ओडिशा का रज पर्वः जब धरती और उसकी बेटियां मनाती हैं स्त्रीत्व का उत्सव, पांच दिन तक चलता है सजने-संवरने-खिलखिलाने का सिलसिला

ओडिया में रज पर्व, वह दिन है जिसे ज्योतिष में मिथुन संक्रांति कहा जाता है और सौर मास पर आधारित इस पर्व की तिथि मकर संक्रांति की तरह ही निश्चित है, जून के बिल्कुल मध्य में. मिथुन संक्रांति यानि रज पर्व ओडिशा, नारीत्व का तीन दिवसीय उत्सव है. इस पर्व का दूसरा दिन मिथुन सौर मास की शुरुआत का दिन होता है और माना जाता है कि इसके बाद ही वर्षा का मौसम शुरू होता है. 

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ओडिशा में मिथुन संक्रांति के मौके पर मनाया जाता है पांच दिवसीय रज पर्व ओडिशा में मिथुन संक्रांति के मौके पर मनाया जाता है पांच दिवसीय रज पर्व

विकास पोरवाल

  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2025,
  • अपडेटेड 4:06 PM IST

संस्कृति और पर्व प्रधान देश भारत में हर एक दिन त्योहार को समर्पित है. खास बात है कि ये सभी त्योहार प्रकृति से जुड़े हैं और कहीं न कहीं इस बात को सबसे आगे रखते हैं कि प्रकृति ही महान है और हर एक जीव उसका हिस्सा. इन त्योहारों में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है, जिसमें वह खुद किसी जीते जागते व्यक्तित्व के रूप में हिस्सा लेती है और त्योहारों की हर खुशी को वैसे ही सेलिब्रेट करती है, जैसे कि कोई आम स्त्री. 

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रिमझिम शुरुआत के आगमन का उत्सव
भारत के पूर्वी राज्य ओडिशा की तरफ देखें तो यहां की भूमि भी कई तरह के त्योहारों से समृद्ध है. पुरी की जगन्नाथ रथयात्रा भले ही विश्व प्रसिद्ध है, लेकिन लोक के बीच तमाम ऐसे पर्व बिखरे हैं जो आदमी को आदमी से जोड़ने का काम करता हैं. वर्षा का मौसम आ चुका है और आषाढ़ का महीना है, लेकिन इस रिमझिम की शुरुआत और इसके आगमन का खुशनुमा पर्व है रज परब (रज पर्व) 

ओडिया में रज पर्व, वह दिन है जिसे ज्योतिष में मिथुन संक्रांति कहा जाता है और सौर मास पर आधारित इस पर्व की तिथि मकर संक्रांति की तरह ही निश्चित है, जून के बिल्कुल मध्य में. मिथुन संक्रांति यानि रज पर्व ओडिशा, नारीत्व का तीन दिवसीय उत्सव है. इस पर्व का दूसरा दिन मिथुन सौर मास की शुरुआत का दिन होता है और माना जाता है कि इसके बाद ही वर्षा का मौसम शुरू होता है. 

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कैसे आया है रज शब्द?
रज शब्द आया है संस्कृत कि रजस्वला से. जिसे आम तौर पर मासिक धर्म या पीरियड कहते हैं. मानते हैं इन तीन दिनों में धरती रजस्वला होती हैं. ऐसी मान्यता है कि देवी भूमि, जो महालक्ष्मी का ही एक रूप हैं और इस रूप में वह विष्णु की पत्नी हैं, इस पर्व के पहले तीन दिनों में मासिक धर्म का अनुभव करती हैं. इसलिए इन तीन दिनों धरती को कुरेदना पूरी तरह वर्जित है और इसे पाप वाली श्रेणी में रखा गया है.

चौथा दिन वसुमती स्नान के रूप में जाना जाता है, जिसमें भूमि का औपचारिक स्नान होता है. 'रज' शब्द संस्कृत के 'रजस' से आया है, जिसका अर्थ मासिक धर्म है, और मासिक धर्म वाली महिला को "रजस्वला" कहा जाता है. मध्यकाल में यह पर्व कृषि अवकाश के तौर पर लोकप्रिय हुआ, और इसी प्रचलन में भूदेवी की पूजा भी अस्तित्व में आई. भूदेवी को जगन्नाथ, विष्णु के क्षेत्रीय रूप, की पत्नी के रूप में पूजा जाता है. पुरी मंदिर में जगन्नाथ के पास भूमि की चांदी की मूर्ति मौजूद है.

क्या है उत्सव की परंपरा?
यह पर्व मध्य जून में मनाया जाता है. पहला दिन "पहिली रज", दूसरा दिन "मिथुन संक्रांति", तीसरा दिन "भुडाहा" या "बासी रज" कहलाता है. चौथा दिन "वसुमती स्नान" है, जिसमें महिलाएं चक्की के पत्थर को, जो भूमि का प्रतीक है, हल्दी के लेप से स्नान कराती हैं और फूल, सिंदूर आदि से सजाती हैं. मौसमी फलों को माता भूमि को अर्पित किया जाता है. पर्व से पहले का दिन "सजबजा" या तैयारी का दिन होता है, जिसमें घर, रसोई और चक्की के पत्थर को साफ किया जाता है, और तीन दिनों के लिए मसाले पीसे जाते हैं. इन तीन दिनों में महिलाएं और लड़कियां काम से विश्राम करती हैं. वह नई साड़ी पहनता हैं, आलता लगाती हैं और आभूषण पहनती हैं और खुशियां मनाती हैं. 

