पिछले पांच साल से कॉर्पोरेट बॉन्ड मार्केट में काफी ग्रोथ देखी गई है. सितंबर 2020 में जहां आउटस्टैंडिंग कॉर्पोरेट बॉन्ड का मूल्य 34.05 लाख करोड़ रुपये था, वहीं सितंबर 2025 में यह बढ़कर 57.01 लाख करोड़ रुपये हो गया. इसके बावजूद, भारतीय बॉन्ड मार्केट में रिटेल निवेशकों की भागीदारी अब भी बहुत कम है, जो कुछ मार्केट पार्टिसिपेंट्स के अनुमानों के अनुसार लगभग 4% है.
बॉन्ड्स के फायदों की कम जानकारी से कई रिटेल निवेशक इन्हें अपनी फिक्स्ड इनकम पोर्टफोलियो में एक वैकल्पिक एसेट क्लास के रूप में शामिल ही नहीं कर पाते. Paisabazaar के CEO संतोष अग्रवाल ने कॉर्पोरेट बॉन्ड के तमाम फायदे बताए, और उन्होंने कहा कि निवेशकों को अपने पोर्टफोलियो में बॉन्ड्स को शामिल करने पर विचार करना चाहिए. आइए जानते हैं कॉर्पोरेट बॉन्ड की खूबियां.
1. नियमित और अनुमानित आय
इक्विटी में मिलने वाले रिटर्न मार्केट के उतार-चढ़ाव के साथ बार-बार बदलते हैं, वहीं बॉन्ड नियमित ब्याज भुगतान (कूपन रेट) के ज़रिए निश्चित और अनुमानित आय प्रदान करते हैं. बॉन्ड की ब्याज दरें (फ्लोटिंग रेट बॉन्ड को छोड़कर) उनकी मैच्योरिटी तक स्थिर रहती हैं और ब्याज भुगतान पूर्व-निर्धारित अंतराल पर किए जाते हैं. इससे निवेशक यह अंदाजा लगा सकते हैं कि उन्हें किस तारीख पर कितनी आय मिलेगी और उसके मुताबिक बेहतर वित्तीय योजना बना सकेंगे.
यह बॉन्ड्स को उन निवेशकों के लिए एक भरोसेमंद विकल्प बनाता है जो पहले से एक नियमित निश्चित आय चाहते हैं- जैसे वरिष्ठ नागरिक, कम जोखिम लेने वाले निवेशक या जो लोग बॉन्ड के माध्यम से अपनी आय बढ़ाना चाहते हैं.
2. कैपिटल प्रिजर्वेशन
बॉन्ड की मैच्योरिटी तारीख पर निवेशकों को बॉन्ड की फेस वैल्यू वापस मिल जाती है. यह सुनिश्चितता उन लोगों के लिए बॉन्ड को एक सुरक्षित विकल्प बनाती है जो अपने कैपिटल प्रिजर्वेशन (पूंजी संरक्षण) को प्राथमिकता देते हैं. हालांकि, आपकी पूंजी की वास्तविक सुरक्षा बॉन्ड जारीकर्ता की क्रेडिट रेटिंग पर काफी निर्भर करती है. इसलिए, निवेशकों को चाहिए कि वे क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा दी गई क्रेडिट रेटिंग्स को देखकर ऐसे बॉन्ड चुनें जिनकी क्रेडिट रिस्क प्रोफाइल उनकी जोखिम लेने की क्षमता और रिटर्न अपेक्षाओं के अनुरूप हो.
3. पोर्टफोलियो डाइवर्सिफिकेशन
सभी एसेट क्लास हमेशा एक ही जैसा प्रदर्शन नहीं करते. ब्याज दरों और मुद्रास्फीति दरों जैसे कुछ कारकों को छोड़ दें, तो आमतौर पर बॉन्ड और इक्विटी के रिटर्न एक-दूसरे के उलट दिशा में चलते हैं. इक्विटी मार्केट्स में गिरावट या करेक्शन के समय, बॉन्ड्स आमतौर पर अपनी मार्केट वैल्यू बनाए रखने के साथ निवेशकों को नियमित ब्याज आय भी देते हैं. इसी वजह से, पोर्टफोलियो में इक्विटी और बॉन्ड का डाइवर्सिफाइड मिक्स रखना बाजार और आर्थिक चक्रों के दौरान रिटर्न को संतुलित करने में मदद करता है.
