पंच तत्व के प्रतीक, भगवान वेंकटेश का प्रिय भोग... तिरुपति लड्डू से जुड़ी लोककथाएं

तिरुपति तिरुमला मंदिर के प्रसिद्ध लड्डू प्रसाद में बीफ फैट, फिश ऑयल और एनिमल टैलो जैसी मिलावट की जानकारी सामने आई है, जो श्रद्धालुओं की आस्था को ठेस पहुंचा रही है. तिरुपति लड्डू का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व सदियों पुराना है.

Advertisement
तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम् का लड्डू प्रसादम् विवादों के घेरे में है तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम् का लड्डू प्रसादम् विवादों के घेरे में है

विकास पोरवाल

  • नई दिल्ली,
  • 14 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:14 AM IST

भगवान वेंकटेश का प्रसिद्ध मंदिर तिरुमला तिरुपति देवस्थानम् (आंध्र प्रदेश की तिरुमला पहाड़ियों में मौजूद) आजकल अपनी धन-संपदा के लिए नहीं बल्कि विवाद की वजह से सुर्खियों में है. तिरुपति मंदिर का प्रसिद्ध प्रसादम् लड्डू में मिलावट का मामला चर्चा में है. मंदिर का प्रसादम् लड्डू. आध्यात्म का प्रतीक, अद्भुद स्वाद और तिरुपति भगवान की कृपा का साक्षात प्रतिरूप है. प्रसाद को लेकर मान्यता है कि इसे 'प्रभु का साक्षात दर्शन' माना जाता है. तिरुपति लड्डू तो इसके पूर्ण प्रतीक हैं.

Advertisement

तिरुपति के प्रसिद्ध प्रसादम् लड्डू में मिलावट

ऐसे में यहां के प्रसिद्ध लड्डुओं में बीफ फैट, फिश ऑयल और एनिमल टैलो जैसे पदार्थों की मिलावट की जानकारी सामने आना वाकई आस्था पर ठेस पहुंचाने जैसा है. तिरुपति के प्रसिद्ध लड्डू प्रसादम का इतिहास बहुत समृद्ध और सदियों पुराना है. दरअसल भगवान विष्णु के सभी मंदिरों में पंचमेवा प्रसाद का बहुत महत्व है. ये पंचमेवा पांच तत्वों, पांच इंद्रियों और पंच भूतों का प्रतीक होते हैं. इन्हें मिलाकर प्रसाद बनाया जाता है. इस तरह लड्डू का प्रसाद बनाने में बेसन, घी, चीनी, काजू, किशमिश मिलाया जाता है. इस लड्डू की लोकप्रियता और धार्मिक महत्व ने इसे तिरुपति मंदिर की पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना दिया.

कबसे हुई शुरुआत?

ऐसा माना जाता है कि तिरुपति के लड्डू प्रसादम की शुरुआत 18वीं शताब्दी में हुई. सैकड़ों साल से ये मंदिर प्रांगण में होने वाले धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा रहा है और दैनिक पूजा के बाद श्रद्धालुओं के बीच बड़े पैमाने पर इसका वितरण किया जाता रहा है. इसे बनाने की प्रक्रिया और सामग्री में सदियों से कोई बदलाव नहीं आया है और इसी ने लोगों के बीच इसके अद्वितीय स्वाद और पहचान को बनाए रखा है. बीते दशकों में इस लड्डू ने तिरुपति के विशेष नैवेद्य नाम से लोगों के बीच अलग ही पैठ बना ली है.

Advertisement

तिरुपति के लड्डू को मिला GI टैग

तिरुपति के लड्डू को 2009 में Geographical Indication - GI टैग भी मिला था. इसका मतलब है कि तिरुपति लड्डू को एक विशिष्ट पहचान प्राप्त है और इसे केवल तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर में ही तैयार किया जा सकता है. यह टैग इस बात को तय करता है कि तिरुपति लड्डू की विशिष्टता और गुणवत्ता संरक्षित रहे. लड्डू की प्रासंगिकता और इसके महत्व की बात करें तो भारतीय समाज में लड्डू शुभ और पवित्र माने जाते हैं. लड्डू छोटे-छोटे कतरों या घी में भुने चूर्ण को इकट्ठा करके बनाया जाता है, इसलिए इसे एकता और संगठन का प्रतीक भी माना जाता है.

भगवान जुटा रहे हैं कर्ज के लिए धन

तिरुपति के प्रसादम को लेकर बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं. एक प्रसिद्ध कथा है कि जब भगवान वेंकटेश्वर ने देवी पद्मावती से विवाह किया, तो उन्हें विवाह के लिए धन की जरूरत थी. इसके लिए उन्होंने धन के देवता कुबेर से कर्ज लिया था. मान्यता है कि आज भी भगवान वेंकटेश्वर उस कर्ज को चुकाने के लिए धरती पर मौजूद हैं. इसलिए प्रभु तिरुपति बालाजी भक्तों से दान ले रहे हैं और अपनी हुंडी (गुल्लक) भर रहे हैं. लड्डू प्रसादम को इस कर्ज से जोड़कर देखा जाता है, क्योंकि यह भगवान के भक्तों को उनके आशीर्वाद के रूप में दिया जाता है, और बदले में भक्त अपनी श्रद्धा के अनुसार दान करते हैं, जिससे भगवान वेंकटेश्वर कर्ज चुका सकेंगे.

