खोई परंपराओं को दिया संरक्षण, तैयार किया संग्रह... प्रो. मोहन खोखर जिन्होंने नृत्य विधा को पन्नों पर उतारा

मोहन खोखर ने नृत्य विधाओं को संरक्षित करने, नृत्य शिक्षण को बढ़ावा देने और नृत्य के दस्तावेजीकरण में अद्वितीय भूमिका निभाई. उनके द्वारा संकलित तस्वीरें और लेख भारतीय नृत्य के इतिहास का अमूल्य स्रोत हैं.

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प्रोफेसर मोहन खोखर ने नृत्य विधाओं को संरक्षित किया प्रोफेसर मोहन खोखर ने नृत्य विधाओं को संरक्षित किया

विकास पोरवाल

  • नई दिल्ली,
  • 20 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:06 AM IST

भारत में नृत्य की परंपरा इतनी विशाल और प्राचीन है कि अगर आप इसकी पहली जड़ों को खोजने जाएंगे तो यह किसी समय यात्रा से कम न होगी. फिर भी लिखित इतिहास में झांककर देखें तो इसका सबसे पहला कलात्मक संकेत मोहेनजोदड़ो की लगभग 2000 वर्ष पुरानी नृत्य करती हुई कन्या (Dancing Girl) की मूर्ति से मिलता है. तब से लेकर आज तक, भारत की इस विशाल जनसंख्या के बीच और तमाम विधाओं के पुराधाओं के बीच वे नाम गिनती भर के ही हैं, जिन्होंने अपना जीवन न सिर्फ नृत्य को दिया, बल्कि उसके इतिहास और धरोहर से जुड़ी हर बात को संजोने में भी समर्पित कर दिया.

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इस बिरले कलाप्रेमी कलाकार का नाम नृत्य विधा के हर छात्र-हर छात्राएं जानते ही हैं और जो न जानें वह इस विधा का ज्ञान और गहराई से लें, क्योंकि विद्वानों में अग्रणी, संग्रहों के समर्पित संरक्षक, नृत्य कला के पारखी आलोचक और इतिहासकार प्रो. मोहन खोखर को न जानना ऐसा है जैसे गंगा में स्नान के बाद भी पवित्रता की भावना से दूर रहना.

ऐसे शुरू हुई कहानी 
1924 में बलूचिस्तान (अब पाकिस्तान) के क्वेटा में जन्मे मोहन खोखर, एक सैन्य आयुक्त (सरदार भगत राम खोखर) के बेटे थे. उन्होंने नृत्य पहली बार तब देखा, जब उस दौर के जाने-माने कलाकार राम गोपाल, जिन्हें "भारत का निजिंस्की" कहा जाता है, लाहौर में कार्यक्रम प्रस्तुत करने आए.

उनकी मंडली में उस समय नौ वर्ष की नन्हीं अदाकारा बेबी सरोजा भी थीं, जिनसे आगे चलकर मोहन का विवाह हुआ. उसी क्षण से मोहन का नृत्य से गहरा रिश्ता जुड़ गया. वे राम गोपाल और भरतनाट्यम दोनों के अनुयायी बन गए. वे पहले उत्तर भारतीय पुरुष थे जिन्होंने मद्रास (अब चेन्नई) में रुक्मिणी देवी अरुंडेल के कलाक्षेत्र में प्रवेश लिया. यह बात 1940 के दौर वाले साल की रही होगी. 

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प्रोफेसर मोहन खोखर और उनकी पत्नी एमके सरोजा (फाइल फोटो)

सिर्फ 24 वर्ष की आयु में मोहन खोखर को भारत के पहले विश्वविद्यालय एम.एस. यूनिवर्सिटी, बड़ौदा (गुजरात) में नृत्य विभाग का अध्यक्ष चुना गया. यह विश्वविद्यालय स्नातक स्तर पर नृत्य को पढ़ाने वाला देश का पहला संस्थान था. 1950 और 1960 में विश्वविद्यालय ने उन्हें केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय, नई दिल्ली, को नृत्य के लिए विशेष अधिकारी के रूप में सौंपा. बाद में वे 18 वर्षों तक संगीत नाटक अकादमी से जुड़े रहे, जिनमें अंतिम पांच वर्ष उन्होंने सचिव के रूप में सेवा दी.

