कार्तिक एकादशी, पूर्णिमा और विष्णु जागरण... मौसम बदलने के साथ आपके शरीर पर कैसे असर डालते हैं ये त्योहार

कार्तिक मास की देव उठनी एकादशी भगवान विष्णु के जागरण का प्रतीक है, जो आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है. इस दौरान पेट की अग्नि तेज होती है और खान-पान में बदलाव आता है. पुराणों में इसे हरिहर मिलन उत्सव कहा गया है, जहां शिव और विष्णु का मिलन होता है.

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कार्तिक एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा का समय मौसम परिवर्तन का होता है. इस दौरान शरीर भी बाहरी बदलाव के साथ संतुलन बनाता है कार्तिक एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा का समय मौसम परिवर्तन का होता है. इस दौरान शरीर भी बाहरी बदलाव के साथ संतुलन बनाता है

विकास पोरवाल

  • नई दिल्ली,
  • 04 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:28 PM IST

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देव उठनी एकादशी का त्योहार मनाया जाता है. इसके पांचवें दिन कार्तिक पूर्णिमा की तिथि होती है. माना जाता है कि एकादशी को देव यानी भगवान विष्णु का जागरण होने के बाद कार्तिक पूर्णिमा से वह फिर से सृष्टि की सत्ता को अपने हाथ में ले लेते हैं. यानी बीते चार माह से सृष्टि का संचालन महादेव शिव कर रहे थे और वह एक बार फिर से जगत पालक भगवान विष्णु को उनका कार्यभार सौंप देंगे. 

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पूर्णिमा को हरिहर मिलन उत्सव
इस तिथि को पुराणों सहित लोक परंपराओं में भी हरिहर मिलन उत्सव दिवस कहा जाता है. जब महादेव शिव और भगवान विष्णु की खास मुलाकात होती है. शिवजी महाविष्णु की आत्मिक शक्ति के रूप में खुद को प्रकट करते हैं और दोनों ही एक-दूसरे का स्वरूप नजर आते हैं. बिहार के सोनपुर में गंगा नदी के तट पर बाबा हरिहरनाथ का विश्वप्रसिद्ध प्राचीन मंदिर है, जो शिव और विष्णु के सम्मिलित स्वरूप का प्रतीक है. इस शिवलिंग में एक साथ महादेव शिव और विष्णु के दर्शन होते हैं. 

जहां भगवान विष्णु का एक नाम हरि है तो वहीं शिवजी को हर कहकर पुकारा जाता है. इसलिए हरिहर शिव और विष्णु दोनों का ही नाम है. 

क्या है इन तिथियों का शरीर विज्ञान से संबंध
लेकिन, क्या आप समझते हैं कि देव का जागना, हरिहर मिलन और देव प्रबोधिनी, देव उठनी जैसे शब्दों का हमारे जीवन से क्या संबंध है? क्या ये सभी महज एक व्रत और पूजा की तिथियां हैं या इसके मायने इससे कहीं अधिक व्यापक हैं? इसे समझने के लिए प्राचीन आयुर्वेद के विज्ञान को समझना होगा. 

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कार्तिक एकादशी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक का समय ऐसा होता है, जब हमें खान-पान में कुछ रोक और परहेज रखना होता है. कार्तिक पूर्णिमा के बाद से ये रोक हट जाती है और सर्दी का मौसम शुरू होने से खान-पान में भी बड़ा बदलाव आ जाता है. इस दौरान ऐसा भोजन किया जाता है जो शरीर को भीतरी गर्माहट दे, भारीपन बढ़ाए और पौष्टिक भी हो. इसलिए सर्दी के मौसम का भोजन तामसिक प्रवृत्ति का हो जाता है. इस दौरान हरी पत्तेदार सब्जियों की आमद बढ़ जाती है. साग भाजी खाने का चलन बढ़ता है और नया अन्न आने से भोजन में स्वाद बढ़ जाती है.

चौमासे खत्म होने के कारण जो परहेज करना होता है वह भी रोक अब हट जाती है. 

चौमासे के बाद ऋतु परिवर्तन

असल में चौमासे के दौरान वर्षा ऋतु का समय होता है. इस दौरान बारिश के कारण जब चारों ओर नमी अधिक हो जाती है और नए जीवों की उत्पत्ति बढ़ जाती है, तब इस दौरान मांसाहार, साग आदि भोजन पर रोक होती है. गर्म-मसालेदार भोजन भी नहीं खाना चाहिए ऐसा आयुर्वेद कहता है. 

क्या है अग्नि का मंद होना?
क्योंकि ऐसा करने से गैस की समस्या है, पाचन प्रक्रिया ठीक न होना और शरीर का या पेट का भारी होना शुरू हो जाता है. इसका कारण यह है कि बारिश के मौसम में जठराग्नि मंद हो जाती है. यही मंद अग्नि, गरिष्ठ भोजन को पचा नहीं पाती और शरीर में रोग बढ़ते हैं. इसलिए ,अगर आप भारतीय खान-पान को देखेंगे तो इस बारिश में हल्का भोजन करने को कहा जाता है, इसलिए कई सारे व्रत भी इस मौसम में रहते हैं. खास तौर पर पहले आषाढ़ में, फिर पूरे सावन में मांसाहर का निषेध बताया जाता है, इसके बाद भाद्रपद में भी कुछ व्रत और त्योहार, आश्विन में पहले पितृपक्ष और फिर नवरात्रि के नौ दिन.