4. बैंक FD और स्मॉल सेविंग्स स्कीम से ज्यादा रिटर्न
इन्वेस्टमेंट-ग्रेड बॉन्ड, यानी ‘AAA’ से ‘BBB’ की क्रेडिट रेटिंग वाले बॉन्ड्स, आमतौर पर समान अवधि वाले बैंक FDs के मुकाबले ज्यादा यील्ड देते हैं. वर्तमान में, प्राइवेट सेक्टर के बैंकों में 7.20%, पब्लिक सेक्टर के बैंकों में 6.75% और नॉन-सीनियर सिटीज़न्स के लिए स्मॉल सेविंग्स स्कीम की अधिकतम इंटरेस्ट रेट स्लैब 7.70% है, जबकि एक कैटेगरी के रूप में स्मॉल फाइनेंस बैंक 8.05% की अधिकतम एफडी स्लैब रेट ऑफर करते हैं. इसके विपरीत, इन्वेस्टमेंट-ग्रेड बॉन्ड्स फिलहाल लगभग 13% या उससे भी ज़्यादा यील्ड दे रहे हैं. इस तरह, कॉर्पोरेट बॉन्ड द्वारा दिया जाने वाले यील्ड प्रीमियम, निवेशकों को अधिक इन्फ्लेशन-एडजस्टेड रिटर्न (महंगाई को मात देने वाले बेहतर रिटर्न) कमाने में मदद कर सकता है.
5. संभावित कैपिटल गेन
निवेशक अपने बॉन्ड्स को सेकेंडरी मार्केट में उनकी खरीद कीमत से ज्यादा पर बेचकर कैपिटल गेन कमा सकते हैं (अगर ऐसी कीमत उपलब्ध हो). ऐसे लाभ कई वजहों से मिल सकते हैं, जैसे- ब्याज दरों में गिरावट, क्रेडिट रेटिंग में सुधार, निवेशकों की बढ़ती मांग या अनुकूल लिक्विडिटी की स्थिति आदि. उदाहरण के लिए, जब पॉलिसी या बाजार दरें घटती हैं, तो पहले से ज्यादा कूपन दर पर जारी बॉन्ड की मार्केट कीमत बढ़ जाती है, क्योंकि नए बॉन्ड्स के कम कूपन दर पर जारी होने की उम्मीद रहती है. ध्यान रहे, ब्याज दरों में गिरावट का असर उन बॉन्ड्स पर ज़्यादा होगा, जिनके मैच्योर होने में लंबा समय बचा है.
6. कम निवेश राशि
वर्तमान में, सरकारी बॉन्ड 100 रुपये की फेस वैल्यू पर जारी किए जाते हैं, जबकि IPO के ज़रिए जारी कॉर्पोरेट बॉन्ड की फेस वैल्यू आमतौर पर 1,000 रुपये होती है. भारत में ज्यादातर कॉर्पोरेट बॉन्ड प्राइवेट प्लेसमेंट के ज़रिए जारी किए जाते हैं. इसी वजह से SEBI ने इन बॉन्ड्स की मिनिमम फेस वैल्यू घटाकर 10,000 रुपये कर दी है. इसका उद्देश्य रिटेल निवेशकों की भागीदारी बढ़ाना और कॉर्पोरेट बॉन्ड मार्केट में लिक्विडिटी को बेहतर करना है.
कम राशि में निवेश की सुविधा ने रिटेल निवेशकों के लिए बॉन्ड्स को और भी सुलभ बना दिया है और इन्वेस्टर्स को इश्यूअर्स, क्रेडिट रेटिंग और मैच्योरिटी की अवधि के आधार पर अपने बॉन्ड पोर्टफोलियो को डायवर्सिफाई करने की सुविधा दी है. इसके अलावा, कम निवेश रकम से रिटेल इन्वेस्टर्स अपने वित्तीय लक्ष्यों को पाने के लिए बॉन्ड में चरणबद्ध तरीके से निवेश कर पाएंगे.
(नोट: बॉन्ड्स में निवेश से पहले वित्तीय सलाहकार की मदद जरूर लें)
आजतक बिजनेस डेस्क