क्या आपने कभी सोचा है कि आपका शहर व्यवस्थित कैसे रहता है? कौन तय करता है कि कहां सड़क बनेगी और कहाँ पार्क? इसके पीछे एक शक्तिशाली और दूरदर्शी दस्तावेज़ काम करता है, जिसे मास्टर प्लान या विकास योजना कहते हैं. यह दस्तावेज़ किसी शहर के आने वाले 10 से 20 सालों के विकास के लिए एक कानूनी और ब्लूप्रिंट होता है.
मास्टर प्लान ही तय करता है कि कहां रिहायशी इलाका बनेगा, कहां औद्योगिक हब और कहां सड़कें और पार्क. यह शहर के सुनियोजित विकास, बुनियादी ढांचे की ज़रूरतों और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन साधता है, ताकि भविष्य में जीवन की गुणवत्ता बेहतर हो सके. यह सिर्फ़ कागज़ का टुकड़ा नहीं, बल्कि भविष्य के शहर का एक कानूनी रूप से समर्थित ब्लूप्रिंट होता है, जो यह तय करता है कि शहर का हर हिस्सा कैसे विकसित होगा.
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मास्टर प्लान किसी भी शहर के लिए रीढ़ की हड्डी का काम करता है. यह अवैध कब्ज़े और अनियमित निर्माण को रोकता है, जिससे शहर की सुंदरता और कार्यक्षमता बनी रहती है. यह सुनिश्चित करता है कि सरकार के पास उपलब्ध भूमि और वित्तीय संसाधनों का उपयोग लोगों की सबसे बड़ी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए किया जाए. यह उद्योगों और व्यवसायों के लिए स्पष्ट दिशा प्रदान करता है, जिससे निवेशकों को पता होता है कि वे कहां निवेश कर सकते हैं. यह खुले स्थानों, ग्रीन बेल्ट और संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्रों को संरक्षित करने के लिए ज़ोनिंग प्रदान करता है.
जब स्कूल, अस्पताल और पार्क आस-पास होते हैं और यातायात सुचारु होता है, तो निवासियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है. यह दस्तावेज़ सार्वजनिक होता है, जिससे योजना प्रक्रिया में पारदर्शिता आती है और अधिकारियों की जवाबदेही तय होती है. भूमि उपयोग की स्पष्ट सीमाओं के कारण पड़ोसियों और डेवलपर्स के बीच संपत्ति और ज़मीन से जुड़े विवाद कम होते हैं.
मास्टर प्लान बनाना एक लंबी और बहु-चरणीय प्रक्रिया है, जिसे आमतौर पर शहरी विकास प्राधिकरण या विशेष नियोजन एजेंसियों द्वारा संचालित किया जाता है. इसमें शहर की वर्तमान जनसंख्या, आर्थिक गतिविधियों, मौजूदा बुनियादी ढांचे और भूमि उपयोग पैटर्न पर डेटा इकट्ठा किया जाता है.
अगले 10-20 वर्षों में जनसंख्या वृद्धि, रोज़गार के अवसरों और आवास की ज़रूरतों का अनुमान लगाया जाता है. शहर के दीर्घकालिक लक्ष्यों को परिभाषित किया जाता है. ज़ोनिंग, परिवहन नेटवर्क और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए विस्तृत लेआउट और नियम तैयार किए जाते हैं. मसौदे को सार्वजनिक रूप से जारी किया जाता है ताकि नागरिक, विशेषज्ञ और हितधारक अपनी आपत्तियां और सुझाव दे सकें. यह चरण मास्टर प्लान के लोकतांत्रिक स्वरूप के लिए महत्वपूर्ण है.
सभी सुझावों को शामिल करने और ज़रूरी बदलाव करने के बाद, योजना को राज्य सरकार या सक्षम प्राधिकारी द्वारा अंतिम मंज़ूरी दी जाती है, जिसके बाद यह एक कानूनी दस्तावेज़ बन जाता है.
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