
रिश्ता गहरा है और वोटरों को लेकर निशाना विशिष्ट है. अमेरिकी राष्ट्रपति की इस दौड़ में भारतीय अमेरिकी समुदाय अकेला स्तंभ नहीं बल्कि अलग धार्मिक पहचान वालों का समूह है. विकास-क्रम धीमा लेकिन निश्चित रहा है, क्या हिंदुओं, मुस्लिमों और सिखों में पृथकता क्या धर्म विशेष को लाभ पहुंचाती है या समूचे तौर पर भारत के हितों की मदद करती है.
ये ट्रेंड 2016 में शुरू हुआ, जब राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार डोनॉल्ड ट्रंप ने रिपब्लिकन हिंदू कोएलिशन की रैली में हिस्सा लिया और हिंदू वोटों के लिए दांव लगाया. अगले हफ्ते होने वाली रिपब्लिकन कन्वेंशन में हिंदू अमेरिकियों से सीधी अपीलें फिर देखने को मिल सकती हैं. अब डेमोक्रेट्स भी इस खेल में पीछे नहीं रहना चाहते.
शनिवार को राष्ट्रपति पद के लिए डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बिडेन ने ट्विटर पर "गणेश चतुर्थी के हिंदू त्योहार" पर अपनी शुभकामनाएं दीं. ऐसा ही उनकी रनिंग मेट और पार्टी की उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस ने भी किया, जिनकी मां तमिल भारतीय महिला थीं. पहले की तरह दिवाली पर ही हिंदू समुदाय को बधाई देने की जगह अब राष्ट्रपति उम्मीदवार हिंदुओं के अन्य त्योहारों पर भी बधाई देने का खयाल रखने लगे हैं.
Joining @JoeBiden in wishing everyone celebrating a very happy Ganesh Chaturthi. https://t.co/iYzangpfAS
— Kamala Harris (@KamalaHarris) August 22, 2020
इस बार, डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन, दोनों पार्टियों ने भारतीय-अमेरिकी समुदाय के हर वर्ग को लुभाने के लिए खास रणनीतियां बनाई हैं. भारतीय-अमेरिकी सबसे तेजी से बढ़ते जातीय ग्रुप हैं. साथ ही इनका शुमार उच्च शिक्षित और आर्थिक रूप से सफल लोगों में होता है.
मोटे तौर पर 40 लाख भारतीय-अमेरिकियों में से लगभग 24 लाख वोटिंग की पात्रता रखते हैं. इनमें से 14 लाख वोटर नौ बैटलग्राउंड स्टेट्स में रहते हैं. भारतीय-अमेरिकियों में से अधिकतर हिंदू हैं. ये आंकड़ा और भी बढ़ जाता है अगर कैरिबियाई, अफ्रीका, नेपाल और बांग्लादेश के हिंदुओं को भी इसमें जोड़ दिया जाए.
हालांकि अमेरिकी जनगणना ब्यूरो धार्मिक संबद्धता को रिकॉर्ड नहीं करता है, लेकिन शोध से पता चलता है कि ईसाई और यहूदी धर्म के बाद तीसरे और चौथे नंबर पर इस्लाम और हिंदू धर्म के सबसे ज्यादा अनुयायी हैं. ईसाई वोटों के लिए लड़ना हमेशा अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों का अहम हिस्सा रहा है लेकिन हिंदू और मुस्लिम वोटों के लिए संघर्ष अपेक्षाकृत नया है.
पिछले हफ्ते, रिपब्लिकन ने भारतीय-अमेरिकियों को लुभाने के लिए चार नए गठबंधन शुरू किए, हिंदू, सिख और मुसलमानों को अलग-अलग समूहों में लक्षित किया गया. रिपब्लिकन कैम्पेन के मुताबिक जो बिडेन और कमला हैरिस के ‘सोशलिस्ट एजेंडे की काट’ के लिए "ट्रंप के लिए भारतीय आवाज़ें," "ट्रंप के लिए हिंदू आवाजें" "ट्रंप के लिए सिख" और "ट्रंप के लिए मुस्लिम आवाजें" जैसे सपोर्ट ग्रुप शुरू किए गए हैं.