Advertisement

जब बाल कृष्ण ने खा लिए भोग के लड्डू

तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रसाद का धार्मिक महत्व होने के साथ ही इससे कई लोककथाएं भी जुड़ी हुए हैं, जो इसे और भी खास बनाती हैं. प्रसाद में लड्डू को अपनाए जाने के पीछे जो कारण है, वह द्वापर युग में भगवान कृष्ण के बालपन की लीला से जुड़ा हुआ है. जब नंद बाबा पूजा कर रहे थे, तब बाल कृष्ण ने भोग के लिए रखे लड्डू खा लिए थे. मां यशोदा के हाथ के बने ये लड्डू इतने स्वादिष्ट थे कि बालकृ्ष्ण से इसे खाकर विभोर हो गए और अपने देवत्व स्वरूप में आ गए थे. श्रीकृष्ण ने नंद बाबा और यशोदा माता को चतुर्भुज स्वरूप में दर्शन दिए और कहा कि आपने मेरे लिए बहुत स्वादिष्ट लड्डू बनाए हैं. अब से ये लड्डू का भोग भी मेरे लिए माखन की तरह प्रिय होगा. तब से ही बाल कृष्ण को माखन-मिश्री और चतुर्भुज श्रीकृष्ण को लड्डुओं का भोग लगाया जाने लगा.   

कई लोककथाएं हैं मशहूर

तिरुपति मंदिर में श्रीकृष्ण का ही चतुर्भुज स्वरूप स्थापित है जो कि भगवान विष्णु का ही सनातन स्वरूप है. तिरुपति का अर्थ है तीनों लोकों का स्वामी. यहां वह वेंकटेश श्रीनिवास के रूप में अपनी पत्नी पद्मा और भार्गवी के साथ विराजते हैं. पद्मा और भार्गवी देवी लक्ष्मी के ही अवतार हैं और श्रीनिवास वेंकटेश खुद महाविष्णु हैं. तिरुपति में लड्डू को भोग और प्रसाद के रूप में स्वीकार किए जाने की और भी कथाएं हैं.

Advertisement

जब भगवान वेंकटेश से नाराज हुईं देवी लक्ष्मी

तिरुमला के पहाड़ी गांवों में एक प्रसिद्ध कथा है कि एक बार भगवान वेंकटेश और देवी लक्ष्मी में कुछ विवाद हो गया. तब नाराज हुईं देवी लक्ष्मी कहीं चली गईं. इधर भगवान वेंकटेश को भूख लगी तो वह इधर-उधर भटकने लगे. इस तरह भटकते-भटकते वह एक दिन अपने एक भक्त की कुटिया पर पहुंच गए और भोजन मांगा. उस भक्त ने देखा कि एक युवक भूखा है तो उसने वो भोग जो भगवान वेंकटेश को लगाने वाला था, उसे लड्डू बनाकर उसी युवक को दे दिया. प्रेम भाव में मिले इस लड्डू से भगवान तृप्त हो गए और फिर जब भी भोग लगाने का वक्त होता वह उसी भक्त के घर पहुंच जाते. अब देवी लक्ष्मी ने देखा कि प्रभु तो कई दिन से वैकुंठ लौट ही नहीं रहे, तब वह उन्हें खोजते हुए उसी किसान भक्त के घर पहुंची और बोलीं, यहां आप अकेले-अकेले भोग लगा रहे हैं और मैं भूखी हूं. मत भूलिए कि आपके भोग में मेरा भी भाग है. तब भगवान वेंकटेश ने अपने में से आधा लड्डू उन्हें भी दिया. देवी इस भोग से इतनी प्रसन्न हुईं कि उस भक्त का जीवन सफल कर दिया और लड्डू को भगवान का प्रसिद्ध भोग बना दिया.

Advertisement

भगवान बालाजी ने खुद सिखाई थी लड्डू बनाने की विधि!

एक और कथा के अनुसार, एक समय जब तिरुमला की पहाड़ियों पर भगवान वेंकटेश्वर की मूर्ति स्थापित की जा रही थी, तब मंदिर के पुजारी इस उधेड़बुन में थे कि प्रभु को प्रसाद में क्या अर्पित करें, तभी एक बूढ़ी मां हाथ में लड्डू का थाल लेकर उधर आईं और उन्होंने प्रथम नैवेद्य चढ़ाने की मांग की. जब पुजारियों ने इसे भोग लगाकर प्रसाद रूप में ग्रहण किया तो इसके दिव्य स्वाद से वह दंग रह गए. उन्होंने बूढ़ी माई से कुछ पूछना चाहा तो देखा कि वो गायब थीं. तब माना गया कि खुद देवी लक्ष्मी ने प्रसाद का संकेत देने के लिए सहायता की थी.

एक किवदंती यह भी है कि भगवान बालाजी ने खुद ही पुजारियों को लड्डू बनाने की विधि सिखाई थी. कहा जाता है कि उसी समय से लड्डू को भगवान वेंकटेश्वर का विशेष प्रसादम माना जाने लगा, और इसे भक्तों के बीच बांटने की परंपरा शुरू हुई.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement