घर खरीदारों को मिलेगी राहत, GST में बदलाव से कम हो सकती हैं प्रॉपर्टी की कीमतें

रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स पर लगने वाली जीएसटी दरें अलग-अलग हैं. सीमेंट और पेंट पर 28%, जबकि स्टील, टाइल्स और सैनिटरी वेयर पर 18% जीएसटी लगता है.

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सरकार जीएसटी की दरों को आसान बनाने पर विचार कर रही है (PHOTO-ITG) सरकार जीएसटी की दरों को आसान बनाने पर विचार कर रही है (PHOTO-ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 22 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 10:31 AM IST

सरकार जीएसटी की दरों को आसान बनाने पर विचार कर रही है, जिसका सीधा असर रियल एस्टेट सेक्टर पर पड़ सकता है. अगर ये बदलाव लागू होते हैं, तो घर बनाने की लागत कम हो सकती है, जिससे खरीदारों को भी फायदा मिल सकता है. फिलहाल, कंस्ट्रक्शन में इस्तेमाल होने वाले सामानों पर अलग-अलग जीएसटी दरें (18% से 28%) लगती हैं, जिससे प्रोजेक्ट की लागत बढ़ जाती है.

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हालांकि, जानकारों का मानना है कि दरों को एकसमान करने और इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) को वापस लाने से घर की कीमतें 2-4% तक कम हो सकती हैं. यह कदम खासकर मध्यम-वर्ग के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है, जिनकी क्रय शक्ति पर लगातार बढ़ती लागत का बोझ पड़ रहा है.

फिलहाल, रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स पर लगने वाली जीएसटी दरें अलग-अलग हैं. सीमेंट और पेंट पर 28%, जबकि स्टील, टाइल्स और सैनिटरी वेयर पर 18% जीएसटी लगता है. इस असमान टैक्स स्ट्रक्चर की वजह से प्रोजेक्ट की लागत और घरों की कीमतें सीधे तौर पर बढ़ती हैं. जानकारों का कहना है कि इन दरों को एक साथ लाने से डेवलपर्स का खर्च काफी कम हो सकता है.

क्या घरों की कीमतें होंगी कम?

एनारॉक (Anarock) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, किफायती घरों (affordable housing) पर अभी 1% जीएसटी लगता है, इसलिए इनमें तुरंत कोई बड़ा बदलाव नहीं आएगा. हालांकि, अगर इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) फिर से शुरू कर दिया जाता है, तो घरों की कीमतें 2-4% तक कम हो सकती हैं. वहीं, मिड-सेगमेंट में, अगर जीएसटी 5% से घटाकर 3% कर दिया जाए, तो लागत 2-3% तक कम हो सकती है.

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जेनिका वेंचर्स (Jenika Ventures) के संस्थापक और सीईओ, अभिषेक राज ने कहा कि ये बदलाव जीएसटी से पहले हुए फायदों को और बढ़ा सकते हैं. उन्होंने बताया, "2019 में बिना आईटीसी के आवासीय जीएसटी को 12% (आईटीसी के साथ) से घटाकर 5% करने से, निर्माणाधीन प्रोजेक्ट्स में खरीदारों का भरोसा बढ़ा था." उन्होंने आगे कहा, "लेकिन, बिना आईटीसी के, मध्यम-वर्ग के लिए लंबे समय तक घर खरीदना मुश्किल बना हुआ है."

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लागत में बढ़ोतरी और मुनाफे पर दबाव

हाल के सालों में कंस्ट्रक्शन की लागत बहुत बढ़ गई है. 2019 और 2024 के बीच इसमें करीब 40% की बढ़ोतरी हुई है, जिसमें से 27.3% की तेज बढ़ोतरी तो सिर्फ तीन सालों में हुई है. टियर-1 शहरों में ग्रेड ए प्रोजेक्ट की लागत 2021 में ₹2,200 प्रति वर्ग फुट थी, जो 2024 में बढ़कर ₹2,800 हो गई, ऐसे माहौल में, सीमेंट और स्टील जैसे मुख्य सामानों पर टैक्स में छूट मिलने से कुछ राहत मिल सकती है.