नृत्य और नर्तकों को संवारने पर दिया जोर
मोहन खोखर ने नृत्य और नर्तकों को संवारने का पूरा प्रयास किया. उनके दूरदर्शी संरक्षण के कारण ही कुछ दुर्लभ नृत्य रूप, जैसे कथक, सेरैकल्ला छऊ, केरल का कूडियाट्टम और विभिन्न लोक परंपराएं, बच पाईं. उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि पारंपरिक गुरुओं के बच्चों को छात्रवृत्ति और रोजगार मिले, ताकि वे नृत्य को पेशे के रूप में छोड़ने को विवश न हों. उन्होंने यह सब 1960 से 1980 के बीच किया, जब नृत्य के लिए समाज में केवल औपचारिक सहानुभूति ही मिलती थी, वास्तविक सहयोग नहीं.

अपने व्यस्त जीवन के बीच उन्होंने लेखन भी किया. उन्होंने 5000 से अधिक लेख लिखे और मार्ग, पुष्पांजलि, द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया, भावन’स जर्नल, सूर्या मैगज़ीन, हिंदुस्तान टाइम्स, श्रुति और अटेंडेंस जैसी पत्रिकाओं में योगदान दिया. उन्होंने नृत्य पर सात प्रामाणिक खंड लिखे. इसके अलावा उन्होंने अनेक शोधपत्र भी लिखे, जैसे 1974 में यूनेस्को के लिए नृत्य पर एक संकलन और 1976 में कॉर्ड कॉन्फ्रेंस के लिए एक व्याख्यान. 

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मोहन खोकर अपने समय के सबसे विख्यात लेखक, लेखक और नृत्य समीक्षक थे. वे 1960 और 70 के दशक में दिल्ली में द स्टेट्समैन और बाद में हिंदुस्तान टाइम्स के नृत्य समीक्षक थे. उन्होंने 1950 के दशक के अंत में मार्ग पत्रिका के नृत्य विशेषांकों का अतिथि संपादन भी किया था. वे एकमात्र अखिल-भारतीय नृत्य लेखक थे, जिन्होंने अपनी तस्वीरें भी स्वयं खींचीं.

प्रोफेसर एमके सरोजा जो एमएस विश्वविद्यालय बड़ौदा में पहली भरतनाट्यम प्रोफेसर थीं

आज उनकी 25,000 से अधिक तस्वीरें उस समय के परिवर्तनों, वेशभूषा, नृत्य रूपों और मंच का सबसे बड़ा प्रमाण हैं. उनकी तस्वीरें भारतीय नृत्य का एक नृवंशविज्ञान अध्ययन भी बनाती हैं, और उनके लिए लोक नृत्य उतना ही महत्वपूर्ण था जितना कि फिल्में. उन्होंने ब्रिटिशर्स के भारत छोड़ने के दौरान हजारों किताबें और कलाकृतियां एकत्र कीं. उन्होंने उस समय नृत्य का दस्तावेजीकरण शुरू किया जब यूरोप युद्ध में था और भारत अभी आजाद भी नहीं हुआ था. 

इस दृष्टि से, उन्हें एक अग्रणी माना जाता है. उनकी प्रसिद्ध नृत्य संग्रह को उनकी प्रतिष्ठित पत्नी एम.के. सरोजा और पुत्र आशीष खोकर, जो एक प्रतिष्ठित समीक्षक और नृत्य इतिहासकार हैं, ने प्यार से संरक्षित और समृद्ध किया, और इसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) को राष्ट्र को दान कर दिया. एक विशेषज्ञ समिति ने इसके मूल्य को न्यूनतम 6 करोड़ रुपये आंका था. साल 1999 में मोहन खोखर का निधन चेन्नई में हुआ, लेकिन उनका विशाल नृत्य-संग्रह निधि के तौर पर उनके बेटे आशीष खोखर के हाथों में संरक्षित है.

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