रिपब्लिकन रणनीतिकार आदि साथी का कहना है कि डेमोक्रेट्स कोशिश कर सकते हैं, लेकिन अंत में ‘वे क्या करते हैं’, वो देखना महत्वपूर्ण होगा. उन्होंने आजतक को बताया, "रिपब्लिकन वास्तव में भारतीय-अमेरिकी समुदाय की मदद कर रहे हैं. डोनाल्ड ट्रंप कानूनी आव्रजन और मेरिट आधारित सिस्टम के हिमायती हैं, जो भारतीय मूल के लोगों को लाभ पहुंचाता है."
साथी कहते हैं. “ट्रंप पहले थे जिन्होंने किसी भारतीय-अमेरिकी - निक्की हेली - को कैबिनेट पद के लिए नियुक्त किया, जहां उनकी राष्ट्रपति तक सीधी पहुंच थी.” निक्की हेली इस हफ्ते रिपब्लिकन सम्मेलन को संबोधित करने वाली हैं. साथी के मुताबिक "रिपब्लिकन भारत में अधिक दिलचस्पी रखते हैं और इसका पक्ष लेने के लिए तैयार हैं."

नए रिपब्लिकन गठबंधन डोनाल्ड ट्रंप के "आर्थिक सशक्तीकरण, क्वालिटी शिक्षा और कानून व्यवस्था" के एजेंडे को बढ़ावा देंगे. शर्तों में एक सब-टेक्स्ट है, विशेष रूप से "लॉ एंड ऑर्डर", जो विभिन्न समूहों में विभिन्न भावनाओं को ट्रिगर करता है. एक श्वेत पुलिसकर्मी के हाथों, अफ्रीकी-अमेरिकी, जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद से कई प्रमुख अमेरिकी शहर विरोध प्रदर्शनों की चपेट में आ गए. इन विरोध प्रदर्शनों में यदा कदा हिंसा और आगजनी भी देखी गई. कानून और व्यवस्था के टूटने और शिकागो-न्यूयॉर्क में बंदूकी हिंसा बढ़ने से भारतीय-अमेरिकियों की पुरानी पीढ़ी हैरान हैं.
डेमोक्रेट्स ने भारतीय-अमेरिकी समुदाय को "नफरती हमलों" से बचाने की प्रतिबद्धता जताई है, साथ ही विशेष रूप से हिंदुओं, सिखों, मुसलमानों और जैनियों" का उल्लेख किया है. 15 अगस्त को भारतीय अमेरिकी समुदायों के लिए जो बिडेन की ओर से जारी एजेंडा ने मंदिरों, गुरुद्वारों और मस्जिदों के लिए अधिक पुलिस सुरक्षा और इनसे जुड़े पुजारियों/ग्रंथियों/इमामों के लिए धार्मिक वीजा की स्ट्रीमलाइनिंग का वादा किया.
हिंदुओं, मुसलमानों और सिखों में समुदाय का बंटना अनिवार्य रूप से घरेलू अमेरिकी राजनीति में भारत-पाकिस्तान मुद्दों का समावेश होना है. पिछले साल अगस्त से भारत में जम्मू और कश्मीर की स्थिति में बदलाव आया और मुस्लिम-अमेरिकी समूहों ने भारतीय नीतियों के खिलाफ एक मुहिम शुरू की, साथ ही अमेरिकी कांग्रेस पर भारत के खिलाफ कार्रवाई करने के जोर डाला.
