मुंबई, भारत की आर्थिक राजधानी, यहां मिडिल क्लास परिवारों के लिए अपना घर खरीदना एक दूर का सपना बनता जा रहा है. वेल्थ एडवाइजरी फर्म Dime की संस्थापक चंद्रलेखा एमआर ने अपनी हालिया लिंक्डइन पोस्ट में लिखा है- 'बिना किसी विरासत, लंबे लोन या दोहरी आय के, मुंबई में एक मध्यमवर्गीय परिवार को अपना घर खरीदने में 109 साल तक लग सकते हैं. यह तथ्य न केवल शहर की बढ़ती प्रॉपर्टी की कीमतों को उजागर करता है, बल्कि मध्यमवर्ग के सामने खड़ी आर्थिक चुनौतियों पर भी सवाल उठाता है'.
चंद्रलेखा ने अपने पोस्ट में इस गणित को बड़ी स्पष्टता से समझाया है. मुंबई में एक औसत घर की कीमत ₹3.5 करोड़ है, जबकि एक आम परिवार की सालाना कमाई करीब ₹10.7 लाख होती है. उन्होंने बताया कि अगर कोई परिवार अपनी सालाना कमाई का 30% भी बचाता है तो सालाना बचत सिर्फ ₹3.2 लाख होगी. इस हिसाब से, सीधे तौर पर घर खरीदने में 109 साल लग जाएंगे. उनकी स्टडी सिर्फ मुंबई तक नहीं रुकी. अपनी टीम के डेटा के आधार पर, उन्होंने देश के बड़े-बड़े मेट्रो शहरों में घर खरीदने की किफायत को मैप किया. ये गणना कुछ खास बातों को ध्यान में रखकर की गई है - ना कोई महंगाई, ना जॉब जाने का डर, ना कोई बड़ा खर्च, बस सीधी-सादी बचत.
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चंद्रलेखा एमआर की स्टडी के मुताबिक, मुंबई ही नहीं, देश के दूसरे बड़े मेट्रो शहरों में भी मध्यमवर्गीय परिवार के लिए घर खरीदना आसान नहीं है. उनकी टीम ने बिना महंगाई, जॉब लॉस या बड़े खर्च के, सिर्फ बचत के आधार पर गणना की है. नतीजे चौंकाने वाले हैं. गुरुग्राम में घर खरीदने में 64 साल, बेंगलुरु में 36 साल, चेन्नई में 37 साल और हैदराबाद में 23 साल लग सकते हैं. ये आंकड़े दिखाते हैं कि मेट्रो शहरों में घर का सपना कितना मुश्किल हो गया है.
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इन आंकड़ों के बारे में चंद्रलेखा आगे बताती हैं कि ये सबसे अच्छी स्थिति को ध्यान में रखकर निकाले गए हैं, जबकि असल में ज्यादातर भारतीय परिवारों की हकीकत इससे बहुत अलग होती है. इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) के आंकड़ों के मुताबिक, 82% टैक्स चुकाने वाले लोग सालाना ₹10 लाख से कम कमाते हैं. इसका मतलब है कि घर खरीदने और कमाई के बीच की खाई सिर्फ मुंबई में नहीं, बल्कि पूरे भारत में बहुत गहरी है. चंद्रलेखा कहती हैं, "यह सिर्फ़ मुंबई की समस्या नहीं है, यह पूरे भारत की समस्या है."
यह पोस्ट भारत के सबसे पुराने वित्तीय आदर्शों में से एक को चुनौती देती है कि अपना घर होना स्थिरता का सबसे बड़ा प्रतीक है. जब एक आम भारतीय परिवार को घर खरीदने के लिए कई दशकों का लोन लेना पड़ता है या पुश्तैनी संपत्ति पर निर्भर रहना पड़ता है, तो चंद्रलेखा का सुझाव है कि अब यह सोचने का समय आ गया है कि "स्थिर होने" का असल मतलब क्या है. क्या आज की तारीख में एक आम भारतीय परिवार के लिए घर खरीदना वाकई मुमकिन है?' ये ऐसा सवाल है जिसका सामना जल्द ही न सिर्फ मुंबई में, बल्कि पूरे देश के लोगों को करना पड़ सकता है.
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