ठंड की शुरुआत के साथ ही फसलों पर भी रोगों और कीटों के प्रकोप की घटनाएं सामने आने लगती हैं. ऐसे में किसानों के लिए फसल की रक्षा के लिए देखभाल और रोगों-कीटों से बचाने के लिए कीटनाशी और रोगनाशी दवाओं का छिड़काव करने की जरूरत होती है. लेकिन, कई बार किसान रोगों की पहचान नहीं कर पाते और उनकी उपज प्रभावित हो जाती है या पूरी तरह चौपट ही हो जाती है, जिससे उन्हें नुकसान झेलना पड़ता है. ऐसे में आज हम आपको मटर की फसलों को लेकर आगाह करने जा रहे हैं.
इन दिनों मटर की फसलों में कवकजनित रोगों और कीटों के हमले का खतरा रहता है. कृषि वैज्ञानिकों और एक्सपर्ट्स ने मटर किसानों के लिए एडवाइजरी जारी की है. कृषि एक्सपर्ट्स ने किसानों को मटर फसल की नियमित निगरानी करने की सलाह देते हुए फसलों में कवकजनित रोगों जैसे-रतुआ तथा चूर्णिल आसिता की रोकथाम के लिए रोगनाशक दवाओं के छिड़काव की सलाह दी है.
चूर्णिल आसिता रोग के लिए छिड़कें ये दवा
कृषि एक्सपर्ट के अनुसार, सल्फरयुक्त कवकनाशी सल्फेक्स को 2.5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 800-1000 लीटर पानी में घोलकर 15 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार फसल पर जरूरत के हिसाब से छिड़काव करें या घुलनशील गंधक (0.2.0.3 प्रतिशत) का फसल पर छिड़काव करें. वहीं, चूर्णिल आसिता को कंट्रोल करने के लिए कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम/लीटर पानी) या डीनोकैप, केराथेन 48 ई.सी. (0.5 मि.ली./लीटर पानी) का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
रतुआ रोग को ऐसे करें दूर
रतुआ रोग की रोकथाम के लिए मैन्कोजेब दवा की 2.0 कि.ग्रा. या डाइथेन एम-45 को 2 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर या हेक्साकोनाजोटा 1 लीटर या प्रोपीकोना 1 लीटर की दर से 600-800 लीटर पानी में घोलकर खड़ी फसल पर छिड़काव करें. कृषि एक्सपर्ट ने सलाह दी है कि किसान उचित फसलचक्र अपनाएं और रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दें.
तनाछेदक-फलीछेदक की ऐसे करें रोकथाम
इंडोक्साकार्ब (1 मि.ली. प्रति लीटर पानी) का छिड़काव कीटों से होने वाले नुकसान को कम करता है. मटर के तनाछेदक कीट की रोकथाम के लिए डाइमिथोएट 30 ई. सी. दवा को 1.0 लीटर मात्रा और फलीछेदक कीट की रोकथाम हेतु मोनोक्रोटोफॉस 36 ई.सी. दवा की 750 मि.ली. की दर से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. मटर की खेती करना किसानों के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि इससे मिट्टी की उपजाऊता भी बढ़ती है.
आजतक एग्रीकल्चर डेस्क