. एक नेता से अतीक को कई करोड़ रुपये वापस भी लेने थे. इसी के मद्देनजर ये थ्योरी भी रखी जा रही है कि प्रयागराज के ही किसी लोकल नेता की मिलीभगत और साजिश से अतीक का काम तमाम कर दिया गया. 

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थ्योरी की कमज़ोर कड़ी
मगर ये थ्योरी भी एक जगह आकर कमजोर लगती है. अगर ये काम लोकल नेता का ही था तो फिर शूटर के तौर पर वो उन तीन अनजान लड़कों को प्रयागराज बुला कर इतना बड़ा रिस्क कैसे लेगा? तीनों लड़के कभी भी पुलिस के सामने उसका नाम उगल सकते हैं. फिर वो इस काम के लिए प्रयागराज के ही अपने भरोसेमंद लड़कों का इस्तेमाल करेगा, ना कि अनजान लड़कों पर भरोसा करेगा.

चौथी थ्योरी - सुपारी किलिंग
अब तक की तफ्तीश में सन्नी, लवलेश और अरुण मौर्य का जो बैकग्राउंड सामने आया है, उसे देखते हुए ये तय है कि तीनों 12-14 लाख की दो जिगाना पिस्टल अपने बूते पर नहीं खरीद सकते. यानी ये महंगी पिस्टल उन्हें उस शख्स ने दी है, जो अतीक को रास्ते से हटाना चाहता था. यानी जिसने अतीक की सुपारी दी. 

चौथी थ्योरी में दम
इस थ्योरी में थोड़ा दम नजर आता है. इसकी वजह भी है. इन तीनों ने जिस तरह से अतीक और अशरफ को तमाम पुलिसवालों के बीच घुस कर मारा, जिस सटीक तरीके से अतीक और अशरफ पर निशाने लगाए, पुलिस और मीडिया के लोगों को गोली ना लगे, उसकी जैसी एहतियात बरती, उसे देखते हुए ये तय है कि इन तीनों को इस शूटआउट से पहले इसकी पूरी ट्रेनिंग दी गई थी. जाहिर है इन्हें जिगाना पिस्टल देनेवाला, पिस्टल के बाद ट्रेनिंग देनेवाला और उससे पहले अतीक और अशरफ की सुपारी देनेवाला शख्स एक ही है. यानी ये तीनों इस साजिश के मोहरे भर हैं. असली खिलाड़ी कोई और है. पर वो है कौन? और उससे भी बड़ा सवाल कि उसने अतीक की सुपारी क्यों दी? 

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पांचवीं थ्योरी - सिस्टम ने मारा अतीक को
जिस तरह 17 पुलिसवालों की सुरक्षा के बीच अतीक और अशरफ को गोलियां मारी गईं, और जिस तरह इस शूटआउट से पहले मीडिया और सोशल मीडिया में अतीक और गाड़ी पलटने की बातें हो रही थी, उसे देखते हुए एक थ्योरी ये भी चल रही है कि अतीक और अशरफ की हत्या के पीछे सिस्टम है. आम लफ्जों में कहें तो इस थ्योरी का मतलब है कि खुद पुलिस की मिलीभगत से इन दोनों को मारा गया और मारने का ये तरीका इसलिए चुना गया, क्योंकि एनकाउंटर में अतीक और अशरफ मारा जाता तो कटघरे में सीधे पुलिसवाले आते. 

थ्योरी की कमज़ोर कड़ी
मगर इस थ्योरी में भी एक बहुत बड़ी कमी है. कोई भी पुलिस तीन अलग-अलग लड़कों को एक ऐसी साजिश में क्यों अपने साथ मिलाएगी? जिसका खुलासा होने पर खुद पुलिसवालों की ना सिर्फ नौकरी खतरे में पड़ जाएगी, बल्कि जेल तक जाना पड़ेगा. आखिर तीन अलग-अलग अनजान लड़कों पर पुलिस क्यों भरोसा करेगी कि वो आगे कभी अपना मुंह नहीं खोलेंगे. अमूमन ऐसी किसी बड़ी साजिश में किसी एक को तो राजदार बनाया जा सकता है, मगर एक से ज्यादा लोगों को राजदार बनाने का मतलब है, खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारना. 

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तो ये रही वो पांच थ्योरी, जो अतीक और अशरफ के कत्ल से जोड़ी जा रही हैं. लेकिन यहां हर थ्योरी में कोई ना कोई कमजोर कड़ी है. अगर कायदे से देखें तो जो थ्योरी सबसे ज्यादा कनविनसिंग लग रही है, वो या तो मशहूर होनेवाली या फिर सुपारी वाली थ्योरी है और इन दोनों ही थ्योरी में एक चीज तय है कि इन तीनों के अलावा कोई चौथा है, जो इस साजिश का मास्टरमाइंड है. पर वो है कौन? ये कौन एक बार सामने आ गया तो फिर हर क्यों का भी जवाब सामने आ जाएगा.
 

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