नरेंद्र मोदी सरकार ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ( PFI) को भारत में बैन कर दिया है. हालांकि, यह बैन सिर्फ पांच साल के लिए लगाया गया है. केंद्र सरकार से कई राज्यों ने पीएफआई पर बैन लगाने की मांग की थी. पिछले दिनों पीएफआई के काफी ठिकानों पर भी कई राज्यों की पुलिस और एंजेंसियां छापेमारी कर रही थी. पीएफआई जुड़े कई सदस्यों को गिरफ्तार भी किया गया है. नरेंद्र मोदी सरकार ने सिर्फ पीएफआई ही नहीं बल्कि उससे जुड़े अन्य 8 सहयोगी संगठनों पर एक्शन लिया है.
केंद्र सरकार ने पीएफआई से जुड़े जिन 8 संगठनों के खिलाफ एक्शन लिया है, उनमें नेशनल वीमेंन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (CFI), रिहैब इंडिया फाउंडेशन (RIF), ऑल इंडिया इमाम काउंसिल ( AIIC), रिहैब फाउंडेशन केरल, एम्पावर इंडिया फाइंडेशन और नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइजेशन (NCHRO) शामिल है. रिपोर्ट्स की मानें तो पीएफआई का कनेक्शन SIMI, जमीयत उल मुजाहिदीन (बांग्लादेश ) और आईएसआईएस के साथ भी जोड़ा जा चुका है.
पीएफआई पर बैन लगाने के बाद जहां कई राज्यों और नेताओं ने नरेंद्र मोदी सरकार की जमकर तारीफ की और फैसले का दिल से स्वागत किया तो कई पार्टियों ने इस फैसले की संघ से जोड़कर भी आलोचनाएं कीं. पीएफआई बैन को लेकर मुस्लिम देशों की मीडिया ने भी अपनी प्रतिक्रियाएं दीं, जिसमें भाजपा सरकार की विचारधारा पर भी निशाना साधा गया.
क्या बोला पाकिस्तानी अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून
पीएफआई बैन पर पाकिस्तान के द एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार ने कहा कि पीएफआई के एंटी नेशनल होने का मतलब सिर्फ इतना है कि वह भाजपा और नरेंद्र मोदी सरकार की विवादित नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करता है.
एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने लिखा, यहां तक कि पीएफआई सदस्यों के खिलाफ दाखिल अधिकतर चार्जशीटों में लोगों को सरकारी नीतियों के बारे में बताकर सरकार के खिलाफ भड़काने के लिए इंटरनेट का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगाया गया है.
अलजजीरा की तीखी प्रतिक्रिया
न्यूज चैनल अल जजीरा ने पीएफआई बैन को लेकर खबर में कहा कि बीजेपी हमेशा मुस्लिमों के साथ भेदभाव के दावों को खारिज करती आई. हालांकि, आलोचकों का मानना है कि साल 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली जीत ने गृह मंत्रालय और जांच एजेंसियों को ताकत दी कि वे किसी भी व्यक्ति को सिर्फ आरोपों के आधार पर आतंकवादी घोषित कर सकें.
न्यूज चैनल की ओर से आगे बताया गया कि पीएफआई पर बैन भी यूएपीए कानून के तहत ही लगाया गया. यह एक्ट भारत सरकार को देश की संप्रभुता और अखंडता के खिलाफ काम करने वालों पर कार्रवाई करने की काफी ज्यादा ताकत देता है.
अल जजीरा के एक अन्य आर्टिकल के अनुसार, पीएफआई पर बैन लगाना स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया ( SIMI) की तरह है, जिसपर साल 2001 में भारत सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था. उस समय सरकार ने यूएपीए के तहत कई सदस्यों को गिरफ्तार भी किया था, लेकिन बाद में सबूतों के आभाव में केस में रिहा हो गए थे.
अल जजीरा के अनुसार, एक दिल्ली बेस्ड वकील महमूद परछा ने पीएफआई पर एक्शन को भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का एक प्रयास कहा है. महमूद का कहना है कि हिंदू राष्ट्र नरेंद्र मोदी सरकार का आइडिया है और उसी दिशा में आगे बढ़ने के लिए सबकुछ किया जा रहा है.
महमूद ने आगे कहा कि पीएफआई ने अपनी वेबसाइट पर साफ लिखा है कि संस्थान पूरी तरह से भारतीय संविधान को मानता है और संविधान के तहत ही वे प्रताड़ितों के हक में लड़ाई करना चाहते हैं. महमूद ने आगे कहा कि पीएफआई का कोई छुपा हुआ एजेंडा है या नहीं, इसकी जांच करना सरकार का काम है.
वहीं महमूद ने आगे कहा कि भारत में ऐसे कई दक्षिणपंथी संस्थान हैं जो मुस्लिमों के खिलाफ न सिर्फ हिंसा करते हैं बल्कि सेक्युलर भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं. हालांकि, सरकार मानती है कि इन समूहों की गतिविधियां बैन करने के लिए काफी नहीं है.