सिखों ने 9/11 हमले के बाद अमेरिका में अपने पर हमले होने की कुछ घटनाओं के बाद हिंदू अमेरिकियों से छिटकना शुरू किया और अपनी अलग पहचान बनाने का फैसला किया. उनका फोकस अमेरिकी जेहन से सिख धर्म की हिंदू धर्म से अलग पहचान करने पर रहा. समुदाय के पर्यवेक्षकों का कहना है कि कुछ मायनों में, सिख-अमेरिकी एक्टिविस्ट्स ने हिंदू एक्टिविस्ट्स के बजाय मुस्लिम अमेरिकी ग्रुप्स से जुडाव करना पसंद किया. जब मार्च में काबुल गुरुद्वारा परिसर में आतंकवादी हमले के बाद अफगान सिखों ने अमेरिका में शरण पाने की कोशिश की, तो कुछ सिख समूहों ने हिंदू-अमेरिकियों के इस अभियान में शामिल होने और अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों के नाम पत्र पर हस्ताक्षर करने पर आपत्ति जताई थी.
हिंदू-मुस्लिम विभाजन हमेशा पृष्ठभूमि से झांकता रहा है, लेकिन 2005 में यह तब स्पष्ट हो गया जब अमेरिका ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को वीजा देने से इनकार कर दिया था. 2016 के चुनाव के दौरान यह एक राजनीतिक तथ्य बन गया जब भारतीय-अमेरिकी उद्यमी शलभ "शल्ली" कुमार के "रिपब्लिकन हिंदू कोएलिशन" (आरएचसी) ने न्यू जर्सी में हिंदू-अमेरिकियों के लिए आरएचसी रैली में उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप को लाकर सुर्खियां बटोरी थीं.

इस तरह ट्रंप एक सार्वजनिक भारतीय-अमेरिकी रैली में उपस्थिति बनाने वाले पहले राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार थे. आरएचसी के पीछे के तर्क को समझाते हुए, कुमार ने आजतक को बताया, "भारत की तरह ही, एक भारतीय मुस्लिम-अमेरिकी एक भारतीय हिंदू-अमेरिकी से बहुत अलग तरीके से सोचता है, खासकर पुरानी पीढ़ी में. जैसे-जैसे लोग बड़े होते हैं, वे अधिक धार्मिक हो जाते हैं. वो अधिक हिंदू और अधिक मुस्लिम बन जाते हैं. रणनीतिकार जो इस अंतर को समझते हैं और पहचानते हैं, वो बेहतर आउटरीच बना पाएंगे."
अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि पुरानी पीढ़ी युवा लोगों की तुलना में अधिक संख्या में वोट करती है. कुमार आरएचसी में 20,000 हिंदुओं की सदस्यता होने का दावा करते हैं और वर्तमान में डोनाल्ड ट्रंप अभियान में शामिल होने के लिए व्हाइट हाउस के साथ बातचीत कर रहे हैं. कुमार 2016 में अपने हिट नारे "अबकी बार, ट्रंप सरकार" की तरह इस बार भी नए नारे के साथ तैयार हैं.
कुमार को लगता है कि ट्रंप अभियान को हिंदू-अमेरिकियों तक पहुंचने के लिए अपना गेम अप करने की आवश्यकता है और नौसिखियों के अतिरंजित दावों पर भरोसा नहीं करना चाहिए. क्योंकि डेमोक्रेट के पास डेटा और अनुसंधान आधारित परिष्कृत रणनीति है. कुमार कहते हैं, "डेमोक्रेट्स स्मार्ट हो रहे हैं. उनके पास 14 अगस्त को पाकिस्तानी-अमेरिकियों के लिए और 15 अगस्त को भारतीय-अमेरिकियों के लिए एक कार्यक्रम था. सुपर स्मार्ट. उन्होंने 14 भारतीय भाषाओं में विज्ञापन जारी किए हैं."
डेमोक्रेटिक पार्टी के एक एक्टिविस्ट ने कहा, “उनका फोकस बैटलग्राउंड राज्यों में भारतीय-अमेरिकियों को वोट कराने और अपने कैम्प से मजबूती से जोड़े रहने पर है. अगर इसके मायने गणेश चतुर्थी पर जो बिडेन का हिंदुओं को खुश करने के लिए ट्वीट करना है तो उम्मीदवार हर वो काम करेगा जो उसकी दौड़ को आसान कर दे.
(सीमा सिरोही का इनपुट)