बायकॉट चाइना का नारा ठीक, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक्स-मोबाइल और चिप में भारतीय विकल्प क्या हैं?

साल 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने और देश की अर्थव्यवस्था को तत्काल चौथे से तीसरे पायदान पर लाने के मकसद से पीएम मोदी ने विदेशी सामानों का इस्तेमाल छोड़ने की अपील की है. इस दौरान उन्होंने छोटी आंख वाले गणेशजी और होली पर घरों में आने वाली विदेशी पिचकारी का भी जिक्र किया जो कि मुख्य तौर पर चीन से इंपोर्ट होते हैं.

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भारत-चीन व्यापार भारत-चीन व्यापार

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 28 मई 2025,
  • अपडेटेड 11:30 AM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को गुजरात के गांधीनगर में एक कार्यक्रम को संबोधित किया. इस दौरान पीएम मोदी ने मेड इन इंडिया पर गर्व करने की अपील करते हुए विदेशी सामानों का इस्तेमाल न करने का आह्वान किया है. उन्होंने स्वदेशी वस्तुओं को ऑपरेशन सिंदूर से जोड़ते हुए कहा कि यह ऑपरेशन सिर्फ सैन्यबलों की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि इसके लिए जनबल का साथ होना भी जरूरी है.

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विदेशी सामानों का बहिष्कार

साल 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने और देश की अर्थव्यवस्था को तत्काल चौथे से तीसरे पायदान पर लाने के मकसद से पीएम मोदी ने विदेशी सामानों का इस्तेमाल छोड़ने की अपील की है. इस दौरान उन्होंने छोटी आंख वाले गणेशजी और विदेशी पिचकारी का भी जिक्र किया जो कि मुख्य तौर पर चीन से इंपोर्ट होते हैं. हालांकि पीएम मोदी ने अपने संबोधन में किसी देश का नाम नहीं लिया लेकिन साफ तौर पर उनका इशारा चीन की तरफ था. भारत के लिए क्या वाकई चीनी सामानों का बहिष्कार संभव है?

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साल 2024 में भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 48.5 बिलियन डॉलर था. इलेक्ट्रॉनिक्स (20%), फार्मास्यूटिकल्स (70% API), और ऑटोमोबाइल पार्ट्स (24%) के लिए भारत पड़ोसी देश चीन पर निर्भर है. अगर बहिष्कार की अपील सही तरीके से काम करती है तो इससे व्यापार घाटा कम होगा साथ ही मेक इन इंडिया को भी बढ़ावा मिल सकता है. लेकिन यह कहने भर जितना आसान भी नहीं है. 

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भारत को विकल्पों की तलाश

वित्त वर्ष 2023-24 में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार 118.4 अरब डॉलर था, जिसमें भारत ने 101.75 अरब डॉलर का आयात किया और सिर्फ 16.66 अरब डॉलर का निर्यात किया, जिससे व्यापार घाटा 85.09 अरब डॉलर रहा. भारत अगर चीनी सामानों का पूरी तरह से बहिष्कार करता है, तो चीन को इस आयात राशि (101.75 अरब डॉलर) का नुकसान हो सकता है. लेकिन इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्यूटिकल्स और कई उद्योगों के कच्चे माल के लिए भारत कई क्षेत्रों में चीन पर निर्भर है. गलवान में तनाव के दौरान चीनी सामानों के बहिष्कार की कैंपेन चली थी. इसके बाद 2020 में चीनी सामानों की बिक्री में 25-40 फीसदी की कमी देखी गई थी, जिससे चीन को अनुमानित 40 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था.

हाल के वर्षों में देखें तो वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने 113.45 बिलियन डॉलर मूल्य का चीनी माल आयात किया, जो पिछले वित्त वर्ष में आयात किए गए 101.73 बिलियन डॉलर से 11.5% ज्यादा है. चीन से भारत के आयात में दो अंकों की मजबूत वृद्धि दर्ज की गई, जबकि भारतीय निर्यात में कमी आई, जिससे 99.2 बिलियन डॉलर का भारी व्यापार घाटा हुआ. 

बढ़ता व्यापार घाटा चिंता का विषय

भारत कई वर्षों से चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा देख रहा है. कोरोना से पहले 2019-20 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 48.65 बिलियन डॉलर था. वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण 2020-21 में यह मामूली रूप से घटकर 44 बिलियन डॉलर रह गया. उसके बाद से यह व्यापार घाटा लगातार बढ़ता गया. आंकड़ों से पता चलता है कि चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 2021-22 में 73.31 बिलियन डॉलर, 2022-23 में 83.2 बिलियन डॉलर और 2023-24 में 85.08 बिलियन डॉलर था.

