क्या Bullet और THAR से तय होगा व्यवहार? हरियाणा DGP के बयान पर क्या कहते हैं एक्सपर्ट

हरियाणा के पुलिस महानिदेशक (डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस) ओपी सिंह ने हाल ही में कहा कि, थार और बुलेट चलाने वाले लोग बदमाश ही होते हैं. इन्हें छोड़ा नहीं जा सकता है. सवाल ये है कि, क्या वाहन से किसी व्यक्ति के चरित्र को परिभाषित किया जा सकता है. आइये जानें क्या कहते हैं एक्सपर्ट?

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DGP ओ. पी. सिंह का कहना है कि, क्या कोई पुलिस वाला Thar से चलता है. Photo: ITG DGP ओ. पी. सिंह का कहना है कि, क्या कोई पुलिस वाला Thar से चलता है. Photo: ITG

अश्विन सत्यदेव

  • नई दिल्ली,
  • 11 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:39 AM IST

हरियाणा की सड़कों पर रफ्तार के साथ अब रवैया भी चर्चा में है. हाल ही में राज्य के पुलिस महकमे के सबसे बड़े अधिकारी (DGP) के उस बयान ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है, जिसमें उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति का व्यवहार उसकी गाड़ी से झलकता है. अगर किसी के पास Bullet या Thar है, तो उसका दिमाग घुमा हुआ होगा. अब सवाल यह है कि क्या सच में गाड़ी इंसान का चरित्र तय करती है या फिर समाज ने ही इन मशीनों को रवैये का प्रतीक (बिहैवियर का सिंबल) बना दिया है? 

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क्या कहते हैं DGP?

हरियाणा के पुलिस महानिदेशक (डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस) ओपी सिंह ने एक प्रेस वार्ता के दौरान कहा कि, "अब थार गाड़ी है, इसे छोड़ने का क्या मतलब है. बुलेट मोटरसाइकिल है... सारे बदमाश इसी से चलते हैं. मतलब जिस तरह की गाड़ी का च्वॉइस है... वो आपका माइंडसेट शो करता है." 

ओपी सिंह आगे कहते हैं कि, "थार देखिए... स्टंट करेंगे. हमारा एक एसीपी का बेटा, गाड़ी चढ़ा दी उसके उपर. वो आकर कह रहा है हमारे बेटे को छोड़ो जी. अब किसके नाम से थार है... उसने कहा हमारे नाम से. मैंने कहा तू ही बदमाश है. हम लिस्ट निकालें पुलिस की... कितने लोगों के पास थार होगी. जिसके पास भी थार होगी दिमाग घुमा हुआ होगा उसका."

मतलब ओपी सिंह के इस बयान का लब्बो-लुआब ये है कि थार और बुलेट के सवारी सिरफिरे और बदमाश लोग करते हैं. डीजीपी के इस बयान पर सोशल मीडिया पर तमाम तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं. कुछ लोग उनकी इस बात से इत्तफ़ाक रखते हैं और कुछ लोग अपनी आपत्ति भी जता रहे हैं.

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सोशल मीडिया पर कई लोगों ने DGP के बयान पर आपत्ति जताई है. Photo: ITG

 

क्या बोलती है पब्लिक?

सोशल नेटवर्किंग साइट X (पूर्व में ट्विटर) पर रविंद्र सोनी नामक यूजर ने अपने पोस्ट में लिखा कि, “मैं साल 2001 से बुलेट और 2012 से महिंद्रा थार का मालिक हूं और मैं बदमाश नहीं हूं.” वहीं अमित पिंगे नाम के एक यूजर ने बुलेट बाइक को लेकर डीजीपी के बयान पर लिखा कि, “पुलिस डिपार्टमेंट के सबसे बड़े अधिकारी द्वारा, किसी वाहन को अपराधियों से जोड़ने की उम्मीद नहीं थी. बुलेट एक बाइक है जिसका इस्तेमाल पुलिस और बाइक फैंस द्वारा बड़े पैमाने पर किया जाता है. इन्हें अपराधी नहीं कहा जा सकता है.”

