बिहार अब केरल के नक्शेकदम पर चलता हुआ नजर आ रहा है. विदेशों से राज्य में आने वाले पैसे की इसमें बड़ी भूमिका है, क्योंकि बिहार से निकलकर दुनिया के विभिन्न हिस्सों में काम करने वाले पेशेवर और कामगार राज्य में पैसा भेज रहे हैं. पॉलिटिकल इकोनॉमिस्ट और 'ए सिक्स्थ ऑफ ह्यूमैनिटी: इंडिपेंडेंट इंडियाज डेवलपमेंट ओडिसी' के को-राइटर देवेश कपूर ने एक इंटरव्यू के दौरान इसके बारे में विस्तार से समझाया है. उन्होंने बताया कि बिहार के प्रवासी श्रमिक अब पारंपरिक रूप से खाड़ी देशों में काम करने के साथ ही अफ्रीका, ग्रीस और कोरिया जैसे देशों तक अपनी पहुंच बढ़ा रहे हैं और धन प्रेषण में अहम योगदान हो रहे हैं.
ग्रीस से कोरिया तक में बिहार के लोग
बिजनेस टुडे को दिए एक इंटरव्यू में देवेश कपूर ने कहा कि हम बिहार और बंगाल में केरल की कहानी को उभरते हुए देख रहे हैं, लेकिन खासतौर पर बिहार में जहां देश से बाहर प्रवास लगातार हो रहा है. इकोनॉमिस्ट ने कहा कि, 'खाड़ी देशों में सबसे ज्यादा प्रवास के बारे में बात करें, तो केरल से सिर्फ़ 5% है, जबकि अब 50% उत्तर प्रदेश और बिहार से हैं. हम बिहार के मजदूरों को अफ़्रीका में बिजली की ट्रांसमिशन लाइनें बिछाते हुए देख सकते हैं. इसके अलावा वे ग्रीस और कोरिया में भी मौजूद हैं.
हालांकि, उन्होंने कहा कि 120-130 मिलियन की आबादी वाले राज्य के लिए ये संख्या बहुत ज्यादा नहीं है, जो ज्यादा कमाते हैं उनके द्वारा अपने लोगों को धन भेजना, यही केरल की स्ट्रेटजी का मूल रहा है. उन्होंने कहा कि केरल में औद्योगीकरण उतना ज्यादा नहीं हुआ, आईटी सर्विसेज में भी ज्यादा ग्रोथ नहीं हुई और जाहिर है एग्रीकल्चर ग्रोथ भी मामूली रही. लेकिन उत्तर प्रदेश और विशेष रूप से बिहार में हम ये सारी चीजें और विकास देख रहे हैं. अब, यह कितना होता है, क्योंकि संख्या में बड़ा अंतर है. अभी आपको बड़ी संख्या की जरूरत होती है, क्योंकि जब राज्य में पैसा वापस आता है, तो उसका इस्तेमाल कैसे होता है और ये हमें देखना होगा.
साउथ की बराबरी कर सकते हैं उत्तरी राज्य?
बीटी के एडिटर सिद्धार्थ जराबी और राजदीप सरदेसाई के साथ एक इंटरव्यू के दौरान जब उनसे सवाल किया गया कि क्या उत्तरी राज्य विकास के मामले में कुछ दक्षिणी राज्यों की बराबरी कर सकते हैं? तो इसके जवाब में उन्होंने इस उभरती हुई प्रवृत्ति पर फोकस किया और कहा कि फिलहाल बिहार की स्थिति केरल की धन प्रेषण आधारित ग्रोथ (Kerala Remittance Driven Growth) पर लंबे समय से चली आ रही निर्भरता से मिलती-जुलती नजर आ रही है.
गौरतलब है कि इकोनॉमिस्ट रथिन रॉय ने बीते अक्टूबर महीने की शुरुआत में आर्थिक रूप से समृद्ध दक्षिणी राज्यों और राजनीतिक रूप से शक्तिशाली उत्तरी राज्यों के बीच बढ़ते अंतर की ओर इशारा किया था. उन्होंने बताया कि तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों की प्रति व्यक्ति आय उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे उत्तरी राज्यों की तुलना में अधिक है.
पूर्व आर्थिक सलाहकार ने कही बड़ी बात
जब A Sixth of Humanity के सह-लेखक और पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन से इस संबंध में पूछा गया कि आर्थिक उदारीकरण के बाद कुछ राज्यों का प्रदर्शन बेहतर क्यों रहा, जबकि अन्य पिछड़ गए? तो उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने उस ऑटोनॉमी और निर्णय लेने की शक्ति का उपयोग नहीं किया, जो राज्य सरकारों को 1991 के बाद देश के राजनीतिक और आर्थिक डिसेंट्रलाइजेशन के जरिए प्राप्त हुई थी. उन्होंने कहा कि अब आप चुपचाप बैठकर यह नहीं कह सकते कि यह भारत में नहीं हो सकता, क्योंकि यह तो पड़ोस में ही कहीं और हो रहा है और आप हिंदी पट्टी में भी यह बदलाव देखना शुरू कर रहे हैं.
आजतक बिजनेस डेस्क