भारत में मशरूम की खेती का चलन बढ़ता जा रहा है. मशरूम की खेती की मदद से कम लागत में अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है. मशरूम की फसल जितना फायदे पहुंचाने वाली लगती है, उचित देखभाल ना मिलने पर किसानों को नुकसान भी पहुंचा सकती है. सर्दियों के समय में सबसे बड़ी चुनौती मशरूम बैग में गलन की है, जैसे ही तापमान गिरता है, बैग में नमी और ठंड मिलकर फसल को खराब कर सकती है. इस समस्या से बचने के लिए किसानों को ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए.
उचित तापमान बनाए रखना
सर्दियों में मशरूम की खेती करते समय सबसे अहम बात कमरे का सही तापमान बनाए रखना माना जाता है. मशरूम के लिए कमरे का तापमान 15 से 18 डिग्री सेल्सियस तक बेहतर बताया जाता है, लेकिन तेज ठंड के कारण यह अक्सर 5 डिग्री तक गिर सकता है. किसान तापमान को उचित बनाए रखने के लिए कमरे में थर्मामीटर लगाकर तापमान पर लगातार नजर रख सकते हैं. अगर तापमान ज्यादा गिर रहा हो तो कमरे को गर्म रखने के लिए साधारण हीटर, बल्ब या किसी भी सुरक्षित गर्माहट का इस्तेमाल किया जा सकता है.
नमी का ध्यान रखना
केवल तापमान ही नहीं, बल्कि कमरे की नमी भी अहम मानी जा सकती है. अगर कमरे में नमी ज्यादा बढ़ जाए तो बैग पर पानी की बूंदें जम सकती हैं और यही गलन का सबसे बड़ा कारण बन सकती है. इसलिए किसान नमी को 80–85% के बीच बनाए रखने की कोशिश कर सकते हैं.
वेंटिलेशन जरूरी
मशरूम का कमरा पूरी तरह बंद रखना नुकसान पहुंचा सकता है. ताजी हवा न आने से बैक्टीरिया फैलते हैं और गलन बढ़ सकती है. इसलिए हल्का वेंटिलेशन जरूरी माना जाता है, लेकिन ध्यान रहे हवा सीधे बैग पर न लगे. बस हल्का प्रवाह बनाए रखना ही काफी है ताकि तापमान और नमी संतुलित रह सके.
बीमारी वाले बैग को हटाना
जैसे ही किसी बैग में बदबू, रंग बदलना या ज्यादा गीलापन दिखाई दे, आप समझ सकते हैं कि गलन शुरू हो चुकी है. आप इसे तुरंत कमरे से बाहर कर सकते हैं क्योंकि यह बाकी फसल को भी नुकसान पहुंचा सकता है.
सफाई का ध्यान रखना
मशरूम की अच्छी पैदावार के लिए कमरे की सफाई रखना जरूरी माना जाता है. अगर कमरे में धूल, गंदगी या पुराने खराब बैग पड़े रहें तो बैक्टीरिया तेजी से फैल सकते हैं और गलन बढ़ सकती है. इसलिए कमरे को समय-समय पर साफ रखना, काम करते समय हाथ धोना और हमेशा साफ उपकरणों का इस्तेमाल करना बेहतर हो सकता है. ये छोटे-छोटे कदम मशरूम की फसल को सुरक्षित और हेल्दी बनाए रखने में मदद कर करते हैं.
आजतक एग्रीकल्चर डेस्क