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

इस मामले में आजतक ने क्लीनि‍कल साइकोलॉजिस्ट डॉ. विध‍ि एम पिलन‍िया से बात की, उन्होंने बताया कि “ऐसा बिल्कुल नहीं है कि थार और बुलेट केवल अपराधी प्रवृति के लोग ही चलाते हैं. बहुत से अच्छे और शरीफ लोग भी इन वाहनों का प्रयोग करते हैं. इसलिए यह कहना बिल्कुल गलत होगा कि, इन वाहनों के चालक बदमाश होते हैं.”

सोशल मीडिया का रोल और स्टीरियोटाइप

डा. विधि आगे बताती हैं कि, “स्टीरियोटाइप बेसिकली ब्रेन के शॉर्टकट्स होते हैं. वो शॉर्ट कट डेवलप करने में सोशल मीडिया का बहुत बड़ा रोल है. आज कल सोशल मीडिया पर रिल्स या शॉर्ट वीडियो के जरिए दिखाया जाता है कि, ज्यादातर हिंसक घटनाओं को करने वाले थार में आते हैं या बुलेट बाइक का इस्तेमाल करते हैं. इसलिए लोगों के दिमाग में इन वाहनों को लेकर एक स्टीरियोटाइप बनता है. लेकिन ऐसा कहना गलत होगा, क्योंकि संस्कारी और अच्छे आचरण वाला व्यक्ति भी इन वाहनों का इस्तेमाल करता है.”

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क्या अपराधियों को आकर्षित करते हैं ऐसे वाहन?

विधि कहती हैं कि, “जी बिल्कुल, अपराधी प्रवृत्ति के लोगों को थ्रिल, स्पीड अच्छी लगती है. क्योंकि ऐसे लोगों का एड्रेनल रश बढ़ता है और ऐसे वाहन जाहिर है उन्हें आकर्षित करते हैं. लेकिन मैं यह भी कहना चाहूंगी कि, इस तरह का वाहन चलाने वाला हर व्यक्ति गलत या अपराधी नहीं होता है. अपराधी आपको स्कूटी और साइकिल पर भी मिलेंगी.”

एग्रेसिव ड्राइविंग, पर्सनॉल्टी और वाहन की भूमिका

डा. विधि का कहना है कि “ये एक कम्यूलेटिव इफेक्ट है. हम एक पर्सनाल्टी के साथ पैदा होते हैं, और एक हम जिस तरह एन्वायरमेंट में हैं और जिस तरह का विहैवियर हमें रिवार्डिंग हैं उस पर निर्भर करता है. आप जिस तरह के नेचर में रह रहे हैं उसका भी एग्रेसन ड्राइविंग पर असर पड़ता है. आज कल के बच्चे रिस्क टेकिंग बिहैवियर में ज्यादा आ रहे हैं. ये एक सिखने वाला बिहैवियर है जिसे बच्चे अपने आसपास की स्थितियों से सिखते हैं. इसके अलावा आज कल की गाड़ियां भी लोगों को ज्यादा स्पीड में चलने के लिए प्रोत्साहित करती हैं.”

विधि एक पुराने वाहन का उदाहरण देते हुए बताती हैं कि, “आपको याद होगा कि, पहले एक मारुति वैन नाम की कार आती थी. जिसे फिल्मों में किडनैपिंग के लिए बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करते हुए दिखाया जाता था. यहां तक कि रियल लाइफ में भी इस वैन का इस्तेमाल अपराधी किडनैपिंग के लिए करते थे. तो यह बस एक इत्तेफाक था. ऐसे नहीं कि, कंपनी इस कार को किडनैपिंग के लिए बनाती थी.”

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ऐसी गाड़ियों से ही वारदातें क्यों?

