मुंबई में घर खरीदना अब एक सपना नहीं रहा, बल्कि यह एक 40 साल की लंबी वित्तीय सज़ा बन गया है, वेल्थ एडवाइज़र अभिषेक के. ने अपनी एक पोस्ट में कहा है कि मध्यम वर्ग के भारतीय अब घर नहीं खरीद रहे हैं, बल्कि वे झूठे वादों और प्रदूषित समुद्री दृश्यों में लिपटी 'जिंदगी की EMI" खरीद रहे हैं.
अभिषेक के. की लिंक्डइन पर भारत के घरों के प्रति जुनून की आलोचना की है. वह सीधे लिखते हैं, "कड़वा सच: मध्यम वर्ग का भारत घर नहीं खरीद रहा है वह जीवनभर की EMI खरीद रहा है'. वो मुंबई की रियल एस्टेट को एक ऐसा जाल बताते हैं जो शहरी सफलता के नाम पर लोगों की वित्तीय स्वतंत्रता को पूरी तरह से खत्म कर देता है.
यह भी पढ़ें: सोनीपत बन रहा है रियल एस्टेट का नया 'किंग', कब करें निवेश जानें एक्सपर्ट की राय
मुंबई में एक सामान्य 2-3 BHK फ्लैट की कीमत ₹3 करोड़ से ₹8 करोड़ तक है. 20% डाउन पेमेंट के साथ, परिवारों को तुरंत ₹60 लाख से ₹1.6 करोड़ तक चाहिए होते हैं.यह ₹2 करोड़ से ₹6.4 करोड़ का भारी भरकम लोन होता है. 8.5% ब्याज दर पर, मासिक EMI ₹1.5 लाख से ₹5.1 लाख तक पहुंच जाती है, जो मध्यम वर्ग की सैलरी की पहुंच से बहुत दूर है.
अभिषेक लिखते हैं, "घर खरीद सकने की क्षमता का अंतर अब बढ़ नहीं रहा है. यह किसी दूसरे ग्रह पर पहुंच गया है." और तथाकथित विलासिता का क्या?' वह लिखते हैं, "लोग सी-व्यू वाली जीवनशैली के लिए करोड़ों रुपये देते हैं, लेकिन उन्हें असल में मिलता क्या है? एक गंदे समुद्र से उठने वाली उमस भरी, प्रदूषित हवा, जहां लोग सचमुच खुद को राहत देते हैं. '
यह भी पढ़ें: दिल्ली का सुंदर नगर क्यों है अरबपतियों को पसंद, जहां करोड़ों में बिकते हैं बंगले
दूसरी ओर, भारत के शांत कोनों में जैसे केरल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान में परिवार इसकी बहुत कम कीमत पर 2,000–3,000 वर्ग फुट के बंगले बना रहे हैं. वहां बगीचे हैं, साफ़ हवा है, और असली पड़ोस है. वह कहते हैं, "यह एक ऐसी जीवनशैली है जो ज़्यादातर मुंबई के 'अमीर' लोगों के अनुभव से 10 गुना बेहतर है."
अभिषेक ऊंची कीमतों के पीछे की गंदगी के रूप में काले धन और सट्टेबाजी को जिम्मेदार ठहराते हैं. वह चेतावनी देते हैं कि रियल एस्टेट बाजार एक ऐसा बबल है जो फटने का इंतजार कर रहा है, लेकिन तब तक, लाखों लोग "अति-प्रचारित" अपार्टमेंट और खोखली प्रतिष्ठा के लिए अपने भविष्य को गिरवी रख देंगे.
वह लिखते हैं, "यह कोई विलासिता नहीं है. यह सामूहिक भ्रम है. असली सवाल यह नहीं है. क्या आप घर खरीद सकते हैं? बल्कि यह है क्या एक अति-प्रचारित शहर में एक 'जूते के डिब्बे' जितना छोटा अपार्टमेंट आपकी ज़िंदगी के 40 साल के लायक है?."
aajtak.in