मुंबई के पवई इलाके में 17 बच्चों और 2 वयस्कों को एक स्टूडियो के भीतर बंधक बना लिया गया. करीब तीन घंटे तक चला ये खौफनाक ड्रामा पुलिस के सूझबूझ भरे ऑपरेशन से खत्म हुआ, लेकिन इसने एक बार फिर याद दिला दिया कि मुंबई पहले भी बंधक बन चुकी है. इससे पहले इस तरह की कई घटनाएं हो चुकी हैं, लेकिन हर बार मुंबई पुलिस ने कमाल का काम किया है.
30 अक्टूबर को दोपहर करीब 1:30 बजे पवई पुलिस स्टेशन को अलर्ट मिला कि महावीर क्लासिक बिल्डिंग के अंदर स्थित आरए स्टूडियो में 50 वर्षीय रोहित आर्य ने 17 बच्चों को बंधक बना लिया है. बताया गया कि 10 से 12 साल की उम्र के ये बच्चे एक वेब सीरीज के ऑडिशन के लिए बुलाए गए थे, जो पिछले दो दिनों से चल रहा था. सूचना मिलते ही पुलिस हरकत में आ गई.
देखते ही देखते स्टूडियो के बाहर पुलिस, फायर ब्रिगेड और कमांडों की टीम जुटने लगी. चारों ओर अफरातफरी मच गई. बच्चों के परिजन रोते-चीखते पहुंचे. कुछ देर तक बातचीत के जरिए हालात संभालने की कोशिश की गई, लेकिन जैसे ही आरोपी ने आक्रामक रुख दिखाया, कमांडों ने मोर्चा संभाल लिया. 3 घंटे के बाद पुलिस ने सभी बच्चों और वयस्कों को सुरक्षित निकाल लिया.
पुलिस के मुताबिक, इस ऑपरेशन के दौरान रोहित आर्य को गोली लगी. उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां उसने दम तोड़ दिया. हाल के वर्षों में यह पहला मामला हो सकता है, जिसमें इतनी बड़ी संख्या में बच्चों को एक साथ बंधक बनाया गया हो. लेकिन ये पहली बार नहीं जब मुंबई ने ऐसा खतरा देखा है. इस आर्थिक राजधानी ने पिछले एक दशक में कई ऐसे बंधक संकट झेले हैं.
इस दौरान पुलिस की हिम्मत और रणनीति की परीक्षा हुई है. मार्च 2010 का किस्सा आज भी याद है. अंधेरी वेस्ट के एक अपार्टमेंट में 60 वर्षीय रिटायर्ड कस्टम्स ऑफिसर हरीश मरोलिया ने 14 साल की लड़की हिमानी को अपने ही फ्लैट में बंधक बना लिया. इस वजह ये थी कि हाउसिंग सोसाइटी के सदस्यों के साथ उनका झगड़ा था. एक मंजिल पर चल रहे कंस्ट्रक्शन को लेकर विवाद था.
हरीश मरोलिया ने पहले हवा में फायरिंग की, सोसाइटी के सेक्रेटरी को धमकाया और फिर मासूम लड़की को बंधक बना लिया. कुछ ही देर में ड्रामा हिंसक हो गया. हरीश ने लड़की को गोली मार दी. पुलिस की जवाबी कार्रवाई में वो भी मारा गया. इसी तरह साल 2008 के नवंबर में मुंबई ने एक और बंधक संकट देखा. बिहार के 25 वर्षीय राहुल राज ने एक डबल-डेकर बस को कब्जे में ले लिया.
बस कुर्ला के बैल बाजार इलाके तक पहुंची, जहां करीब 100 पुलिसकर्मियों ने बस को चारों तरफ से घेर लिया. राहुल राज हाथ में पिस्टल लिए खड़ा था. उसने बस के अंदर मौजूद यात्रियों को धमकाया और पुलिस को चुनौती दी. जैसे ही उसे सरेंडर करने को कहा गया, उसने एक करेंसी नोट फेंका, जिस पर लिखा था, ''मैं एमएनएस नेता राज ठाकरे को मारने आया हूं.''
उस वक्त महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के मुखिया राज ठाकरे की पार्टी ने मुंबई में उत्तर भारतीयों के खिलाफ एक उग्र आंदोलन छेड़ रखा था. राहुल राज खुद को उस अत्याचार का जवाब देने वाला बताता था. लेकिन पुलिस ने उसे सरेंडर का मौका दिए बिना गोली मार दी. इस तरह ये संकट भी खूनी अंजाम पर खत्म हुआ. लेकिन सवाल छोड़ गया कि लोग किन हालातों में ऐसा करते हैं.
नागपुर की असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस शैलनी शर्मा कहती हैं, ''बंधक बनाने जैसी स्थितियों में सबसे अहम है जान बचाना और नुकसान कम करना. बातचीत हमेशा इन्हीं दो मकसदों को लेकर की जाती है. साल 2022 में उन्हें नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (एनएसजी) कमांडो को बंधक संकटों की ट्रेनिंग देने के लिए बुलाया गया था. उन्होंने लंदन में जाकर इसकी ट्रेनिंग ली है.
शैलनी शर्मा कहती हैं कि बातचीत के दौरान यदि अपराधी समझौते के मूड में नहीं होता, तो ऑपरेशन टीम को मौके पर हालात के मुताबिक फैसला लेना पड़ता है. साल 2010 के हुए बंधक कांड में उनको हरीश मरोलिया से बातचीत के लिए बुलाया गया था, लेकिन इससे पहले कि बातचीत शुरू होती, पुलिस टीम ने फ्लैट में एंट्री कर ली. दोनों ओर से गोलीबारी के बाद मामला खत्म हो गया.
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