The Indian gov't this week declared the Popular Front of India (PFI) an unlawful association, banning the Muslim group and its associates for five years ⤵️https://t.co/oqqtEy0C0v
— Al Jazeera English (@AJEnglish) September 29, 2022
अलजजीरा ने पीएफआई से जुड़े थेजस न्यूजपेपर के संपादक रहे चेकुट्टी की टिप्पणी को भी अपने आर्टिकल में जगह दी है. चेकुट्टी ने अलजजीरा से बातचीत में इस बैन को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की राजनीति से प्रेरित बताया. चेकुट्टी ने बताया कि पीएफआई ने कुछ गलतियां की हैं. कुछ पीएफआई सदस्य केरल के कॉलेज प्रोफेसर का हाथ काटने में भी शामिल थे. इसके अलावा भी कई ऐसे मुद्दे जिनमें वे हिंसक मामलों में शामिल रहे हों, लेकिन वे सभी इक्का-दुक्का मामले थे.
पाकिस्तानी अखबार डॉन ने क्या कहा
वहीं पाकिस्तान के प्रसिद्ध अखबार डॉन ने पीएफआई बैन पर कहा कि भारत की 140 करोड़ की जनसंख्या में 13 फीसदी मुसलमान हैं. जिनमें अधिकतर नरेंद्र मोदी सरकार में धर्म के नाम पर उपेक्षा की शिकायत करते हैं.
हालांकि, नरेंद्र मोदी की पार्टी मुसलमानों के साथ भेदभाव के आरोपों को हमेशा खारिज करती आई है. मुस्लिमों के साथ भेदभाव की बात पर नरेंद्र मोदी सरकार उन आंकड़ों पर बात करती है, जिनमें बताया गया है कि भारत सरकार की योजनाओं का लाभ सभी धर्म के लोगों को बराबरी के साथ मिल रहा है.
डॉन की खबर में आगे कहा कि गया कि पीएफआई सरकार के खिलाफ ऐसे मुद्दों पर हो रहे प्रदर्शनों को सपोर्ट करता है, जिन्हें मुस्लिम लोग भेदभाव के नजरिए देखते हैं. जैसे साल 2019 में हुए एंटी सीएए प्रदर्शन और साल 2022 में कर्नाटक में हिजाब को लेकर हुए मुस्लिम महिलाओं के प्रदर्शन को पीएफआई ने सपोर्ट किया था.
अरब न्यूज ने नरेंद्र मोदी सरकार के लिए क्या कहा
वहीं अरब न्यूज ने पीएफआई बैन को लेकर कहा कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर प्रतिबंध के लिए कई कट्टर हिंदू समूह काफी समय से मांग कर रहे थे. भारत में पिछले कुछ समय में हुए कुछ मुस्लिमों के नेतृत्व वाले प्रदर्शनों के बीच पीएफआई जैसी संस्था पर बैन की मांग और ज्यादा बढ़ गई.हाल ही में पीएफआई पर कर्नाटक राज्य में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब बैन को लेकर रैलियों के जरिए हिंसा करवाने का आरोप लगाया गया था. अरब न्यूज ने खबर में आगे कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार पर साल 2014 में सत्ता में आने के बाद से ही मुस्लिमों के साथ भेदभाव करने वाली नीतियों को लाने का आरोप लगता रहा है.
PFI was found to have links with the Students Islamic Movement of India (SIMI), the Jamiat-ul-Mujahideen Bangladesh and the Islamic State of Iraq and Syria (ISIS) @Saudi_Gazette https://t.co/Frlz0PH8Eb
— حسن سجواني 🇦🇪 Hassan Sajwani (@HSajwanization) September 28, 2022
भारत के 15 राज्यों में एक्टिव है पीएफआई
पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ( पीएफआई ) संगठन पर बैन लगने के बाद हलचल मची हुई है. टेरर फंडिंग जैसे संगीन आरोप झेल रहा यह संगठन भारत के 15 राज्यों में एक्टिव बताया जाता है, जिसमें दिल्ली, हरियाणा, यूपी, बिहार, झारखंड, वेस्ट बंगाल, असम, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, केरल शामिल है.
22 से 27 सितंबर के बीच ताबड़तोड़ छापेमारी
पिछले सप्ताह पीएफआई सदस्यों के लिए काफी परेशानी वाला रहा, क्योंकि 22 सितंबर से 27 सितंबर ना सिर्फ ईडी और एनआईए बल्कि कई राज्यों की पुलिस ने भी पीएफआई के कई ठिकानों पर छापेमारी की. इस छापेमारी में संयुक्त रूप से 350 से ज्यादा लोगों को हिरासत में या गिरफ्तार किया जा चुका है.
इन्हीं छापेमारी में जांच एजेंसियों को पीएफआई के खिलाफ अवैध गतिविधियों के सबूत मिले, जिसके बाद गृह मंत्रालय से संगठन पर बैन की मांग की गई थी.