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GTRI की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2019 से 2024 तक चीन को भारत का निर्यात सालाना करीब 16 अरब डॉलर पर स्थिर रहा है. वहीं चीन से भारत को किए आने वाला आयात 2018-19 में 70.3 अरब डॉलर के मुकाबले 2023-24 में बढ़कर 101 अरब डॉलर से भी ज्यादा का हो गया है. ऐसे में भारत को व्यापार घाटा होना स्वभाविक है.

दोनों देशों के बीच मुख्य व्यापार क्या है

भारत मुख्य तौर पर चीन से इलेक्ट्रॉनिक सामान, कंप्यूटर हार्डवेयर, टेलीकॉम डिवाइस, इलेक्ट्रॉनिक मशीनरी, प्लास्टिक और मेडिसिन प्रोडेक्ट इंपोर्ट करता है. जबकि भारत आयरन ओर, मरीन प्रोडक्ट, पेट्रोलियम प्रोडक्ट, कार्बनिक केमिकल और मसाले चीन को निर्यात करता है. चीनी सामानों का बहिष्कार भारत की आत्मनिर्भरता को बढ़ा सकता है. Apple और Tesla जैसे ग्लोबल ब्रांड भारत में निवेश कर रहे हैं और इससे जाहिर है कि दुनिया के सामने भारत के बेहतर विकल्प पेश कर सकता है.

स्वदेशी चिप और सेमीकंडक्टर

भारत में स्मार्टफोन का बहुत बड़ा बाजार है और इस पर चीन की निर्भरता कम करने के लिए स्वदेशी मोबाइल चिप को लेकर युद्ध स्तर पर काम चल रहा है. भारत के इस कदम से स्मार्टफोन मार्केट को नए पंख मिल सकते हैं और दुनियाभर में इंडियन चिप वाले स्मार्टफोन अपनी छाप छोड़ सकते हैं. बजट में भी सेमीकंडक्टर पर काफी फोकस किया गया है और इसका बजट इस साल बढ़कर 7 हजार करोड़ के पार जा चुका है. वहीं पीएलआई स्कीम का बजट भी 9 हजार करोड़ के आसपास है. हालांकि चीन सेमीकंडक्टर पर भारत से कई गुना ज्यादा 4 लाख करोड़ रुपये खर्च करता है. 

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भारत पिछले कुछ वर्षों में मोबाइल फोन का एक्सपोर्टर बनकर उभरा है. 2020 से पहले तक भारत स्मार्टफोन का एक्सपोर्ट बहुत कम करता था और इसके उलट इंपोर्ट कहीं ज्यादा होता था. लेकिन वित्त वर्ष 2019-20 में पहली बार भारत ने 41.5 मिलियन फोन का एक्सपोर्ट किया, जबकि इंपोर्ट सिर्फ 5.6 मिलिनय स्मार्टफोन का था. भारतीय मोबाइल इंडस्ट्री के लिए यह एक रिकॉर्ड रहा है. ICEA के डाटा के मुताबिक साल 2014 तक भारत में सिर्फ दो मैन्युफैक्चरिंग यूनिट थी, जिनकी संख्या साल 2018 में 268 हो गई थी. यह ट्रेंड दिखाता है कि भारत तेजी से मोबाइल मैन्युफैक्चिरंग की दिशा में आगे बढ़ रहा है.

भारत में बन रहे मोबाइल फोन

स्मार्टफोन बाजार में चीन की हिस्सेदारी 70 फीसदी के करीब है. लेकिन भारतीय प्रोडक्ट चीन के मुकाबले महंगे और इसी वजह से लोग चाइनीज मोबाइल खरीदते हैं. मुख्य चाइनीज ब्रांड Xiaomi, Oppo, Vivo, Realme हैं, लेकिन अगर इनके प्रोडक्ट्स भारत में बन रहे हैं, तो आपके पास उन्हें खरीदने का विकल्प खुला है. वहीं अगर 'मेड इन चाइना' पावर बैंक, स्पीकर, हेडफोन के ऑप्शन के तौर पर आप भारत में बने ये सामान खरीद सकते हैं. 

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इसी तरह दिवाली और बाकी त्योहारों पर इस्तेमाल होने वाली चीन में बनी इलेक्ट्रॉनिक झालरें, बल्ब देश में काफी बिकते हैं क्योंकि यह भारतीय प्रोडेक्ट की तुलना में सस्ते होते हैं. इनकी जगह स्वदेशी एलईडी बल्ब और लाइट्स भी बाजार में मौजूद हैं, जो चीनी सामान से बेहतर क्वालिटी वाले होते हैं. इनके विकल्प के तौर पर 'वोकल फॉर लोकल' थीम पर आधारित देसी सामानों का इस्तेमाल भी हम सजावट के लिए कर सकते हैं.

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