अब सड़क पर 'साइलेंट' नहीं रहेंगे इलेक्ट्रिक वाहन, AVAS सिस्टम से होंगे लैस! जानें क्यों जरूरी है ये तकनीक

EV AVAS System: ग्लोबल रिपोर्ट्स बताते हैं कि इलेक्ट्रिक वाहन स्लो स्पीड में सड़क पर चल रहे पैदल यात्रियों के लिए अधिक जोखिम पैदा कर सकते हैं. क्योंकि स्लो स्पीड में ये वाहन बिल्कुल न के बराबर आवाज करते हैं, जिससे सड़क पर चलने वाले पैदल यात्रियों या दोपहिया चालकों को यह पता ही नहीं चलता है कि कोई वाहन उनके आसपास है.

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AVAS सिस्टम सड़क पर पैदल यात्रियों और दोपहिया चालकों के लिए सुरक्षा प्रदान करता है. Photo: ITG AVAS सिस्टम सड़क पर पैदल यात्रियों और दोपहिया चालकों के लिए सुरक्षा प्रदान करता है. Photo: ITG

अश्विन सत्यदेव

  • नई दिल्ली,
  • 30 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:02 PM IST

AVAS System for Electric Vehicles: केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को पैदल यात्रियों और सड़क पर अन्य यूज़र्स के लिए और सुरक्षित बनाने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) ने एक ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी किया है, जिसमें ऑकस्टिक व्हीकल अलर्ट सिस्टम (AVAS) की अनिवार्यता प्रस्तावित की गई है. तो आइये जानें क्या है ये सिस्टम और आम लोगों के लिए ये सिस्टम किस तरह से सुरक्षा प्रदान करेगा.

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क्या है प्रस्ताव?

ड्राफ्ट नोटिफिकेशन में प्रस्तावित नियम के तहत, 1 अक्टूबर 2026 से लॉन्च होने वाले सभी नए पैसेंजर और माल-वाहन इलेक्ट्रिक वाहनों में AVAS सिस्टम लगाना अनिवार्य होगा, जबकि पहले से उत्पादन में चल रहे मॉडल्स को 1 अक्टूबर 2027 तक इस नियम का पालन करना होगा.

क्यों जरूरी है AVAS?

AVAS, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए खास तौर पर ज़रूरी है क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहन पारंपरिक इंजन वाले वाहनों की तुलना में बहुत शांत होते हैं. इससे सड़क पर पैदल यात्रियों और दोपहिया चालक सहित सभी के लिए सुरक्षा बढ़ाने में मदद मिलेगी. सरकार का मानना है कि इस कदम से इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को अपनाने के साथ-साथ सड़क सुरक्षा भी बेहतर होगी.

मैंडेट का दायरा

MoRTH की अधिसूचना के अनुसार, 1 अक्टूबर 2026 से नए मॉडल और 1 अक्टूबर 2027 से मौजूदा मॉडल के लिए M और N कैटेगरी के इलेक्ट्रिफाइड वाहन AVAS के साथ उपलब्ध होंगे. यहाँ M कैटेगरी पैसेंजर व्हीकल और N कैटेगरी माल वाहक वाहनों के लिए है. इसका मतलब है कि इलेक्ट्रिक कार, बस, वैन और ट्रक सभी को AVAS के साथ अनिवार्य रूप से लैस करना होगा. हालांकि, मौजूदा समय में इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर्स, थ्री-व्हीलर्स और ई-रिक्शा इससे बाहर हैं. 

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इलेक्ट्रिक कारें पारंपरिक पेट्रोल-डीजल वाहनों के मुकाबले बिल्कुल न के बराबर आवाज करती हैं. Photo: Freepik

कैसे काम करता है ये AVAS सिस्टम?

यह सिस्टम वाहन के 20 किलोमीटर प्रति घंटे की कम स्पीड पर चलते समय आवाज उत्पन्न करता है, ताकि पैदल यात्री, साइकिल सवार और सड़क पर चलने वाले अन्य लोग वाहन के आने के बारे में जान सकें और सुरक्षित रहें. ये सिस्टम ऑटोमेटिकली 20 किमी/घंटा से कम की स्पीड पर और वाहन के रिवर्स करने के दौरान एक्टिव हो जाता है. वहीं हाई स्पीड में टायर और हवा की आवाज़ पर्याप्त होने के कारण यह सिस्टम बंद हो जाता है.

क्या कहते हैं ग्लोबल एक्सपीरिएंस

ग्लोबल रिपोर्ट्स भी यही बताते हैं कि इलेक्ट्रिक वाहन स्लो स्पीड में सड़क पर चल रहे पैदल यात्रियों के लिए अधिक जोखिम पैदा कर सकते हैं. क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहनों में पारंपरिक इंजन के बजाय इलेक्ट्रिक मोटर का इस्तेमाल होता है. ऐसे में स्लो स्पीड में कार से बिल्कुल आवाज नहीं आती है, जिससे सड़क पर चल रहे पैदल यात्रियों या दोपहिया वाहन चालकों को इस बात का आभास भी नहीं होता है कि, कोई चार पहिया वाहन उनके आसपास या पीछे से आ रही है. 

अमेरिकी परिवहन विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार, इलेक्ट्रिक कारें पेट्रोल और डीज़ल कारों की तुलना में पैदल यात्रियों के लिए 20 प्रतिशत अधिक और कम गति पर 50 प्रतिशत अधिक जोखिम पैदा करती हैं. AVAS पहले से ही अमेरिका, जापान और यूरोप में अनिवार्य है, और अब इसे भारत में भी अनिवार्य करने की तैयारी है.

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इन कारों में पहले से ही ये AVAS

भारत में कुछ इलेक्ट्रिक वाहन पहले ही AVAS सिस्टम के साथ उपलब्ध हैं. जिसमें एमजी कॉमेट, टाटा कर्व ईवी, हुंडई क्रेटा इलेक्ट्रिक जैसे मॉडल शामिल हैं. इसके अलावा महिंद्रा द्वारा हाल ही में लॉन्च किए गए XEV 9e और BE 6 (पूर्व में BE 6e) भी इस तकनीक के साथ आते हैं, जो सड़क पर चल रहे पैदल यात्रियों और दोपहिया चालकों की सुरक्षा तय करते हैं.

अन्य प्रस्तावित बदलाव

AVAS नियम के अलावा सरकार ने यह भी प्रस्तावित किया है कि ट्यूबलैस टायर वाले वाहनों, जैसे कार, क्वाड्रिसाइकिल और कुछ थ्री-व्हीलर में स्पेयर टायर की अनिवार्यता को हटा दिया जाए. जैसे ही यह नियम अंतिम रूप लेगा, कार मेकर्स को 2026 से नए मॉडल में AVAS लागू करना होगा, जबकि पहले से उत्पादन में चल रहे इलेक्ट्रिक वाहनों को 2027 तक इसका पालन करना अनिवार्य होगा.

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