विदेश में क्यों प्रॉपर्टी खरीद रहे हैं भारतीय लोग, 35 करोड़ डॉलर का रिकॉर्ड निवेश

रुपये की अस्थिरता से बचाव, उच्च रिटर्न की उम्मीद, और गोल्डन वीज़ा जैसी सुविधाओं का आकर्षण इस ट्रेंड को लगातार बढ़ावा दे रहा है, जिससे भारतीय धनी वर्ग के लिए विदेशी रियल एस्टेट एक सुरक्षित और फायदेमंद विकल्प बन गया है.

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न्यूयॉर्क-सिंगापुर बने भारतीयों की अगली पसंद (Photo: Pexels) न्यूयॉर्क-सिंगापुर बने भारतीयों की अगली पसंद (Photo: Pexels)

aajtak.in

  • नई दिल्ली ,
  • 28 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 9:43 PM IST

पिछले कुछ सालों में भारतीय लोगों का विदेश में रियल एस्टेट सेक्टर में निवेश बढ़ गया है. भारतीय निवेशक अब जोखिम को कम करने, अपनी संपत्ति को सुरक्षित करने और वैश्विक अवसरों का लाभ उठाने के लिए विदेशों का रुख कर रहे हैं.

वैसे अगर आप ये सोचते हैं कि भारत के अमीर केवल दुबई या लंदन में प्रॉपर्टी खरीदते हैं, तो आप गलत हैं. हाल के सालों में, विदेशी रियल एस्टेट में भारतीय निवेश में 80% तक की भारी वृद्धि दर्ज की गई है, जो 35 करोड़ डॉलर के आंकड़े को छू रही है. यह केवल दिखावा नहीं, बल्कि सोची-समझी और बहुआयामी निवेश रणनीति का हिस्सा है.
 
विदेशी रियल एस्टेट में निवेश का सबसे बड़ा कारण जोखिम को कम करना और पोर्टफोलियो में विविधता लाना है, जब भारतीय बाजार में अस्थिरता होती है, तो निवेशक अपनी पूंजी को न्यूयॉर्क, लंदन, दुबई या सिंगापुर जैसे वैश्विक रूप से स्थिर बाजारों में निवेश करके सुरक्षित महसूस करते हैं. ये शहर दुनिया भर से प्रतिभा, पूंजी और कंपनियों को आकर्षित करते हैं, जिससे प्रॉपर्टी की वैल्यू में लगातार वृद्धि होती है.

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क्यों भा रहा है विदेश?

भारतीय निवेशक अब केवल एक ही देश की आर्थिक स्थिति पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं अलग-अलग देशों में संपत्ति खरीदने से उनका निवेश कई भौगोलिक क्षेत्रों में फैल जाता है, जिससे किसी एक बाजार में मंदी आने पर जोखिम कम हो जाता है. वहीं डॉलर, पाउंड या यूरो जैसी मजबूत मुद्राओं में खरीदी गई संपत्ति निवेशकों को रुपये के मूल्य में लगातार हो रही गिरावट से सुरक्षा प्रदान करती है.

जब रुपया डॉलर के मुकाबले गिरता है, तो विदेशी संपत्ति का मूल्य रुपये के संदर्भ में अपने आप बढ़ जाता है. इस तरह, विदेशी रियल एस्टेट उनके धन के मूल्य को बनाए रखने का एक प्रभावी उपकरण बन जाता है.

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बेहतर रिटर्न और किराए से होने वाली आय 

कई प्रमुख अंतरराष्ट्रीय शहरों में किराये से होने वाली आय और पूंजीगत मूल्य वृद्धि भारत के बाजारों की तुलना में अधिक हो सकती है. दुबई, न्यूयॉर्क और लंदन जैसे शहरों में हाई-एंड संपत्तियों की मांग बहुत अधिक है, जिससे निवेशकों को अच्छा किराया मिलता है. ये शहर वैश्विक व्यापार और शिक्षा के केंद्र हैं. लगातार बढ़ती मांग के कारण, यहां प्रॉपर्टी की कीमत लंबे समय में तेजी से बढ़ती है, जिससे निवेशकों को मजबूत रिटर्न मिलता है.

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जीवनशैली और बच्चों का भविष्य 

निवेश का एक बड़ा हिस्सा व्यक्तिगत और पारिवारिक जरूरतों से जुड़ा होता है. कई भारतीय परिवार अपने बच्चों को विदेश में उच्च शिक्षा के लिए भेजते हैं. ऐसे में, जहां बच्चे पढ़ रहे हैं, वहां एक अपार्टमेंट खरीदना एक अच्छा निवेश माना जाता है, क्योंकि यह किराए के खर्च को बचाता है और बाद में बेचने पर रिटर्न भी देता है.

वहीं विदेशों में संपत्ति खरीदना अब केवल वित्तीय निर्णय नहीं रहा, बल्कि यह वैश्विक रणनीति का हिस्सा बन गया है. कई भारतीय उद्यमी और व्यवसायी अंतरराष्ट्रीय व्यापार के विस्तार के लिए विदेशी प्रॉपर्टी को एक "प्रवेश द्वार" के रूप में देखते हैं. ग्रीस, पुर्तगाल, यूएई और तुर्की जैसे कई देश 'गोल्डन वीज़ा' या 'रेजीडेंसी बाय इन्वेस्टमेंट' जैसे कार्यक्रम चलाते हैं. इन कार्यक्रमों के तहत, एक निश्चित राशि का निवेश (जैसे रियल एस्टेट में) करने पर निवेशकों को लंबी अवधि का निवास वीजा या कुछ मामलों में नागरिकता भी मिल सकती है. यह सुविधा भारतीय निवेशकों के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन है.

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विदेशी रियल एस्टेट में भारतीय निवेश में 80% की वृद्धि इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भारतीय निवेशक अब वैश्विक सोच के साथ निवेश कर रहे हैं. वे अब सिर्फ बचत नहीं, बल्कि संपत्ति की सुरक्षा और उसका मूल्य बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.

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