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जौनपुर में मोहम्मद खालिद दुबे के घर हुआ 'बहू भोज', चर्चा में दूल्हे के डबल सरनेम

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जनपद में एक ऐसा विवाह समारोह चर्चा का विषय बना, जिसने धर्म, इतिहास और सामाजिक सौहार्द को एक सूत्र में पिरो दिया. 17वीं सदी की मुगलकालीन विरासत से जुड़े दोहरे उपनाम ‘दुबे’ को संजोए एक मुस्लिम परिवार के विवाह ने यह संदेश दिया कि आस्था बदल सकती है, लेकिन पूर्वजों की पहचान और विरासत पीढ़ियों तक जीवित रहती है.  

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जौनपुर में मोहम्मद खालिद दुबे के घर हुआ 'बहू भोज'  (Photo: Representational Image)
जौनपुर में मोहम्मद खालिद दुबे के घर हुआ 'बहू भोज' (Photo: Representational Image)

उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के केराकत तहसील स्थित देहरी गांव में रविवार को आयोजित एक विवाह समारोह साधारण नहीं था. यह विवाह था मोहम्मद खालिद दुबे का, जिनका डबल सरनेम अपने आप में 17वीं सदी के इतिहास, सांस्कृतिक मेल-जोल और सामाजिक समरसता की कहानी कहता है. मुगलकाल से जुड़ी इस वंश परंपरा ने एक बार फिर यह साबित किया कि भारत की सामाजिक संरचना विविधताओं के बावजूद एक साझा विरासत में बंधी है.

इस विवाह के अवसर पर आयोजित ‘बहू भोज’ या उर्दू में कहें तो ‘दावत-ए-वलीमा’ का आयोजन खालिद दुबे के चाचा नौशाद अहमद दुबे ने किया. परिवार के अनुसार, उनके पूर्वज 1669 में आजमगढ़ जिले से आकर इस क्षेत्र में बसे थे. उस समय परिवार के पुरखे लाल बहादुर दुबे एक जमींदार थे. कालांतर में पीढ़ियों के साथ धर्म में परिवर्तन हुआ, लेकिन ‘दुबे’ उपनाम को परिवार ने अपनी ऐतिहासिक जड़ों और पहचान के प्रतीक के रूप में बनाए रखा.

नौशाद अहमद दुबे का कहना है कि उनके लिए यह केवल नाम का सवाल नहीं, बल्कि अपने पूर्वजों से जुड़े रहने का भाव है. उन्होंने कहा,'धर्म बदल सकता है, लेकिन वंश और इतिहास नहीं. हमने अपने मूल को पहचाना और उसी पहचान के साथ आगे बढ़ रहे हैं.' उनके अनुसार, यह विवाह उसी सांस्कृतिक निरंतरता का प्रतीक है.

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समारोह की सबसे खास बात यह रही कि इसमें विभिन्न धर्मों, सामाजिक वर्गों और सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों से जुड़े लोग शामिल हुए. कार्यक्रम में पातालपुरी पीठ के जगद्गुरु बाबा बालकदास देवाचार्य महाराज, महंत जगदीश्वर दास, भारत सरकार की उर्दू काउंसिल की सदस्य नजनीन अंसारी और विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव गुरु की उपस्थिति रही.

नौशाद अहमद दुबे स्वयं भी विशाल भारत संस्थान से जुड़े हुए हैं. उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी कृष्ण गोपाल और इंद्रेश कुमार ने भी फोन के माध्यम से परिवार को शुभकामनाएं दीं. यह विवाह समारोह केवल पारिवारिक आयोजन नहीं रहा, बल्कि सामाजिक सौहार्द, साझा इतिहास और भारतीय संस्कृति की उस परंपरा का उदाहरण बन गया, जिसमें विविधता के बीच एकता सहज रूप से दिखाई देती है.


 

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