'गुरुग्राम के रियल एस्टेट मार्केट में असली कमाई वो लोग नहीं करते जो सस्ते में खरीदकर महंगे में बेचते हैं, बल्कि वो जो सही समय पर पहले खरीदते हैं और सही वक्त पर बेचते हैं.' ये कहना है रियल एस्टेट सलाहकार ऐश्वर्या श्री कपूर का. वो कहती हैं कि अगर आप कीमतों के चार्ट देख रहे हैं, तो यार, आप पहले ही लेट हो चुके हैं. गुरुग्राम में रियल एस्टेट की दौलत कैसे बनती है, इसे लेकर सलाहकार ऐश्वर्या श्री कपूर ने कुछ खास बातें बताई हैं.
कपूर गुरुग्राम के प्रॉपर्टी मार्केट में दौलत कमाने के कुछ छिपे नियम बताते हुए लिखती हैं- 'अगर हर कोई किसी चीज की बात कर रहा है, तो समझ लो उससे बड़ा मुनाफा कमाने का मौका चूक गया. गुरुग्राम में असली खेल इंस्टीट्यूशनल बिहेवियर को समझने में है, न कि मार्केट के शोर पर रिएक्ट करने में.'
कपूर का मानना है कि असली कमाई की शुरुआत तब होती है, जब बिल्डर ने अभी जमीन पर कुदाल भी नहीं मारी होती. यहां दौलत कीमतों पर रिएक्ट करके नहीं, बल्कि इरादों को भांपकर बनती है. यानी,आपको ट्रैक करना होगा कि संस्थाएं कहां जमीन खरीद रही हैं, लाइसेंसिंग में अचानक तेजी क्यों आई, ज़ोनिंग या ट्रांज़िट-ओरिएंटेड डेवलपमेंट (TOD) में क्या बदलाव हो रहे हैं, और कौन सी ज़मीनें चुपके-चुपके बिक रही हैं, जिनकी खबर अखबारों में नहीं आती.
वो कहती हैं, 'गुरुग्राम में हर 100 करोड़ की स्टोरी के पीछे तीन छिपे पिलर हैं- चुपके से एंट्री, इन्फ्रास्ट्रक्चर के सामने आने से पहले पोजीशनिंग, और तब एग्जिट जब मार्केट अभी भी शक में हो.” गुरुग्राम धीरे-धीरे नहीं बढ़ता, ये तो उछाल मारता है. बड़े ट्रिगर होते हैं जैसे सड़कों की नोटिफिकेशन, लाइसेंसिंग का फोकस बदलना (जैसे गोल्फ कोर्स रोड से द्वारका एक्सप्रेसवे की ओर शिफ्ट), अचानक इन्फ्रास्ट्रक्चर का काम शुरू होना (जैसे UER-2, CPR), या फिर चुपके से ज़मीन जमा करने के बाद इक्विटी फंड्स का आना.
मुश्किल ये है कि ज्यादातर रिटेल खरीदार इस साइकिल के चौथे या पांचवें स्टेज में घुसते हैं, लेकिन कपूर कहती हैं, “संस्थागत दौलत पहले या दूसरे स्टेज में बनती है. वो सलाह देती हैं कि सीरियस निवेशकों को “क्या बिक रहा है” वाला दिमाग छोड़कर ये सवाल पूछने चाहिए. कौन चुपके से ज़मीन खरीद रहा है? लॉन्च से पहले कौन अप्रूवल्स ले रहा है, ऑफ-मार्केट बिल्डर एग्जिट कहां हो रहे हैं?
तीन साल में 2-3 गुना रिटर्न चाहिए? कपूर इसे “इंटेल इन्वेस्टिंग” कहती हैं, न कि रिटेल सट्टेबाजी. इसमें RERA लाइसेंस डेटा पढ़ना, पुराने कृषि रजिस्ट्री को खंगालना, पड़ोसी माइक्रो-मार्केट्स से कैपिटल आउटफ्लो ट्रैक करना, और सबसे जरूरी प्लान बनने से पहले पार्टनरशिप करना, बाद में नहीं.
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