Middle Class New Challenge: 30000 सैलरी... 20 हजार घर का किराया, मिडिल क्लास को डराने लगे ये बड़े शहर

भारत के सबसे बड़े शहरों में आम जिंदगी मुश्किल होती जा रही है. खासकर रहने की कीमत या हाउस रेंट (Home Rent) जिस तेजी से बढ़ रहा है. 1BHK फ्लैट का किराया भी लगभग ₹20,000 पहुंच गया है, जबकि सैलरी भी 30 हजार के आसपास है.

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सैलरी के मुकाबले घर किराये में बेतहाशा बढ़ोतरी. (Photo: ITG) सैलरी के मुकाबले घर किराये में बेतहाशा बढ़ोतरी. (Photo: ITG)

आजतक बिजनेस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 19 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 1:13 PM IST

देश के अब बड़े शहरों में रहना मिडिल क्लास के लिए दिन-ब-दिन महंगा होता जा रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, आज के समय में कई मेट्रो शहरों में लोगों की औसर सैलरी करीब 30,000 रुपये मंथली है, जबकि किराया ही 20,000 रुपये या उससे ज्यादा देना पड़ रहा है. यानी कमाई का ज्यादातर हिस्सा सिर्फ घर के किराया में चला जाता है.

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एक लिंक्डइन पोस्ट में एक्सपर्ट Sujay U ने लिखा है कि भारत के सबसे बड़े शहरों में आम जिंदगी मुश्किल होती जा रही है. खासकर रहने की कीमत या हाउस रेंट (Home Rent) जिस तेजी से बढ़ रहा है. उनके इस पोस्ट ने महानगरों में रूम रेंट को लेकर बहस फिर से छेड़ दिया है, जिसमें औसत आय और आसमान छूती किराये की लागत के बीच एक गहरे अंतर को उजागर किया गया है.
 
उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि मौजूदा समय में मुंबई समेत कई बड़े शहरों में औसत मासिक आय करीब ₹25,000 है, और एक 1BHK फ्लैट का किराया भी उसी सीमा में यानी लगभग ₹20,000 पहुंच गया है. ये आंकड़ा आम आदमी को डराता है. 

विश्लेषक Sujay U का कहना है कि इस तरह जब लोगों को ₹30,000 महीने मिलते हैं, तो किराया ही आमदनी का आधा से अधिक हिस्सा खा जाता है, तो फिर बाकी चीजें कैसे पूरी होंगी. 

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मुंबई सबसे महंगा शहर
विश्लेषक सुजय यू ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि मुंबई में औसत मासिक कमाई करीब ₹25,000 है, जबकि 1BHK फ्लैट का किराया ₹20,000 या उससे भी अधिक है. यानी लोगों की सैलरी का लगभग 80% हिस्सा सिर्फ किराए में जा रहा है. इससे बाकी खर्च जैसे खाना, ट्रांसपोर्ट, बच्चों की पढ़ाई या बचत लगभग नामुमकिन हो गई है.

 

अन्य शहरों में भी यही हाल
बेंगलुरु में औसत वेतन ₹28,000 से ₹30,000 के बीच है, यहां भी 1BHK का किराया ₹20,000 तक पहुंच गया है. दिल्ली, हैदराबाद और अहमदाबाद जैसे शहरों में भी स्थिति कुछ अलग नहीं है. किराया औसतन आय का आधे से ज्यादा हिस्सा खा रहा है.

समस्या सिर्फ किराया नहीं, ठहरी हुई सैलरी भी 
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ सालों में किराया और मकान की कीमतें बहुत बढ़ी हैं, लेकिन आम लोगों की सैलरी लगभग वहीं की वहीं है. मेट्रो शहरों में नौकरियों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन सैलरी बढ़ोतरी बहुत धीमी रही है.

क्या अब मेट्रो में रहना सही फैसला है?
रिपोर्ट में सवाल उठाया गया है कि अगर किसी व्यक्ति की सैलरी का 60-70% सिर्फ किराये में चला जाए, तो क्या ऐसे में मेट्रो शहरों में रहना सही है? कई युवा अब सोच रहे हैं कि छोटे शहरों में रहकर रिमोट वर्क करना या सेमी-मेट्रो इलाकों में घर लेना बेहतर विकल्प हो सकता है.

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