5 साल, 35 हजार हत्याएं और हर रोज 20 की मौत... दहेज के दानवों का भयावह सच, दिल दहला देगा!

The Dowry Trap: ग्रेटर नोएडा की निक्की भाटी सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि उस आंकड़े का हिस्सा है, जिसमें रोजाना 20 महिलाएं दहेज की भेंट चढ़ जाती हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, साल 2017 से 2022 के बीच 35 हजार 493 महिलाएं का कत्ल दहेज के लिए कर दिया गया.

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दहेज हत्या को लेकर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े डराने वाले हैं. (Photo: ITG) दहेज हत्या को लेकर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े डराने वाले हैं. (Photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 28 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 7:22 AM IST

पांच साल. 35 हजार 493 महिलाओं की हत्या. वजह सिर्फ दहेज. ग्रेटर नोएडा की निक्की भाटी हो या फिर जोधपुर संजू बिश्नोई, दहेज की बलिबेदी पर चढ़ने वाली ये केवल दो महिलाएं नहीं हैं. हर दिन करीब 20 महिलाएं दहेज के लिए मौत के मुंह में धकेल दी जाती हैं. इन घटनाओं में कई बार शादी के कई साल बाद भी बहू को शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है.

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दहेज प्रथा का असर इतना गहरा है कि विवाह नामक संस्था अक्सर एक 'लेन-देन' में बदल जाती है. महिला अधिकार कार्यकर्ता योगिता भयाना बताती हैं कि दहेज अब भी समाज में खुलेआम महिमामंडित होता है. वो बताती हैं, "मैं नोएडा में एक शादी में गई थी. मैं देखकर हैरान रह गई कि दहेज के रूप में फॉर्च्यूनर और मर्सिडीज जैसी लग्जरी कारें उपहार में दी जा रही थीं.''

योगिता भयाना आगे बताती हैं, ''मैं दहेज का महिमामंडन बर्दाश्त नहीं कर सकी, इसलिए वहां से चली गई. यह सोच समाज की जड़ में है. निक्की के पिता भिखारी सिंह ने एक टीवी प्रोग्राम में चर्चा के दौरान बार-बार बताया कि उन्होंने दामाद को टॉप मॉडल एसयूवी दी थी. गहने और पैसे दिए थे. वो अपनी बेटी की मौत पर चर्चा करने की बजाए दहेज के बारे में बात कर रहे थे.

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हिंदुस्तान में दहेज विरोधी कानून साल 1961 से लागू है. लेकिन हकीकत यह है कि दूल्हे के परिवार से नकद, गहने, गाड़ियां और महंगे उपहार की उम्मीद आज भी वैसी ही है. जब ये मांग पूरी नहीं होतीं, तो बहू पर तानों की बौछार की जाती. उसे मारा-पीटा जाता. कई बार उसे मौत के घाट भी उतार दिया जाता. निक्की की शादी विपिन भाटी से महज 17 साल की उम्र में हुई थी. 

निक्की की मौत के बाद पुलिस जांच में कई परतें खुल रही हैं. शुरुआती आरोप पति और ससुराल वालों पर थे. सभी आरोपी विपिन भाटी, सास दयावती, ससुर सतवीर और देवर रोहित गिरफ्तार हो चुके हैं. लेकिन सवाल वही है क्या ये हत्या थी या आत्महत्या. विशेषज्ञों का मानना है कि कानूनी परिभाषा चाहे जो भी निकले, निक्की का अंत दहेज और प्रताड़ना का परिणाम था.

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दहेज की यह भयावहता सिर्फ निक्की भाटी तक सीमित नहीं. राजस्थान के जोधपुर में एक सरकारी स्कूल की शिक्षिका संजू बिश्नोई ने अपनी तीन वर्षीय बेटी को गोद में लेकर आग लगा ली. उसकी शादी के 10 साल हो चुके थे. वो नौकरी करके अच्छा वेतन पा रही थी. लेकिन ससुराल अब भी उससे दहेज की मांग कर रहा था. इसे लेकर उसे लगातार प्रताड़ित करता था.

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मनोवैज्ञानिक डॉ. श्वेता शर्मा बताती हैं कि दहेज पितृसत्तात्मक नियंत्रण का औजार बन चुका है. उनके मुताबिक, चाहे महिलाएं उच्च वेतन वाली नौकरी क्यों न कर रही हों, उन्हें अभी भी आश्रित माना जाता है. दहेज पुरुष अहंकार को संतुष्ट करने का माध्यम है. इतिहास भी इस भयावह सच की पुष्टि करता है. दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय और वर्जीनिया विश्वविद्यालय ने एक शोध किया.

शोधकर्ताओं ने 74 हजार से अधिक शादियों का अध्ययन कर बताया कि 90 फीसदी विवाहों में दहेज शामिल था. साल 1950 से 1999 के बीच दिए गए दहेज की कुल राशि 250 बिलियन डॉलर यानी 21 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गई. इस पर वकील सीमा कुशवाहा कहती हैं कि अदालतें अक्सर शादी में दिए गए दहेज को 'उपहार' बताने वाले तर्क से प्रभावित हो जाती हैं. 

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भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए का दुरुपयोग करने वाली महिलाओं के दुर्लभ मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने से असली पीड़ितों का केस कमजोर हो जाता है. मानसिक और भावनात्मक प्रताड़ना की पहचान अभी भी हमारी अदालतों में मुश्किल है, क्योंकि वहां सिर्फ चोट के निशान को ही सबूत माना जाता है. ऐसे में कई बार पीड़िता महिलाओं को न्याय नहीं मिल पाता है.

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ग्रेटर नोएडा के सिरसा गांव में 21 अगस्त को हुई दिल दहला देने वाली घटना ने साबित कर दिया कि दहेज आज भी केवल एक प्रथा नहीं, बल्कि मौत की वजह बन चुका है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े जो खौफनाक सच बयान करते हैं, वो हैरान कर देने वाले हैं. निक्की और संजू के बाद आगे न जाने कितनी महिलाएं अभी भी दहेज रूपी दानव का शिकार बनने वाली हैं.

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