डा. विधि का कहना है कि, “एक्सीडेंट करना किसी को भी अच्छा नहीं लगता है. लेकिन रोड रेज़ हो जाती है, क्योंकि टॉलरेंस बहुत कम है. कई बार छोटी-मोटी बात या टक्कर पर भी लोग ज्यादा रिएक्ट करते हैं. मनोविज्ञान कहता है कि, जब आप इस तरह की महंगी, स्ट्रक्चर में मजबूत और हाई-एंड गाड़ियों में होते हैं तो आपके भीतर एक 'फीलिंग ऑफ ग्रैंडिऑस' आ जाती है. ऐसे में यदि कोई आपके वाहन को टच करता है या सड़क पर कोई आपसे आगे निकल जाता है तो यै फीलिंग एक बड़ा रोल प्ले करती है, और लोग भावनाओं के चलते इस तरह की वारदात को अंजाम देते हैं.”

लग्ज़री चीजें, स्टेटस सिंबल और मनोविज्ञान

“जब लोगों को इंटर्नल वैलिडेशन कम होता है तो लोग एक्सटर्नली वैलिडेट करना चाहते हैं. जैसे मैं सुंदर हूं लेकिन मैं इससे संतुष्ट नहीं हूं. इसलिए मैं अपनी एक तस्वीर फिल्टर इत्यादि का उपयोग कर सोशल मीडिया पर पोस्ट करती हूं. जब लोग उसे लाइक करते हैं, या पोस्ट पर अच्छे कमेंट करते हैं तो मुझे एक एक्सटर्नल वैलिडेशन मिल जाता है.”

“बेसिकली लोग जब कोई चीज फ्लॉन्ट करते हैं तो लोग चाहते हैं इसे समाज की स्वीकृति मिल जाए. चार लोग इसकी तारीफ कर दें. लोग भले ही अंदर से कम खुश हों, लेकिन लोग एक्सटर्नली ज्यादा अप्रूवल ढूढ़ रहे हैं. यानी समाज हमें वैलिडेशन मिल जाए. आजकल के बच्चो में फोमो (FOMO) शब्द का भी खूब चलन है, जिसे 'फियर ऑफ मीसिंग ऑउट' कहा जाता है. इसका मतलब है कि, कहीं आप किसी ट्रेंड में पीछे न छूट जाएं. ”

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आखिर DGP ने क्यों दिया ये बयान?

विधि कहती हैं कि “हर व्यक्ति की अपनी सूझ-बूझ है. मेरा मानना है कि, ये एक को-रिलेटेड हो सकता है. हरियाणा एक ऐसा स्टेट है जहां शो-बाजी बहुत ज्यादा है. संभव है कि, पुलिस के पास अपने स्टैटिक्स होंगे कि, हाल के दिनों में थार और बुलेट जैसे वाहनों से होने वाले रोड एक्सीडेंट या रोज रेज की घटनाएं होती हों. लेकिन ऐसे मामलों में सीधे वाहन को ही मुख्य कारण मान लेना सही नहीं है, क्योंकि इसके पीछे वाहन चालक की प्रवृत्ति और व्यवहार भी बड़ा कारण होता है.”

वहीं इस मामले में आजतक ने दिल्ली यूनवर्सिटी मनोव‍िज्ञान विभाग के प्रोफेसर नवीन कुमार से भी बात की. प्रोफेसर ने भी इस बात से इंकार किया है कि, थार और बुलेट चलाने वाले बदमाश या अपराधी होते हैं. नवीन कुमार का कहना है कि, “डीजीपी ओपी सिंह ने संभवत: थार और बुलेट का नाम यूज ऑफ मेटाफर्स के तौर पर किया होगा. शायद वो फास्ट स्पीड कारों की बात करना चाहते होंगे.”

बढ़ रहा है थार कल्चर

नवीन कुमार ने यह भी कहा कि, “समय के साथ कम्यूनिटी बांड की कमी के चलते लोगों में सुपरफिशियल टेंडेंसी बढ़ रही है. नई पीढ़ी के बीच दिखावे का जीवन बढ़ रहा है, जिसे उन्होंने 'थार कल्चर' नाम दिया है. लोगों में पेसेंस (धर्य) की कमी है और छोटी-छोटी बातों पर लोगों का इगो हर्ट हो रहा है. यही कारण है कि रोड रेज़ बढ़ रहा है और लोग सड़क पर विवाद करने से भी नहीं कतरा रहे हैं.” इसके पीछे वो इमोशनल एजुकेशन की कमी को सबसे बड़ा कारण मानते हैं.