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वैश्वानर अग्नि, भगवान विष्णु और जठराग्नि का मंद होना
इसी दौरान भगवान विष्णु सोने के लिए जाते हैं. जब भगवान विष्णु विश्राम के लिए जाते हैं यानी हरिशयनी एकादशी (आषाढ़ एकादशी) से फिर चार माह बाद जब वह उठते हैं तो इस टाइम ड्यूरेशन को ही चातुर्मास कहते हैं, यानी वही समय जब पेट की पाचक अग्नि कमजोर हुई रहती है. इस तथ्य को परंपरा से बड़ी खूबसूरती से जोड़ा जा सकता है और आयुर्वेद भी ऐसा कहता है. भगवान विष्णु के एक हजार नामों में से एक प्रमुख नाम है वैश्वानर. ऋग्वेद में अग्नि को भी वैश्वानर कहा गया है. भगवद् गीता में एक महत्वपूर्ण संदर्भ में इसका उल्लेख भी आता है. गीता के अध्याय 15 में श्लोक 14 में इसका विवरण मिलता है. यहां भगवान कृष्ण खुद को वैश्वानर कहते हैं. 

श्लोक देखिए- 
'अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः । 
प्राणापान समायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम् ॥' 

श्रीकृष्ण कहते हैं कि, 'मैं वैश्वानर अग्नि हूं, अर्जुन, और मैं सभी जीवों के शरीर में निवास करता हूं. प्राण और अपान वायु के साथ मिलकर मैं चार प्रकार के भोजन को पचाता हूं.' यहां, वैश्वानर को पाचन अग्नि के रूप में वर्णित किया गया है, जो सभी जीवों में भगवान की उपस्थिति को दर्शाता है.

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ऋग्वेद में वैश्वानर अग्नि
ऋग्वेद में भी अग्नि को वैश्वानर कहा गया है. मांडूक्य उपनिषद में, वैश्वानर को आत्मा के चार पहलुओं में से एक के रूप में वर्णित किया गया है, जो जागृत अवस्था (जागरण) से संबंधित है. पुराणों में इसी अग्नि के तेज होने पर इसे जागृत अवस्था में और मंद होने पर इसे ही सुप्त अवस्था के तौर पर वर्णन किया गया है. यहीं से देवशयनी, यानी चार महीने के लिए भगवान विष्णु के सोने का कॉन्सेप्ट आया है. 

छांदोग्य उपनिषद में वैश्वानर विद्या का उल्लेख है. भगवान विष्णु को यह नाम विश्व और अनर के संयुक्त रूप से पिता या स्वामी होने के तौर पर मिला है. अनर का अर्थ होता है वायु. इसलिए प्राणवायु विष्णु ही हैं और वही वैश्वानर भी हैं. आयुर्वेद में एक औषधि भी है, वैश्वानर चूर्ण. यह चूर्ण पेट में मंद हुई अग्नि को तेज करने की औषधि के तौर पर दिया जाता है, जिसके पाचन की क्रिया ठीक से हो सके. 

चौमासे में मंद हो जाती है शरीर की पाचक अग्नि
इसका मतलब यही है, सृष्टि में भगवान विष्णु सो गये यानी शरीर में अग्नि मंद हो गई है. फिर जब कार्तिक एकादशी को भगवान विष्णु जागते हैं तो ऋतु परिवर्तन के कारण एक बार फिर पेट की अग्नि तेज होने लगती है. इस दौरान शरीर में बदलाव होते हैं. भूख और प्यास बढ़ने लगती है. इस अग्नि को और अधिक तेज करने के लिए एकादशी के दौरान से गन्ना चूसने का विधान है. गन्ना पेट की अग्नि को तेज करता है. चूसने से लार अधिक बनती है, जो भोजन को पचाने में मदद करती है. गन्ने का रस शरीर को अंदर से शुद्ध करने का काम करता है और प्राकृतिक रूप से आंतरिक प्यास को बुझाता है. 

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एकादशी से पूर्णिमा तक एक तरफ जब बाहर ऋतु परिवर्तन हो रहा होता है तब शरीर के भीतर भी बहुत कुछ बदल रहा होता है. इस बदलाव से और कार्तिक पूर्णिमा के बाद से खान-पान के निषेध हट जाते हैं और फिर सर्दी के मौसम में भोजन में विविधता देखने को मिलती है. 

कार्तिक पूर्णिमा से शुरू हो जाती है खान-पान की विविधता
बड़े-बुजुर्ग कहते भी आए हैं कि सर्दी के मौसम का खाया-पिया ही शरीर बनाता है और जीवन भर के लिए मजबूती देता है. भगवान विष्णु के जागने और सत्ता को फिर से संभालने का एक अर्थ यह भी है कि आपके भीतर भी जागरण हुआ है और आप इस परिवर्तन के अनुसार खुद को ढालकर जीवन में आगे बढ़ें.

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