टीआरजी ग्रुप (TRG Group) के मैनेजिंग डायरेक्टर, पवन शर्मा ने बताया कि घर की कीमत को किफायती बनाए रखना एक मुश्किल काम है. "टैक्स की दरें आसान होने से लोग ज़्यादा घर खरीद रहे हैं, खासकर किफायती घरों को. लेकिन, इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) हटाए जाने से प्रोजेक्ट का बजट बढ़ जाता है, खासकर सीमेंट और स्टील जैसे सामानों की वजह से. आखिरकार, इन सब का बोझ खरीदारों पर ही पड़ता है." शर्मा ने आगे कहा कि अगर थोड़ा-बहुत आईटीसी फिर से लागू कर दिया जाए, तो खरीदारों को भी फायदा होगा और डेवलपर्स के लिए भी काम करना आसान हो जाएगा.

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लग्जरी घरों की चिंताएं

जीएसटी दरों की नई आसान प्रणाली का फायदा सभी श्रेणियों को शायद एक जैसा न मिले. लग्जरी हाउसिंग प्रोजेक्ट्स, जो महंगे सामानों पर बहुत निर्भर करते हैं, उनमें लागत बढ़ सकती है अगर ऐसे सामानों को प्रस्तावित 40% स्लैब में डाल दिया जाए.


एआईएल डेवलपर (AIL Developer) के चेयरपर्सन और मैनेजिंग डायरेक्टर, संदीप अग्रवाल ने इस सुधार का स्वागत किया, लेकिन साथ ही एक चेतावनी भी दी. उन्होंने कहा, "सीमेंट और स्टील को 18% के दायरे में लाने से लागत कम होगी. अगर इससे टैक्स का बोझ 10-20% कम होता है, तो मेट्रो और टियर-II शहरों में कीमतें बेहतर होंगी. लेकिन लग्जरी घरों के लिए, फिटिंग और फिनिश पर 40% की दर नुकसान पहुंचा सकती है," अग्रवाल ने आगे कहा कि नॉर्थ गोवा जैसे बाज़ारों में, जहां लाइफस्टाइल घरों की मांग बढ़ रही है, वहां आसान जीएसटी स्लैब से पारदर्शिता आ सकती है और औपचारिक निवेश आकर्षित हो सकता है.

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एलीटप्रो इंफ्रा (ElitePro Infra) के संस्थापक और निदेशक, विरेन मेहता ने गुरुग्राम और दिल्ली-एनसीआर में भी इसी तरह के जोखिम बताए. उन्होंने समझाया, "लग्जरी प्रोजेक्ट्स अच्छे दर्जे की फिटिंग और आयातित सामानों पर निर्भर करते हैं. अगर ये 40% के स्लैब में आते हैं, तो लागत बहुत ज़्यादा बढ़ जाएगी, जिससे सलाहकारों को या तो कीमतें बढ़ानी पड़ेंगी या नुकसान उठाना पड़ेगा." हालांकि, मेहता का मानना है कि दिल्ली-एनसीआर के लग्जरी हाउसिंग बाजार में अच्छी मांग के कारण ऊंचे इनपुट टैक्स के बावजूद विकास जारी रह सकता है. 

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निर्माण के मुख्य आधार

भले ही दो-स्लैब वाली जीएसटी प्रणाली से नियमों का पालन करना आसान और स्पष्ट हो, लेकिन इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) का न होना डेवलपर्स के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है. इसे फिर से लागू करने से घटी हुई दरों का फायदा और भी बढ़ सकता है, खासकर मध्यम-आय वर्ग के घरों में. हालांकि, लग्जरी प्रोजेक्ट्स के लिए, 40% का स्लैब एक पहले से ही प्रतिस्पर्धी बाज़ार में कीमतों को तय करने की रणनीति को और जटिल बना सकता है.


 

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