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नवीन कुमार का कहना है कि, “बढ़ती टेक्नोलॉजी और एकांत होते जीवन के चलते लोगों में संवेदनशीलता की कमी देखने को मिल रही है. ख़ास तौर नई पीढ़ी इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है. लोगों की जिंदगी में तकनीकी, गैजेट्स और सोशल मीडिया का इतना समावेश हो चुका है कि, इससे संबधित लोगों की पर्सनल लाइफ इफेक्ट हो रही है. लोगों के बीच कंपैरिजन की टेंडेंसी बढ़ रही है और लोग अपने जीवन को बेहतर दिखाने के चक्कर में इल्यूजन ऑफ़ हैपिनेस के गिरफ्त में आ रहे हैं.” 

खैर, डीजीपी ओ. पी. सिंह महिंद्रा थार और बुलेट को लेकर दिया गया ये बयान सीधे तौर पर भले ही इस तरह के वाहन चालकों को निशाना बनाता हो. लेकिन इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि, हाल के दिनों में एक्सीडेंट के कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें थार वाहन शामिल था. जिसकी एक बानगी नीचे दी जा रही है.

10 नवंबर 2025: गुरुग्राम और फरीदाबाद से सटे अरावली के पास ऑफ-रोडिंग के दौरान थार झील में डूबी. कोई हताहत नहीं.
17 अक्टूबर 2025: वसंतकुंज, दिल्ली के महरौली-महिपालपुर रोड पर तेज रफ्तार थार ने 13 साल के बच्चे रौंदा, मौत.
16 अक्टूबर 2025: चंडीगढ़, सेक्टर 46 में तेज गति थार ने दो बहनों को टक्कर मारी. एक की मृत्यु, दूसरी गंभीर रूप से घायल.
27 सितंबर 2025: गुरुग्राम, एनएच-48, झारसा चौक के पास अनियंत्रित थार डिवाइडर से टकराई. SUV सवार 5 की मौत. 
8 सितंबर 2025: प्रीतविहार, दिल्ली में शोरूम में डिलीवरी के दौरान थार एसयूवी पहली मंजिल से नीचे गिरी. कोई हताहत नहीं. 
10 अगस्त 2025: दिल्ली के चाणक्यपुरी इलाके में थार सवारों ने चल रहे पैदल यात्रियों को टक्कर मारी, एक की मौत.
16 अगस्त 2025: पश्चिम दिल्ली में बाइक चालक को थार ने टक्कर मारी, एक की मौत. SUV चालक नशे में था.
7 जून 2025: उत्तर प्रदेश के भदोही जिले में थार चालक ने भरत टाकिज के पास कईयों को रौंदा.
18 मार्च 2025: अहमदाबाद, दिल्ली-दरवाजे के पास लाल रंग की थार ने ऑटो को टक्कर मारी. कोई हताहत नहीं.

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गैंग्स ऑफ 'THAR'

बीते कुछ सालों में दिल्ली-एनसीआर में थार चालकों के कई ग्रुप एक्टिव हुए हैं. जो आए दिन पब्लिक रोड पर भी स्टंट करते हुए नजर आते हैं.  ये ऑफ-रोडिंग ग्रुप नियमित रूप से वीकेंड पर गुरुग्राम और फरीदाबाद से सटी अरावली की पहाड़ियों में भी जाते हैं. बीते रविवार को, 'गैंग ऑफ थार' नाम के एक ऐसा ही ग्रुप अपनी थार एसयूवी का जत्था लेकर पहाड़ी के पास ऑफरोडिंग कर रहा था. जहां अचानक थार एसयूवी पानी में डूब गई. इस हादसे का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ है. जिसमें देखा जा सकता है कि, एक महिंद्रा थार पूरी तरह से पानी में डूबी हुई है और दूसरी थार कड़ी मशक्कत के बाद उसे बाहर की तरफ खींच रही है. 

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