देश का पहला गांव जहां मोबाइल एप के जरिए खरीदा जा रहा घर-घर का कचरा, यूनिक आइडिया से बदली तस्वीर

बिहार के सीवान का लखवा ग्राम पंचायत देश का पहला ऐसा गांव बन गया है, जहां घरों से निकलने वाले कचरे को मोबाइल एप के जरिए खरीदा जा रहा है. लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान के तहत शुरू की गई इस अनोखी पहल ने कचरे को बोझ नहीं, बल्कि कमाई और स्वच्छता का साधन बना दिया है. ‘कबाड़ मंडी’ मोबाइल एप के जरिए ये खरीद-बिक्री हो रही है.

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कचरे से तैयार किए जाते हैं कई उपयोगी प्रोडक्ट. (Photo: ITG) कचरे से तैयार किए जाते हैं कई उपयोगी प्रोडक्ट. (Photo: ITG)

रोहित कुमार सिंह

  • पटना,
  • 20 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:46 AM IST

बिहार में सीवान के नौतन प्रखंड का लखवा ग्राम पंचायत देश का पहला ऐसा गांव बन गया है, जहां घरों से निकलने वाले कचरे की खरीदारी मोबाइल एप के जरिए की जा रही है. यह पहल लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान (एलएसबीए) के तहत शुरू की गई है, जिसे ग्रामीण स्वच्छता, डिजिटल नवाचार और आत्मनिर्भरता का प्रभावी मॉडल माना जा रहा है.

घरों से निकलने वाला कचरा गांवों में आर्थिक मूल्य वाला संसाधन बन चुका है. कबाड़ मंडी नाम के मोबाइल एप के जरिए ग्रामीण अपने घरों से निकलने वाले कचरे की डिटेल दर्ज करते हैं. एप पर मिली जानकारी के आधार पर असराज स्कैप सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड नाम की एजेंसी तय समय पर घर पहुंचकर कचरे का वजन करती है और निर्धारित कीमत के अनुसार भुगतान करती है. इससे कचरे के संग्रहण से लेकर भुगतान तक पूरी प्रक्रिया व्यवस्थित तरीके से चलती है.

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लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान में सूचना, शिक्षा एवं संचार के राज्य सलाहकार सुमन लाल कर्ण ने बताया कि इस मॉडल की खास बात यह है कि अलग-अलग प्रकार के कचरे के लिए स्पष्ट दरें तय की गई हैं.

इसके तहत प्लास्टिक बोतल 15 रुपये प्रति किलोग्राम, काला प्लास्टिक दो रुपये, सफेद मिक्स प्लास्टिक पांच रुपये, बड़ा गत्ता आठ रुपये, मध्यम गत्ता छह रुपये, छोटा गत्ता चार रुपये, कागज तीन रुपये और टिन 10 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से खरीदा जा रहा है. इस व्यवस्था से ग्रामीणों में घरेलू स्तर पर कचरे का पृथक्करण तेजी से बढ़ा है.

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लखवा गांव से एकत्रित किया गया कचरा सीधे प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट यूनिट (पीडब्ल्यूएमयू) और वेस्ट प्रोसेसिंग यूनिट (डब्ल्यूपीयू) तक पहुंचाया जाता है, जहां वैज्ञानिक तरीके से प्रसंस्करण कर सिंगल यूज प्लास्टिक और नूडल्स रैपर जैसे अपशिष्ट से लैपटॉप बैग, बोतल बैग, कैरी बैग, लेडीज पर्स, डायरी और चाबी रिंग जैसे उपयोगी और टिकाऊ उत्पाद बनाए जाते हैं. इससे पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर रोजगार के मौके भी मिल रहे हैं.

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सरकार के दावे के मुताबिक, वर्तमान में 7020 ग्राम पंचायतों में वेस्ट प्रोसेसिंग यूनिट और 171 प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट यूनिट लगाई जा चुकी हैं. इन यूनिट्स के माध्यम से हजारों टन सिंगल यूज प्लास्टिक का निस्तारण किया जा रहा है, जिससे गांवों की स्वच्छता के साथ पर्यावरण का भी खयाल रखा जा रहा है.

हर कचरे की कीमत तय, पूरी प्रक्रिया पारदर्शी

  • प्लास्टिक बोतल: 15 रुपये प्रति किलोग्राम
  • काला प्लास्टिक: 2 रुपये प्रति किलोग्राम
  • सफेद मिक्स प्लास्टिक: 5 रुपये प्रति किलोग्राम
  • बड़ा गत्ता: 8 रुपये प्रति किलोग्राम
  • मध्यम गत्ता: 6 रुपये प्रति किलोग्राम
  • छोटा गत्ता: 4 रुपये प्रति किलोग्राम
  • कागज: 3 रुपये प्रति किलोग्राम
  • टीन: 10 रुपये प्रति किलोग्राम

कचरे से लैपटॉप बैग, बॉटल बैग, कैरी बैग, लेडीज पर्स, डायरी, चाबी रिंग, अलमारी व बेंच बनाए जा रहे हैं. बिहार के ग्राम विकास व परिवहन मंत्री श्रवण कुमार ने कहा कि ग्राम पंचायतों में ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन के तहत घरेलू स्तर पर कचरे का पृथक्करण, उसका उठाव, परिवहन और प्रोसेसिंग की व्यवस्था की गई है. इससे न केवल स्वच्छता को नया आयाम मिला है, बल्कि बिहार में तैयार हो रहे कचरा आधारित उत्पाद अब दूसरे राज्यों के लिए भी प्रेरणा बन रहे हैं.

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