आजतक के सहयोगी चैनल बिजनेस टुडे के India@100 समिट के दौरान आयोजित Regulatory Cholesterol पैनल डिस्कशन के दौरान ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के उपाध्यक्ष गौतम चिकरमाने ने आंकड़े पेश करते हुए बताया कि भारत में कारोबारी जगत पर नियंत्रण के लिए कितने कानून मौजूद हैं. इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए उनके साथ बीएमआर लीगल के फाउंडर, मुकेश बुटानी समेत अन्य मेहमान मौजूद थे.
कई कानूनों में कारवास की धाराएं
चिकरमाने ने कहा कि भारत में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से व्यापार करने को नियंत्रित करने वाले कुल 1,536 कानून हैं. इन कानूनों में से कुछ केंद्र में और कुछ राज्य स्तर पर अधिनियमित हैं. इनके तहत कुल 69,233 अनुपालनों का पालन व्यवसायों को करना होता है. उन्होंने कहा कि इनमें से आधे कानून ऐसे भी हैं, जिनमें कारावास की धाराएं मौजूद हैं. इसके साथ ही उन्होंने बताया कि भारत में 6.3 करोड़ उद्यम हैं, जबकि औपचारिक क्षेत्र में सिर्फ 10 लाख उद्यम हैं.
'Regulatory Cholesterol' पर चर्चा के दौरान बीएमआर लीगल के फाउंडर मुकेश बुटानी ने कहा कि जहां कोई एक 'कोलेस्ट्रॉल' को सामान्य नहीं कर सकता है, भारत ओवर रेगुलेटेड है और सबसे बड़ा मुद्दा नौकरशाही में सुधार है.
भारत का PCI चीन का पांचवां हिस्सा
टीमलीज सर्विसेज के वाइस चेयरमैन मनीष सभरवाल ने कहा कि साल 1991 में भारत और चीन की प्रति पूंजी आय (PCI) समान थी और वर्तमान में भारत का PCI चीन का पांचवां हिस्सा है. उन्होंने कहा कि भारत में नौकरियों की समस्या नहीं है, हमारे पास मजदूरी की समस्या है. 1947 से भारत की बेरोजगारी 2-8 फीसदी के बीच रही है, लेकिन हमारे पास 40 फीसदी गरीबी है. सभरवाल ने आगे कहा कि मजदूरी की समस्या का एकमात्र समाधान औपचारिकता, वित्तीयकरण, शहरीकरण, मानव पूंजी का औद्योगीकरण है.
अमेरिका का उदाहरण देकर समझाया
पीडब्ल्यूसी के अध्यक्ष, संजीव कृष्ण ने इस बात पर प्रकाश डालते हुए एक दिलचस्प विरोधाभासी दृष्टिकोण प्रस्तुत किया कि जहां हर कोई पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं से आकर्षित हो जाता है, वहीं अमेरिका में एक बिजली संयंत्र के लिए पूर्ण अनुमोदन प्राप्त करने में तकरीबन 10 साल तक का समय लगता है. उन्होंने कहा कि मुझे पता है कि हम इससे बहुत बेहतर कर सकते हैं.
कृष्ण ने कहा कि अब एक एमएसएमई कोड प्रस्तावित किया जा रहा है. अगर यह आता है तो यह समस्या के एक हिस्से को हल करेगा, पूरी समस्या को नहीं. वह है अनुबंध और एक वाणिज्यिक विवाद को सुलझाने में लगने वाला समय.
aajtak.in