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ओडिशा के अनेक पर्वों में रज सबसे लोकप्रिय है और तीन दिनों तक उत्साहपूर्वक मनाया जाता है. जैसे पृथ्वी वर्षा से अपनी प्यास बुझाने की तैयारी करती है, वैसे ही परिवार की अविवाहित लड़कियों को इस पर्व के जरिये भावी वैवाहिक जीवन के लिए तैयार किया जाता है. वे तीन दिन उत्सव में बिताती हैं, बिना पका हुआ पौष्टिक भोजन जैसे पोड़ा पिठा खाती हैं, नमक नहीं खातीं, नंगे पांव नहीं चलतीं, और भविष्य में स्वस्थ संतान के जन्म के लिए तैयार होती हैं. रज के उत्सव की सबसे जीवंत यादें बरगद के पेड़ों पर झूलों और किशोरियों-नवयुवतियों द्वारा गाए गए लोकगीतों की होती हैं.

धरती का मासिक धर्म
लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, जैसा कि महिलाएं मासिक धर्म का अनुभव करती हैं, जो प्रजनन का प्रतीक है, वैसे ही माता पृथ्वी भी मासिक धर्म का अनुभव करती हैं. इसलिए, पर्व के तीन दिन माता पृथ्वी के मासिक धर्म के रूप में माने जाते हैं. इस दौरान सभी कृषि कार्य रोक दिए जाते हैं. विशेष रूप से, यह अविवाहित लड़कियों और उन स्त्रियों का पर्व है जिनका हाल ही में विवाह हुआ है और वह संतान को जन्म देने की ओर बढ़ रही हैं. 

वे मासिक धर्म वाली महिला के लिए निर्धारित नियमों का पालन करती हैं. पहले दिन, वे भोर से पहले उठती हैं, अपने बाल संवारती हैं, हल्दी और तेल से शरीर पर लेप-उबटन करती हैं, और नदी या तालाब में शुद्धिकरण स्नान करती हैं. इसके साथ ही अगले दो दिनों तक स्नान निषिद्ध है. वे नंगे पांव नहीं चलतीं, पृथ्वी को नहीं खुरचतीं, कुछ भी पीसतीं नहीं, काट-छांट या फाड़ भी नहीं और रसोई से दूर. 

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इस दौरान झूले और लोकगीत भी उनकी मस्ती और पर्व की खुशी में चार चांद लगा रहे होते हैं. झूले भी चार तरह के होते हैं, जैसे 'राम डोली', 'चरखी डोली', 'पट्टा डोली' और 'डंडी डोली' झूलना राजा कमेई यानी 'अर्जित विश्राम' का प्रतीक है। यह गर्म और उमस भरे मौसम में राहत भी देता है. एक लड़की को डोलीरानी (झूले की रानी) चुना जाता है, और बाकी लड़कियां उसे झूले पर झुलाती हैं. इस दौरान बिना किसी वाद्य यंत्र के, खास तौर से रचे गए लोकगीत गाए जाते हैं. ये गीत पर्व, दोस्ती, मानसून और विवाह की संभावनाओं पर बात करते हैं. इनमें एक हंसी मिजाज वाली छेड़छाड़ भी होती है तो साथ ही इनका पुट कुछ चंचलता वाला होता है. ये गीत एक ही समय में थोड़े अध्यात्मिक और थोड़े रोमांटिक हो सकते हैं, ठीक बिहार में गाए जाने वाली सावन की कजरी की तरह. या फिर ब्रज के होली गीतों की तरह.

एक गीत की बानगी देखिए. 
बनस्ते डकाई गजा, बरसारे थारे आसिछी रजा गो, नुआ लुगा सजबजा

(जंगल में हाथी तुरही बजा रहा है, रज पर्व आ गया है, नए कपड़े पहनकर सजने का समय है, चलो आओ हम इसका आनंद लें)

आहा मो अम्बा बाउला, अमारा एटिकी मेला गो, छड़िना जाउछि सर्वा सकला
(मेरे आम के पेड़ के फूल, हमारी दोस्ती हमेशा रहेगी, जैसे तुम चहकते-महकते हो मैं तुम्हारे साथ चहकूंगी.)

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रज पर्व मानसून के आगमन के साथ आता है, जो रोमांटिकत होने के साथ ही नयेपन की भी ओर इशारा करता है. युवतियां प्रेम भरे गीत गाती हैं और दोस्तों के साथ झूलों का आनंद लेती हैं. जिनका हाल ही में विवाह हुआ है वह इस दौरान कुछ विदाई नुमा गीत सुनकर भावुक भी हो जाती हैं. 
जैसे इस गीत को देखिए...
जा रे मना डोली उड़िजा, जा रे मेघा छुइं फेरी आ, बासुमति मां सरधा कथा मेघदेसे कही आ

(मेरा मन उड़ चला झूले पर, बादलों के साम्राज्य को छूकर लौट रहा है, और मां भूदेवी का प्रेम का संदेश दे रहा है, कहीं बारिश के साथ मेरी याद धुल न जाए)

रज पर्व न केवल ओडिशा की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है, बल्कि यह प्रकृति और स्त्रीत्व के बीच गहरे संबंध को भी दर्शाता है. यह उत्सव हर उम्र की महिलाओं को एकजुट करता है, और उनकी खुशी और स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है. इसके साथ ही बताता है कि प्रकृति हमसे अलग नहीं है. वह हममे है, हमारी तरह ही है और हमारे साथ ही हंसती-खेलती-खिलखिलाती है.

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